कलैंडर का विज्ञान

[नया साल शुरु होते ही हम अपने कलैंडर बदल लेते हैं। लेकिन क्या आपको मालूम है कि कलैंडर की शुरुआत कैसे हुई? क्यों 1 जनवरी से ही वर्ष का आरम्भ माना जाता है? क्या किसी वर्ष में 365 की जगह 445 दिन भी थे? क्या किसी महीने में मात्र 21 दिन भी थे? विश्व में कितने तरह के कलैंडर प्रचलित हैं? भारतीय पंचांग की शुरुआत कैसे हुई? इन्ही प्रश्नों का उत्तर जानने के लिये हम एक श्रंखला प्रकाशित कर रहे हैं जिसमें आपको इन सभी प्रश्नों का उत्तर मिल जायेगा। श्री देवेन्द्र मेवाड़ी जी नें यह आलेख खास अपना उत्तराखंड के पाठकों के लिये भेजा है।- प्रबंधक]

prehistoric-man-adi-manav तारीखों का हिसाब रखने की कला यानी कलैंडर की शुरूआत कब हुई, इस बारे में दावे के साथ कोई कुछ नहीं कह सकता। लेकिन हां, सुदूर अतीत में वन-बीहड़ों और गुफाओं में रहने वाला आदि मानव यह देख कर जरूर हैरान हुआ होगा कि, हर रोज सूरज उगता है और शाम को अस्त हो जाता है, चांद निकलता है और डूब जाता है। कभी भीषण गर्मी पड़ती है, कभी रिमझिम वर्षा होने लगती है। और फिर, कभी सिहरा देने वाली सर्द हवाएं चलने लगती हैं। उसने जरूर सोचा होगा कि समय-समय पर ऐसा क्यों होता है? क्यों ऋतुएं आती हैं, जाती हैं?

फिर जब उसने खेती शुरू की, अपने खेतों में वह बीज बोने लगा तो उसने देखा होगा कि फसल उगती है, बढ़ती है और पक जाती है। वह फसल की कटाई कर लेता होगा। लेकिन, समय फिर लौट आया होगा, उसने फिर बीज बोए होंगे। इस तरह फसल की बोआई, निराई-गुड़ाई और कटाई का सिलसिला शुरू हो गया होगा। तब शायद उसने पहली बार इस बात का हिसाब लगाना शुरू किया होगा कि फसल की बोआई के कितने समय बाद फिर से नई फसल के बीज बोने हैं। इस तरह शायद पहली बार पूरे ‘वर्ष’ का हिसाब लगा होगा। बहरहाल, विश्व की अनेक सभ्यताओं ने अपने-अपने ढंग से समय का हिसाब लगाया।

अनुमान है कि वर्ष का पहला हिसाब सबसे पहले मिस्र के निवासियों ने लगाया। हर साल जब नील नदी में बाढ़ आती थी तो उसके बाद वे फसलों की बोआई करते थे। बाढ़ आने के बाद जब नील नदी में दुबारा बाढ़ आती थी तो उन्होंने देखा कि उस दौरान चांद 12 बार उगता था। यानी, 12 चंद्र-माहों के बाद बाढ़ आती थी और तब वे फसल की बोआई करते थे। मिस्र के धर्मगुरूओं ने देखा कि जब बाढ़ आती है तो आसमान में एक तेज चमकदार तारा भी दिखाई देने लगता है। उन्होंने गणना की तो पता लगा कि 365 दिन बाद फिर ऐसा ही होता है। फिर तारा चमकने लगता है। यह 6,000 वर्ष पुरानी बात है। मिस्र के निवासियों ने 365 दिन के वर्ष को 30 दिन के 12 महीनों में बांट दिया। वर्ष के अंत में पांच दिन बच गए। इस तरह मिस्र के निवासियों ने कलैंडर का आविष्कार कर लिया। Egyptian_calendar

ऐतिहासिक दृष्टि से देखें तो जुलियन और ग्रेगोरीय कलैंडर महत्वपूर्ण माने जाते हैं। जुलियन कलैंडर रोम के शासक जुलियस सीजर ने बनवाया। आगे चल कर पोप ग्रेगोरी तेरहवें ने इसमें सुधार करके गे्रगोरीय कलैंडर शुरू किया। ईस्वी पूर्व 45 से पहले तक रोम साम्राज्य में रोमन कलैंडर प्रचलित था। वह 1 मार्च से प्रारंभ होता था। वर्ष में केवल 10 माह होते थेः मार्टिअस, एप्रिलिस, मेअस, जूनिअस, क्विंटिलिस, सैक्सिटिलिस, सेप्टेंबर, अक्टूबर, नवंबर तथा दिसंबर। इन 10 महीनों के वर्ष में केवल 304 दिन होते थे। इसके बाद कड़ाके की सर्दी पड़ती थी और तब कोई विशेष काम नहीं होता था। लिहाजा 61 दिन का समय छोड़ दिया जाता था। माना जाता है कि रोम के सम्राट ‘नुमा पांपिलिअस’ ने दिसंबर और मार्च महीनों के बीच फरवरी और जनवरी माह जोड़े। इससे वर्ष में दिनों की संख्या 354 या 355 हो गई। हर दो वर्ष बाद 22 या 23 दिनों का अधिमास  जोड़ कर 366 दिन का वर्ष मान लिया जाता था। इसमें सुधार किए जाते रहे। बाद में कलैंडर की गणनाएं चंद्रमा के बजाय दिनों के आधार पर की जाने लगीं। पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा की गणना के आधार पर वर्ष में दिनों की संख्या 365.25 हो गई। इस सवा अर्थात् एक चौथाई दिन से गणना में बड़ा भ्रम पैदा होने लगा।

तब रोम के शासक जुलियस सीजर ने रोमन कलैंडर में सुधार किया। ईस्वी पूर्व 44 में क्विंटिलिस माह का नाम बदल कर जूलियस सीजर के सम्मान में ‘जुलाई’ रख दिया गया। जुलियस सीजर ने कलैंडर को सुधारने में मिस्र के खगोलविद सोसिजेनीज की मदद ली। वर्ष 1 जनवरी से शुरू किया गया। वर्ष का आरंभ बहुत पिछड़ चुका था। इसलिए उसने आदेश दिया कि ईस्वी पूर्व 46 में 67 दिन जोड़ दिए जाएं। इस तरह ई.पू. 46 में कुल 445 दिन हो गए। इससे भ्रांति बढ़ गई। इसलिए 445 दिनों के उस वर्ष को ‘भ्रांति वर्ष’ कहा जाता है। उसने यह भी आदेश दिया कि उसके बाद हर चौथे वर्ष को छोड़ कर प्रत्येक वर्ष 365 दिन का होगा। चौथा वर्ष लीप वर्ष होगा और उसमें 366 दिन होंगे। फरवरी को छोड़ कर प्रत्येक माह में 31 या 30 दिन होंगे। फरवरी में 28 दिन होंगे लेकिन लीप वर्ष में फरवरी में 29 दिन माने जाएंगे। अनुमान है कि 8 ईस्वी पूर्व में सम्राट ऑगस्टस के नाम पर सेक्सटिलिस माह का नाम ‘अगस्त’ रख दिया गया।

calender लेकिन जूलियन कलैंडर के हिसाब से ईस्टर का त्यौहार और अन्य धार्मिक तिथियां संबंधित ऋतुओं में सही समय पर नहीं आती थीं। कलैंडर में अतिरिक्त दिन जमा हो गए थे। पोप ग्रेगोरी 1572 से 1585 तक तेरहवें पोप रहे। सन् 1582 तक वसंत विषुव यानी वर्नल इक्विनॉक्स 10 दिन पिछड़ चुका था। पोप ग्रेगोरी तेरहवें ने जूलियन कलैंडर की 10 दिनों की त्रुटि को सुधारने के लिए उस वर्ष 5 अक्टूबर की तिथि को 15 अक्टूबर मानने का आदेश दिया। इस तरह जूलियन कलैंडर में से 10 दिन घटा दिए गए। लीप वर्ष शताब्दी के अंत में रखा गया बशर्ते वह 400 की संख्या से विभाजित होता हो। इसीलिए 1700, 1800 और 1900 लीप वर्ष नहीं थे जबकि वर्ष 2000 लीप वर्ष था। इस संशोधन से ग्रेगोरीय कलैंडर की शुरूआत हुई जिसे आज विश्व के अधिकांश देशों में अपनाया जा रहा है।

इसके बावजूद विश्व के कई देश समय की गणना के लिए अभी भी अपने परंपरागत पंचांग या कलैंडर का उपयोग कर रहे हैं। चीनी, इस्लामी या हिजरी और यहूदी कलैंडर इसके उदाहरण हैं।

[अगले अंक में जानेंगे भारतीय पंचांग के बारे में]

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13 Thoughts to “कलैंडर का विज्ञान”

  1. अरे वाह! कलैण्डर को हम अब तक दीवार पर लटकाने की सामान्य वस्तु समझते थे, उसका इतना विस्तृत इतिहास है जानकर आश्चर्य हुआ. अब तो कलैण्डर का काम भी मोबाइल से पूरा होने लगा है, लेकिन कलैण्डर का महत्व कम नहीं हुआ है. यह रोचक और महत्वपूर्ण जानकारी हम तक पहुंचाने के लिये देवेन्द्र मेवाड़ी जी का बहुत-बहुत शुक्रिया.

  2. Dilip Singh bisht

    HI , I DILIP SINGH BISHT , FROM ABU DHABI (UAE). I FEEL A PROUD I AM INDIAN THAN I AM UTTRANCHLI , I LOVE MY DEV BHOOMI UTTRANKHAN , MY UTTRAKHAN IS AS LIKE A HEAVEN PLACE.IT IS OUR LUCK WE BORN IN THIS BEAUTIFULL PLACE .

    MY BEST REGARDS TO ALL MY UTTRAKHADI PEOPLE AND THE OWNER OF THIS SITE

    DILIP SINGH BISHT

    ABU DHAI (UAE)

    +971505492390

  3. naveen saklani

    वहा वहा…

    साहब

    सुन कर और पढ़ कर बहुत अच्छा लग…

  4. RENU RAWAT

    arre wah

    bhot badia ..

  5. subhash thapliyal

    very nice dear , very nice

    thapliyal_2006@yahoo.com

  6. pradeep chand

    very-very nice sir. badia laga sir. Thanks.

  7. Dr.Devendra Tewari

    Calander ki jankari pakar bahut behater laga.

  8. The contribution of Indian astrologers is immense in the development of calendars.Panchang is actually 5 parts of time calculation which relates to various movements of celestial bodies.

  9. Lalita gurjar

    आपके द्वारा जो यह कलेण्‍डर के इतिहास के बारे में जो जानकारी दी गयी है वो वास्‍तव में काबिले तारिफ है क्‍योंकि कलेण्‍डर को एक सही रूप मे उतारा गया ये कोई सामान्‍य चीज नही थी और साथ ही व्‍यक्ति को एक निश्‍ि चत समय सारणी प्रदान करना बहुत ही बडी देन है

  10. Lalita gurjar

    आपके द्वारा जो यह कलेण्‍डर के इतिहास के बारे में जो जानकारी दी गयी है वो वास्‍तव में काबिले तारिफ है क्‍योंकि कलेण्‍डर को एक सही रूप मे उतारा गया ये कोई सामान्‍य चीज नही थी और साथ ही व्‍यक्ति को एक निश्‍ि चत समय सारणी प्रदान करना बहुत ही बडी देन है

  11. Lalita gurjar

    very good

  12. sushil jain

    good information knowledge

  13. kitna aacha tha aadi manav from n.t.p.c delhi phone 9560513200

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