जब चली बात फूलों की

पता है दोस्तो, एक समय ऐसा भी था जब धरती पर फूल नहीं थे! करोड़ों वर्ष पहले की बात है। धरती पर चारों ओर बड़े-बड़े दलदल फैले हुए थे। उनमें ऊंचे-ऊंचे मॉस और फर्न के पेड़ उगते थे। दलदलों में विशालकाय डायनोसॉर विचरते थे। फिर ऐसे पेड़ों का जन्म हुआ जिनमें काठ के फल और बीज बने। चीड़, देवदार उन्हीं के वंशज हैं। लेकिन, तेरह-चौदह करोड़ वर्ष पहले ऐसे पेड़-पौधों का जन्म हुआ जिनमें फूल खिल उठे। दोस्तो, तब आदमी भी आदमी कहां था? हमारे पूर्वज बंदर थे। वह बंदरों…

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लाइकेन

दोस्ती हो तो लाइकेन जैसी! हां दोस्तो, प्रकृति में लाइकेन अटूट दोस्ती का बेमिसाल नमूना है। इसमें दो दोस्त अटूट बंधन में बंध जाते हैं। दोस्ती का ऐसा बंधन जो जीते-जी टूट नहीं सकता। इस दोस्ती के कारण उनको पहचानना तक कठिन हो जाता है। इस दोस्ती में वे बिल्कुल नया रूप रख लेते हैं और ‘लाइकेन’ बन जाते हैं। जीवन भर एक दूसरे का साथ निभाने वाले ये दो दोस्त हैं- शैवाल यानी एल्गी और फफूंदी यानी फंजाई। ये दोनों ही पौधे हैं। फफूंदी रंगहीन होती है और बारीक…

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नीला कुरिंजी

दोस्तो, बताओ तो जरा फूल कब खिलते हैं? साल भर? चलो मान लिया साल भर खिलते हैं। लेकिन, कौन-सा फूल कब खिलता है? कुछ फूल गर्मियों में खिलते हैं, कुछ वर्षा ऋतु में, कुछ सर्दियों में और बहुत सारे फूल वसंत ऋतु में। ठीक है? लेकिन, एक फूल ऐसा भी है जो 12 वर्ष बाद खिलता है। सन् 2006 में वह दक्षिण भारत के कोडइकनाल, नीलगिरी, अन्नामलाई और पलनी की पहाड़ियों में 12 वर्ष बाद खिला। अगस्त से दिसंबर तक तमिलनाडु में क्लावररई से केरल में मुन्नार के पास वट्टावडा…

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दीमक

चलो दोस्तो, इस भीषण गर्मी में चलते हैं दीमकों के ठंडे-ठंडे कूल-कूल वातानुकूलित घर में। वह दीमकों की बांबी कहलाता है। और, उसमें एक-दो सौ नहीं कभी-कभी तो लाखों दीमकें रहती हैं। बांबी में उनकी पूरी बस्ती बसी रहती है। तुमने कभी दीमकों की बांबी देखी हैं? अगर देखी है तो तुमने यह भी देखा होगा कि वह चारों ओर से बंद रहती हैं दीमकों का शरीर बहुत ही कोमल होता है। बांबी में बाहर की गर्म हवा घुस जाए तो दीमकें सूख कर मर जाएंगी। इसलिए वे अपने घर…

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घुघुती बासेंछी मेरा देश

अब, सच्ची बात तो यह है कि हमारे गांव में हमीं जो क्या रहने वाले ठैरे, और भी बाशिंदे हुए वहां के। आप ‘गोरु-बाछ-बाकार’ सोच रहे होंगे। वे तो हुए ही। बल्कि वे ही क्यों, सिरु-बिरालू और ढंट कुकर भी तो हमारे घरों में ही रहने वाले हुए। मगर इनके अलावा भी मेरे गांव के सैकड़ों बाशिंदे गांव की जमीन, खेतों में खड़े पेड़-पौधों और गांव की सरहद से लगे डान-कानों और उनमें उगे जंगलों में रहते थे। समझ ही गए होंगे आप? मैं अपने गांव की उन चिड़ियों की…

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परीकथाओं से विज्ञान कथाओं तक

दोस्तो, चलो परियों की बातें करते हैं। हंसती, खिलखिलाती सुंदर परियों की। सोन परी, नील परी, लाल परी! अच्छा बताओ, तुम्हें कहां मिलती थीं वे परियां? परी कथाओं में? हमने अपनी आंखों से उन्हें कभी नहीं देखा, लेकिन जब भी कोई परी कथा पढ़ी तो वे हमारे मन के ऊंचे आसमान में उड़ने लगीं। हमारे मन के आसमान में उड़ने के लिए इन्हें किसने भेजा? मां ने, नानी ने या शायद दादी ने। और, परियों की कथा लिखने वाले हमारे प्रिय लेखकों ने। इन सबने परियों की मजेदार कहानियां गढ़ीं।…

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