प्रभात कुमार उप्रेती

आदमी बनने की निरंतर कोशिश। ‘आइये अपने से शुरू करें’ अभियान के तहत लोगों को अपने आसपास कुछ अच्छा करने के लिए प्रेरणा हेतु कार्य। पिथौरागढ़ को पॉलीथीन मुक्त करने का प्रयास किया। अतः कुछ लोग पॉलीथीन बाबा कहने लगे हैं। अनेक किताबें तथा दर्जनों लेख प्रकाशित। अस्कोट-आराकोट अभियान सहित अनेक यात्राओं में शामिल। साहित्य तथा रंगमंच से भी गहरा रिश्ता।

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पार्वती उप्रेती

1985 में उच्चतर माध्यमिक विद्यालय की प्रधानाचार्या के रूप में अवकाश ग्रहण किया। 25 वर्ष तक निरन्तर आकाशवाणी से सम्बद्ध रही। कविताएं, कहानियां, वार्ताएं प्रसारित होती रहीं। कुछ पुस्तकें भी छपी हैं।जीवन के अनेक उतार-चढ़ावों से जूझते हुए मैंने समाज सेवा के नाते अध्यापन कार्य अपनाया। प्राणप्रण से प्रयास किया कि विद्यालय की बालिकाओं में उच्च शैक्षिक स्तर के साथ देश और समाज के प्रति अपने दायित्वों का बोध् हो। इस हेतु अनेक प्रोजेक्ट चलाए।

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चन्द्र प्रभा एतवाल

1966-86 तक अध्यापन किया।1986 से ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी (एडवेंचर) उत्तरकाशी रहीं। नेहरू इंस्टीट्यूट ऑव माउण्टेनियरिंग (एन.आई.एम.), उत्तरकाशी में 1972 में बेसिक और 1975 में एडवांस माउन्टेयरिंग कोर्स पूरा किया। 1980 में स्कीइंग का इण्टरमीडिएट कोर्स किया। 1978-83 तक नेहरू इंस्टीट्यूट ऑव माउण्टेनियरिंग, उत्तरकाशी में प्रशिक्षक रहीं। इस अवधि में बेबी शिवलिंग, बंदरपूंछ, केदारडोम, कामेट, ब्लैकपीक और 20900, नंदा देवी अभियानों में प्रशिक्षक, सदस्य, डिप्टी लीडर और लीडर की हैसियत से शामिल हुईं। इण्डियन माउण्टेनियरिंग फाउण्डेशन द्वारा प्रायोजित 1984 के एवरेस्ट अभियान की सदस्य रहीं और 27,750 फीट तक पहुँचीं। 1993 में इण्डो-नेपाली महिला साझा अभियान में एवरेस्ट पर 24,000 फीट तक पहुँची। रिवर राफटिंग और 28 दुर्गम पथों पर ट्रेकिंग की। इन उपलब्धियों के लिए भारत सरकार द्वारा ‘पद्मश्री’, अर्जुन पुरस्कार से नवाजा गया।

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यशवन्त सिंह कठोच

प्रारम्भ में हिन्दी में अनेक कविताएँ, लघु कथाएँ एवं निबन्ध लिखे। इसके बाद 1965 से भारतीय संस्कृति एवं पुरातत्त्व पर कार्य किया। पफलस्वरूप अनेक शोधपत्र व पांच पुस्तकें प्रकाशित हुईं। ‘मध्य हिमालय का पुरातत्त्व (1981), ‘मध्य हिमालय खण्ड-1 (1996) तथा ‘मध्य हिमालय खण्ड-2 (2002) पुरातत्त्व के क्षेत्र में चर्चित पुस्तकें हैं। अनेक शोधलेख प्रकाशित। संस्कृति एवं पुरातत्त्व के क्षेत्र में मौलिक योगदान के लिए 1995 तथा 2002 में सम्मानित।

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जोगेन्द्र सिंह कण्डारी

कला, साहित्य, पुरातत्व, भाषा संस्कृति सम्बन्धी 150 से अधिक लेखों का प्रकाशन। कविता संग्रह- 1. मुट्ठियों में बंद आकार (1972), 2. हथेलियों पर अस्तित्व (1993), ‘शब्द भारती’ तथा भारतीय भाषाओं के कवियों का सम्पादन।निबन्ध संग्रह- हिन्दी के गतिमान क्षितिज (1997), राजभाषा हिन्दी विश्व संदर्भ में (2002)। पत्रकारिता- हिन्दी पत्रकारिता की दिशाएँ (2000)। ‘हिन्दी के गतिमान क्षितिज’ को हिन्दी अकादमी दिल्ली द्वारा वर्ष 1997-98 का साहित्यिक कृति पुरस्कार।

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एच.एस. कप्रवान

यू.एन.डी.पी. में सलाहकार रहे। रक्षा अनुसंधान में अतिरिक्त निदेशक।युवाओं के नाम संदेशः उच्च शिक्षा ग्रहण करें। तथा अपने राज्य व देश का नाम रोशन करें।

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प्रकाश कंडवाल

पेरु के राष्ट्रपति के चुनाव जीतने की भविष्यवाणी की।तिहाड़ जेल (दिल्ली) में सर्वप्रथम कैदियों के सुधार हेतु योग-ध्यान शुरू किया। कॉरपोरेट क्षेत्र में भारत में पहली बार तनाव प्रबंध की शुरुआत की। विश्व में भारतीय ज्ञान के प्रसार हेतु अनेक बार यात्राएं कीं। वर्तमान में वैदिक ज्ञान आश्रम की स्थापना हेतु प्रयासरत हैं।युवाओं के नाम संदेशः इस दुनिया में मनुष्य के लिए सब कुछ कर पाना संभव है। अपने अंदर की अनन्त प्रतिमा को दृढ़ संकल्प, अच्छे सोच व योग के अभ्यास से विकसित कर आनन्दित जीवन जियें और दूसरों के लिए सहायक बनें।

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