जब चली बात फूलों की

rose-gulab-phoolon-ka-raja पता है दोस्तो, एक समय ऐसा भी था जब धरती पर फूल नहीं थे! करोड़ों वर्ष पहले की बात है। धरती पर चारों ओर बड़े-बड़े दलदल फैले हुए थे। उनमें ऊंचे-ऊंचे मॉस और फर्न के पेड़ उगते थे। दलदलों में विशालकाय डायनोसॉर विचरते थे। फिर ऐसे पेड़ों का जन्म हुआ जिनमें काठ के फल और बीज बने। चीड़, देवदार उन्हीं के वंशज हैं।

लेकिन, तेरह-चौदह करोड़ वर्ष पहले ऐसे पेड़-पौधों का जन्म हुआ जिनमें फूल खिल उठे। दोस्तो, तब आदमी भी आदमी कहां था? हमारे पूर्वज बंदर थे। वह बंदरों का भी पूर्वज रहा होगा। उसी ने वे फूल खिलते हुए देखे होंगे। पहले केवल पत्तों की हरियाली थी। चारों ओर हरा ही हरा रंग दिखाई देता होगा। फूल खिले और चारों ओर रंगों की बहार छा गई।

प्राचीनकाल के पेड़-पौधों पर शोध करने वाले वैज्ञानिक कहते हैं कि पहली बार फूल शायद तेरह-चौदह करोड़ वर्ष पहले खिले होंगे। काठ के कड़े फलों वाले पेड़ों और विशाल फर्नों के बीच फूलदार पौधे पनप उठे होंगे। फूल खिले, उनमें खूब बीज बने। बीज धरती पर गिरे। उनसे फिर हजारों फूलदार पौधे उग गए होंगे। छह-सात करोड़ वर्ष पहले वे पूरी दुनिया में छा गए।

दोस्तो, वैज्ञानिकों का कहना है कि हमारी धरती पर पेड़-पौधों की 3 लाख 70 हजार से भी अधिक जातियां हैं। उनमें 2 लाख 70 हजार से भी अधिक जातियां फूलदार पौधों की हैं। उनमें साल भर में खिल कर सूख जाने वाले पौधे हैं तो सालों-साल खिलते रहने वाले पेड़-पौधे भी हैं। सुंदर लताएं भी हैं और झाड़ियां भी। दिन में फूलों के चटक रंगों से मन मोहने वाले पेड़-पौधे भी हैं तो रात में भीनी-भीनी खुशबू बिखेरने वाले पेड़-पौधे भी। सच पूछो तो फूलों ने अपने मन मोहक रंगों से हमारे जीवन में खुशियों के रंग भर दिए। सुंदर फूल देख कर हमारा मन भी खिल उठता है। हां तो दोस्तो, मैं कह रहा था, धरती में फूल खिल उठे। प्रकृति ने हमें फूलों की सौगात सौंप दी। हमारे पुरखों ने इनके गीत गाए। जब लिखना-पढ़ना सीखा तो अपनी कविता-कहानियों में चुन-चुन कर फूल पिरो दिए। हमारे प्राचीन ग्रंथों में फूलों का खूब वर्णन किया गया है। रामायण और महाभारत में पलाश, चंपा, अमलताश जैसे फूलदार पेड़ों का उल्लेख किया गया है। कमल के फूल न जाने कब से कविताओं में खिलते रहे हैं। व्याकरणाचार्य पाणिनी ने ईसा से लगभग 350 वर्ष पूर्व अपने ग्रंथ ‘अष्टाध्यायी’ में पलाश और कदंब के सुंदर फूलों का वर्णन किया। hajari-ka-phool

शूद्रक ने 100 ईस्वी पूर्व में संस्कृत भाषा में अपना प्रसिद्ध नाटक ‘मृच्छकटिकम्’ लिखा। उसमें बाग-बगीचों में खिले कमल तथा दूसरे फूलदार वृक्षों का वर्णन किया गया है। बौद्धकाल में प्रसिद्ध कवि अश्वघोष ने ‘बुद्ध चरितम्’ ग्रंथ लिखा। कवि ने नंदनवन का वर्णन किया है जिसमें गौतम बुद्ध फूलों से लदे वृक्ष और कमल के सुंदर पुष्प देखते हैं। बौद्धकाल में मठों और स्पूतों के चारों ओर भिक्षु फूलों की बगिया लगाते थे।

और, महाकवि कालिदास के ग्रंथ तो फूलों के वर्णन से भरे पड़े हैं। उन्होंने कमल, कचनार, पलाश, पारिजात और माधवी लता जैसे न जाने कितने रंग-बिरंगे, भीनी सुगंध बिखेरते लता-गुल्मों का वर्णन किया है।

फूलों ने मानव का इतना मन मोहा कि उसने इनके सुंदर चित्र बनाए। अपने भित्तिचित्रों में उकेरा। कपड़ों में काढ़ा और बुनाइयों में बुना। बेलबूटों से चीजें सजाईं। फूलों की सौगात दी, फूलमालाएं पहनाईं, फूलमालाओं से घर सजाया। पंखुड़ियों की अल्पनाएं बनाईं। फूलों का इत्र बना कर सुंगध फैलाई। फूलों से शुभकामनाएं दीं, पंखुड़ियां बिखेर कर स्वागत की रस्म निभाई। अपने घर-आगंन को फूलों से सजाया, फूलों से महकाया। दोस्तो, हमारी पूरी संस्कृति फूलों में रसी-बसी है।

प्राचीन फूलों की तलाश करते-करते वैज्ञानिकों के हाथ फूलों के करोड़ों वर्ष पुराने ‘फॉसिल’ लगे हैं। उन्हें लगभग 12 करोड़ वर्ष पहले खिले एकवर्षी पौधों और करीब 9 करोड़ 30 लाख वर्ष पुराने मैग्नोलिया जैसे फूलों के पथराए अवशेष मिले हैं।

अच्छा, और सुनो। पहली सदी की बात है। रोम का सम्राट था नीरो। उसकी सेना में डायोस्कोरिडीज नामक प्रसिद्ध चिकित्सक था। उसने ‘डी मटीरिया मेडिका’ नामके पुस्तक लिखी। उसमें तमाम पेड़-पौधों का वर्णन किया। फूलों के चित्र बनाए। वह पुस्तक इतनी महत्वपूर्ण थी कि 1500 साल तक वही चली। वैसी कोई दूसरी पुस्तक नहीं लिखी गई। हमारे देश में आयुर्वेद में पौधों के औषधीय महत्व का वर्णन किया गया।

हमारे देश में फूलों की खेती को मुगल सम्राटों ने बहुत बढ़ावा दिया। बाबर ने ने केवल हमारे देश के फूलों को गले लगाया बल्कि वह फारस और मध्य एशिया से भी एक से एक नायाब फूल लाया। सन् 1526 के आसपास वही गुलाब के पौधे हमारे देश में लाया। उसके जीवन की तमाम बातें ‘बाबरनामा’ में लिखी गई हैं। चलो, बाबरनामा में हमारे देश के फूलों के बारे में उसके विचार तुम भी पढ़ लो। वह लिखता है, ‘हिंदुस्तान में फूल बहुत तरह के हैं। एक जासून है, जिसे गुलहड़ कहते हैं। लाल गुलाब के फूल जितना होता है, पर कली गुलाब की तरह नहीं खिलती।…एक ही दिन में मुरझा जाता है।…केवड़े की महक मन को मोह लेती है।…यहां यास्मीन भी है। सफेद को चंपा कहते हैं। हमारे यास्मीन से बड़ा है। महक भी उससे बढ़ी-चढ़ी है।’…

बादशाह अकबर भी बाग-बगीचों और फूलों का बड़ा शौकीन था। उसके शासनकाल की बातें ‘अकबरनामा’ और ‘आइने-अकबरी’ नामक ग्रंथों में लिखी हैं। जिन्हें अबुल फजल ने लिखा। अबुल-फजल ने ‘आइने-अकबरी’ में 21 सुगंधित फूलदार पौधों के फूलों के रंगों और खिलने के मौसम के बारे में बताया है। इनमें सेवती, चमेली, मोगरा, चंपा, केतकी, कुजा, जुही, नर्गिस, केवड़ा आदि का वर्णन किया है। इनके अलावा सूरजमुखी, कमल, गुलहड़, मालती, कर्णफूल, कनेर, केसर, कदंब आदि 29 सुंदर फूलदार पेड़-पौधों के बारे में भी बताया है।
जहंागीर तो प्रकृति प्रेमी था ही। उसे भारत के सुगंधित फूल बहुत पसंद थे। इनमें से भी चंपा की मीठी सुगंध उसने सबसे अच्छी बताई है। वह लिखता है कि चंपा का एक ही पेड़ पूरे बाग को महका सकता है। उसने मौलश्री और केवड़े की सुगंध की भी तारीफ की है। ये बातें ‘तुजुके जहांगीरी’ पुस्तक में लिखी गई हैं। यहां तुम्हें एक बात बता दूं दोस्तो। गुलाब के इत्र की खोज नूरजहां की मां ने की थी। तुम यह तो जानते ही हो ना कि नूरजहां बादशाह जहांगीर की रानी थी। नूरजहां और जहांगीर को गुलाब बहुत अच्छे लगते थे। यह आज से लगभग 400 साल पुरानी बात है। mugha-garden-delhi

दोस्तो, गुलाब, नरगिस, आइरिस, कार्नेशन, लिली, डेफोडिल, ट्यूलिप आदि फूल मुगल बादशाह हमारे देश में लाए। उसके बाद जब पुर्तगाली और अंग्रेज आए तो वे भी हमारे देश में विदेशी पौधे लाए। हमारे देश से अनेक सुंदर फूलदार पेड़-पौधों को विदेश ले गए। अंग्रेज वनस्पति विज्ञानियों ने तो नए फूलों और दूसरे पेड़-पौधों की तलाश में देश का चप्पा-चप्पा छान डाला। उन्हें नए-नए सुंदर फूल मिले। जैसे प्रइमुला, एनीमोन, आइरिस, लिलियम, एस्टर, बालसम, बिगोनिया, बुरोंश, कुंज और आर्किडों की अनेक जातियां फ्रैंक किंगडनवार्ड नामक वनस्पति विज्ञानी ने असम और वर्मा के जंगलों को छान कर पॉपी की नीले फूलों वाली नई जाति खोज डाली। हिमालय, उत्तरपूर्व और अन्य इलाकों के फूलों की तमाम जातियां वे इंगलैंड ले गए।

red-flowers इसके सौ-डेढ़ सौ साल बाद सुदूर स्वीडन में एक वनस्पति विज्ञानी ने फूलों को पढ़ते-पढ़ते पता लगा लिया कि पौधों का विवाह फूलों में ही होता है। उन्हीं में पौधों के माता-पिता होते हैं। उन्हीं में बीज बनते हैं। उसने फूलों के आधार पर पेड़-पौधों का नामकरण किया। वह पौधों का पुरोहित बन गया। उस महान वैज्ञानिक का नाम था-कारोलस लिनीअस। उसने देखा, फूलों के खिलने का अपना-अपना समय होता है। इस बात को ध्यान में रख कर उसने अपने नगर उपसाला में एक फूलघड़ी बनाई। उस फूलघड़ी में सुबह सबसे पहले सैल्सिफाई पौधे के फूल खिल जाते। फिर अपने-अपने समय पर दूसरे फूल खिलते। आधी रात में टार्च थिसिल के फूलों की पंखुड़ियां बंद होने के साथ ही उस दिन का समय पूरा हो जाता!

हमारे देश के वे सुंदर सजीले फूल आज भी इंगलैंड के क्यू-गार्डन और एडिनबर्ग गार्डन में उग रहे हैं। वहां इन्हें बचाया जा रहा है।

हमारे देश के बाग-बगीचों और घर-आंगन की फुलवारियों में भी एक से एक सुंदर फूलों की जातियां उगाई जा रही हैं। वसंत आता है और हजारों रंग-बिरंगे फूल खिल कर खिलखिला उठते हैं। न जाने कहां-कहां से कितनी सुंदर तितलियां और भौंरे आकर उन पराग और मकरंद बटोरने लगते हैं। दोस्तो, हमें फूलों को बचाए रखना चाहिए। तभी तो तुम्हारी ही तरह कल आने वाले फूलों से बच्चे देख सकेंगे कि हमारी इस धरती में कैसे-कैसे सुंदर फूल हैं।

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