अच्युतानन्द घिल्डियाल

अच्युतानन्द घिल्डियाल (Achyutanand Ghildiyal)

(माताः श्रीमती जानकारी घिल्डियाल, पिताः श्री वासवानन्द घिल्डियाल )

जन्मतिथि : 7 सितम्बर, 1926

जन्म स्थान : उत्तराखण्ड

पैतृक गाँव : खोला-श्रीनगर जिला : गढ़वाल

वैवाहिक स्थिति : विवाहित बच्चे : 1 पुत्र, 2 पुत्रियाँ

शिक्षा : पीएच.डी.

प्राथमिक शिक्षा- खोला ग्राम, श्रीनगर (गढ़वाल)

शास्त्री, हिन्दी प्रभाकर, साहित्य रत्न, साहित्यालंकार

एम.ए. (प्राचीन इतिहास)- काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी

एम.ए. (संस्कृत)- आगरा विश्वविद्यालय

एम.ए. (पालि)- काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी

पीएच.डी.- मगध् विश्वविद्यालय (बिहार)

जीवन का महत्वपूर्ण मोड़ः लाहौर में संस्कृत, अंग्रेजी व हिन्दी की शिक्षा प्राप्त कर वहीं ‘राष्ट्रीय विद्यामंदिर’ शिक्षण संस्था चलाई और राष्ट्रभाषा हिन्दी और राष्ट्रीय विचारों का प्रचार कर ‘राष्ट्र’ पत्रिका से स्वतंत्रता संग्राम में सहयोग दिया। पाकिस्तान बनने के बाद लुधियाना, नई दिल्ली, खोला श्रीनगर (गढ़वाल) में विद्यामंदिर संस्था पुनर्जीवित की।

प्रमुख उपलब्धियां : पाकिस्तान बनने और गांधी जी के कहने पर स्वतंत्रता संग्राम में कार्य करने का जब कुछ लाभ नहीं दिखा तो राजनीति छोड़ कर 1952 में बी.ए., एम.ए. और पीएच.डी. की। 1970 से अध्यापन और लेखन कार्य में संलग्न। एकला चलो रे के आधार पर संकट झेलकर लेखन कार्य किया और प्राचीन भारतीय साहित्य को प्रकाश में लाने वाले ग्रन्थ लिखे। अब तक 3 दर्जन से अधिक पुस्तकों की रचना।

युवाओं के नाम संदेशः युवा वर्ग राष्ट्र का भावी कर्णधर है। उसके स्वस्थ, संस्कारी, सुशिक्षित, उत्साही और कर्मठ होने पर ही समाज के दुरव्यसन दूर होंगे तथा आजीविका प्राप्ति के द्वार खुलेंगे। साहित्य और संस्कृति से ही निर्माण की संजीवनी शक्ति मिलती है। नौकरी की अपेक्षा स्वरोजगार व्यक्ति, समाज और राष्ट्र के लिए परम सहायक है। पर्वतों में अपार सम्पदा है, उसके पारखियों की आवश्यकता है। आजीविका रहित व्यक्ति और समाज विविध प्रकार के व्यसनों में फंस जाता है। उत्साह, धैर्य, उद्योग और लगन का होना आवश्यक है, क्योंकि अर्थ प्राप्ति का मूलमंत्र उद्योग ही है।

विशेषज्ञता : इतिहास, भाषा, साहित्य।

 

नोट : यह जानकारी श्री चंदन डांगी जी द्वारा लिखित पुस्तक उत्तराखंड की प्रतिभायें (प्रथम संस्करण-2003) से ली गयी है.

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