सुन्दर लाल बहुगुणा

अस्पृश्यता निवारण के लिए टिहरी में 1950 में ठक्कर बाबा छात्रावास की स्थापना तथा 1957 में गंगोत्री, यमुनोत्री व बूढ़ाकेदार के मंदिरों में हरिजन प्रवेश। ‘चिपको आन्दोलन’ का संदेशवाहक बना तथा पारिस्थितिकी आन्दोलन का स्वरूप दिया। जिसकी अन्तर्राष्ट्रीय मान्यता के रूप में 1981 में स्टाकहोम का वैकल्पिक नोबेल पुरस्कार मिला। उत्तराखण्ड के पर्वतीय जिलों में 1000 मी से ऊपर के क्षेत्रों में हरे पेड़ों की व्यापारिक कटाई पर पाबन्दी लगी, जो हि.प्र. और उत्तराखण्ड में अब भी कायम है। इससे पूर्व 1965 से 1971 तक शराबबन्दी आन्दोलन में सक्रिय|1981-83, पारिस्थितिकी चेतना के लिए कश्मीर में कोहिमा तक की 4870 किमी. की पैदल यात्रा की।

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जी.के. बहुगुणा

1980 में मौसम विभाग में वापसी और निदेशक के पद तक पदोन्नति। 1982 में ‘सेटेलाइट मेटेरोलॉजी’ के प्रशिक्षण हेतु अमेरिका भ्रमण। इस क्षेत्र में विशेषज्ञता हासिल करने वाले एक उत्तराखण्डी। ‘मौसम’ विज्ञान पत्रिका में तीन शोधपत्र प्रकाशित।

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चन्द्र मोहन बहुगुणा

राष्ट्रीय पल्स पोलिया कमेटी ने 1996-97 के अभियान में उत्कृष्ट कार्यों के लिए सर्वोच्च पुरस्कार से पुरस्कृत किया। गमलों में उगाए गए दुर्लभ पौधों के संग्रह के कारण मुझे दो बार दूरदर्शन पर आने का मौका मिला तथा कई पुरस्कारों से सम्मानित।

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ईशान बहुगुणा

1996 में मानव संसाधन विकास मंत्रालय (संस्कृति मंत्रालय) की परियोजना ‘जनजातीय कला एवं संस्कृति की प्रोन्नति व प्रसार’ के अन्तर्गत जौनसारी जनजाति पर चित्रों का निर्माण।

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अबोध बन्धु बहुगुणा

हिन्दी और गढ़वाली के कवि, लेखक, कथाकार, उपन्यासकार, आलोचक, नाटककार, साहित्यकार, संग्राहक और अनुवादक। केन्द्रीय सरकार के पूर्ति मंत्रालय, उप-निदेशक पद से सेवानिवृत्त।

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राधा बहन

लक्ष्मी आश्रम में शिक्षा और शिक्षण साथ-साथ। 1957 से 61 तक उत्तराखण्ड में ‘भूदान’ यात्रा में शामिल। 1965 में स्कैंडिनेवियन देशों के फोक हाईस्कूलों का अध्ययन। 1966-86 तक लक्ष्मी आश्रम की संचालिका। शराबबन्दी, खनन विरोधी तथा चिपको आन्दोलन से सक्रिय रूप से जुड़ी रहीं। विभिन्न देशों की यात्राओं में व्याख्यानों का क्रम निरन्तर जारी रहा। 1992 में ‘जमनालाल बजाज’ पुरस्कार से सम्मानित। हिमालय हिन्दुकुश की महिलाओं के संगठन ‘हिमवंती’ से भी जुड़ी हैं। अनेक किताबें तथा लेख प्रकाशित।

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वरुण बडोला

5 साल तक तिग्मांशु धूलिया के साथ सहायक निर्देशक रहा। मैंने अपनी पहली परियोजना ‘नया दौर’ उन्हीं के साथ की। बाद में मैंने उनके साथ संवाद भी लिखे। मेरी पहला फिल्म अभिनय ‘बनेगी अपनी बात’ था। लेकिन जिस धारावाहिक से मुझे पहचान मिली वह था ‘कोशिश एक आशा’। बाद में हास्य धारावाहिक ‘ये है मुम्बई मेरी जान’ तथा ‘देश में निकला होगा चांद’ में भूमिका की। वर्तमान में ‘अस्तित्व एक प्रेम कहानी’ में काम कर रहा हूँ। साथ ही इस धारावाहिक में संवाद भी लिख रहा हूँ। मैंने दो फिल्में तिग्मांशु भाई के साथ की हैं- ‘हासिल’ तथा ‘चरस’।

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