भिनज्यू : हरफनमौला.. हरफन अधूरा

[हमारे साथ नये जुड़े श्री उमेश तिवारी ‘विश्वास की दाज्यू कथा का पहला भागदूसरा भाग आपने पढ़ा। आज प्रस्तुत है उनकी एक और रचना भिंज्यू-कथा का पहला भाग – प्रबंधक ]

altभिनज्यू एक आम पहाड़ी परिवार में एक विशिष्ट छवि लिए रहते हैं। उनकी यह छवि बरसों बरस से चले आ रहे पारस्परिक व्यवहार से बनी है। जैसे संसद में लोकसभा अध्यक्ष की। अन्यत्र उनका नाम चाहे कितनी ही बेअदबी से लिया जा रहा हो, भिनज्यू के रूप में संबोधित होते ही उनके अन्दर टूटा हुआ कॉच का सामान जैसे जुड़ जाता है और लालटेन की चिमनी या बिजली का बल्ब जैसा बन जाता हैं। अनायास हाथ लगी इस इज्जत के फलस्वरूप उनका दबा-ढका प्रमाद छलांग लगाकर बाहर आ जाता है। साला चाहे पटवारी, मास्टर, दुकानदार या विद्यार्थी हो वह क्रमशः तहसीलदार, प्रिन्सिपुल, इंसपेक्टर और गणितज्ञ या साले की क्लास में जब थे, तबके ब्रिलियंट बन जाते हैं, ’–हमने कभी कुँजी का सहारा नहीं लिया, जो मास्टर के मुख से निकला टेप रिकार्ड हो गया और वही इम्तेहान में पेल दिया–’। अगर विद्यार्थी फेल हो रहा हो या बेरोजगार की श्रेणी में पदार्पण कर चुका हो तो भिनज्यू के हास परिहास में शोखी और संजीदगी का अनोखा मेल देखा जा सकता है। वह कह सकते है, ‘कुंभ का मेला जो क्या है जो बारह बरस बाद आएगा अगले साल मेहनत करेगा तो…. या ‘आजकल नौकरी है कहां जो मिल जाएगी तू कुछ टेक्निकल काम सीख ले तो कहीं फिट हो जाएगा’। अपनी काउंसेलिंग को अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए वह ठंडी हो रही चाय को अपनी पत्नी से दुबारा गर्म करने के लिए कहते हैं और उसकी चाल में तेजी को भांपते हुए तुरूप का पत्ता मारते हैं, ‘तेरी दीदी के पास आकर परमानंद जी की औरत रोज पैं-पैं करती थी’-अपने उनसे कहके लड़के को कहीं लगवा दो! मैंने एक दिन ऐसे ही कह दिया, उसको कम्प्यूटर कोर्स क्यों नहीं करवा देते ? आज देखो लड़का सोनी के इंस्टीट्यूट में टाइप सिखा रहा है और देखना उत्तराखण्ड बनते ही सरकारी दफ्तर में लग जाएगा’।

राजनीति में वह सोनियां के मायके, प्रियंका के ससुराल, मनमोहन के मालकोट और तिवारी जी के अंदरखाने की ऐसी-ऐसी खबरें रखते हैं जो यदि रजत शर्मा के पास होती तो इंडिया टीवी पर ब्रेकिंग न्यूज का हिस्सा बन जाती। भिनज्यू इन खबरों का श्रोत कभी रिवील नहीं करते क्योंकि अपने मुखबिरों के प्रति वह भी बचनबद्ध हैं, वस्तुतः स्वयं के प्रति। यह अलग बात है कि उनकी ज्यादातर बातों पर ससुराल वाले विश्वास नहीं करते। वह उन्हें टौप में चढाकर रखना चाहते हैं जिससे उनका ससुराल प्रवास दोनों पक्षों के लिए औसॉणमुक्त बना रह सके।

भिनज्यू को अधिकतर वो बातें पता होती हैं जो योजना आयोग को भी पता नहीं होतीं उनकी उपजाऊ बुद्धि में कुछ ऐसे नुक्ते अटक रह जाते है जो समयान्तर में विकसित हो अकलटप्पू होने के बावजूद बड़े प्रभावशाली ढंग से अभिव्यक्त होते है, ‘‘देखते जाओ, यही शिबू सोरेन एक दिन बी.जे.पी. की गोद में बैठकर नरसिम्हा राव को पिण्ड दान करेगा–’’ साथ ही वह हस्तरेखा विज्ञान, ज्योतिष और न्यूमरोलॉजी में या इनमें से किसी एक में अच्छा दखल रखते हैं। परन्तु सुसुराल में इन विधाओं का कोई विशेषज्ञ हो तो, वह गीता में व्याखायित कर्म के सिद्धान्त पर अटल विश्वास रखने वाले बन जाते हैं, ‘‘– भाग्य-साग्य कुछ नहीं होता, सब ठग विद्या है, लड़कियो का हाथ पकड़ने के बहाने हैं–’’ कभी-कभी तो भौती भैंकर कम्यूनिस्ट टाइप आदमी होने का ऐलान कर देते हैं, ‘मैने मंदिर में शिब्जी के नन्दी की पीठ पर बैठाकर चारमीनार सिगरट पी है…’ राजनीति में वह सोनियां के मायके, प्रियंका के ससुराल, मनमोहन के मालकोट और तिवारी जी के अंदरखाने की ऐसी-ऐसी खबरें रखते हैं जो यदि रजत शर्मा के पास होती तो इंडिया टीवी पर ब्रेकिंग न्यूज का हिस्सा बन जाती। भिनज्यू इन खबरों का श्रोत कभी रिवील नहीं करते क्योंकि अपने मुखबिरों के प्रति वह भी बचनबद्ध हैं, वस्तुतः स्वयं के प्रति। यह अलग बात है कि उनकी ज्यादातर बातों पर ससुराल वाले विश्वास नहीं करते। वह उन्हें टौप में चढाकर रखना चाहते हैं जिससे उनका ससुराल प्रवास दोनों पक्षों के लिए औसॉणमुक्त बना रह सके।

लेकिन ऐसा सदा संभव नहीं होता। भिनज्यू कभी-कभी बिना बात के गमगमे या मकमके हो जाते हैं और शाम तक गमगमे बन रहते हैं। सौरासिए कारण जानना चाहते हैं। वह अपनी लड़की से दरियाफ्त करते हैं, ‘किलै आज..?’ वह बताती है, ‘कुछ खास बात नहीं है इनका मूड किसी दिन ऐसा हो जाता है रात तक ठीक हो जाएंगे,’ सालियां ठिठोली करती हैं, ‘भिना रात को भात मत खाया करों मूख ओसा जाता है’। पत्नी उलाहना देती है, ‘मौनॉक जास बुकाई के है रौ छा-छिः…,’ पर वह कोई जबाव नहीं देते।

दरअसल रात थोड़ी सी घुटकी लगाकर भिनज्यू बहक गये थे। ज्यादा बतोले मारने से उनकी कुछ पोल खुल गई । उन्होंने शेखी बघारते हुए कह दिया कि अपने साहब को उन्होंने कस कर थप्पड़ मार दिया था और बात बढ़ने पर उसे फतोड़ दिया। बात इतनी थी कि साहब ने उनसे तू कह दिया था। इस पर श्रोताओं में से किसी लाटे ने पूछ लिया ‘साब ने आपको नौकरी से सस्पेंट क्यों नहीं करा होगा ?’ भिनज्यू ने ऐसा करने की हिम्मत रखने वाले काल्पनिक साहब की मां बहिन एक कर दी। इस शब्दावली से कुछ सालियॉं आदि सन्न रह गई। एक तो उठ कर चली भी गई। बाद में आ भी गई। भिनज्यू चाहते थे कि उनकी मर्दानगी का लोहा मानते हुए ससुराल की मक्खी भी न भिनभिनाए। अगर कोई पूछे तो, ‘अस्पताल ले जाना पड़ा होगा…?’ जैसा सकारात्मक सवाल पूछे। अपना ही पागलपन उन पर ऐसा असर छोड गया कि वह गमगमे हो गये। पश्चाताप हो रहा है। वह खुद से खफा है। चूंकि वह भिनज्यू हैं, सयाने जैसे हैं रात की लौंडयोली को गंभीरता की चादर से ढक देना चाहते हैं। इतना ही नहीं, वह जताना नहीं चाहते कि उनको नशा हो गया था। वह कभी कह भी चुके थे कि उनको शराब से नशा नहीं होता। आज उन्हें लोग अपनी हुक्म-उदूली करते लग रहे हैं। उन्हें कोई सयानों की तरह ट्रीट नहीं कर रहा।

उनकी अपनी पत्नी भी थोडी लापरवाह दिख रही है। अखबार को आए घंटा भर हो गया पर तीसरी चाय के साथ उनको डिलीवर नहीं हुआ। यह सब बातें स्वाभाविक हैं किन्तु भिजन्यू को लगा रहा है कि यह उनकी घटती इज्जत का परिणाम है। वह किसी भी कीमत पर अपना पुराना मुकाम हासिल करना चाहते हैं। अखबार परोसती पत्नी को आखिरकार उन्होंने गमगमे होने का मानो कारण बताते हुए कहा, ‘गैस्ट्रीक जैसा हो रहा है’। सौभाग्य से उसी समय उनकी पूँ भी निकल गई। बगल वाले कमरे से खित खिताट की आवाज से माहौल हल्का सा हो गया और भिनज्यू का मन और शायद पेट भी। पत्नी भी मुस्कुराए बिना नहीं रह सकी। हालांकि वह बडे-बड़े विस्फोटों की गवाह थी। फिर भिनज्यू अजवाइन, हींग, काला-नमक, गरम पानी से घुटक कर मुस्कुराने लगे। ऊॅची आवाज में, सारी भद्रता को समेटते हुए जोक जैसा मारा, ‘उस तरफ बडे लड्डू फूट रहे हैं’,! जवाब मिला, ‘उस तरफ बम छूट रहे हैं!’ ऐसे में भिनज्यू अपने हंसोड होने के इम्प्रेशन को द्विगुणित करना नहीं भूलते और बात को खींचते चले जाते हैं।

-‘ये आलूओं के खेत में भिण्डी कहां से आई ?’ जबाव, ‘आप अपने गोबी के फूल का ध्यान धरें’-और ही-ही, ठी-ठी। नेपथ्य में ‘सिसूणकि पात,’ ठहाका, ‘जेठाक महैणा जास निमू…’ बड़ा समवेत ठहाका। भिनज्यू-‘आप लोगों की दीदी हॉ कहे तो हम एक और ले जाए ?’ जवाब ‘आलू या भिण्डी ?’ भिनज्यू-‘कोई भी चलेगी’, प्रत्युत्तर- ‘तब तो, गेठी ले जाओ,’ फिर लम्बा खितखिताट।

जहां तक खिंचाई का प्रश्न है पहाड़ के भिनज्यू लोगों का सैंस आफ ह्यूमर खिंचाई के कलेवर में परवान चढ़ता है। वह खिंचाई या मजाक की आड़ में अपने रोमांटिक व्यक्तित्व का प्रदर्शन करते हैं। जिस प्रकार विभिन्न प्रकार के प्राणी अजीब सी हरकतें कर मादाओं को रिझाने की कोशिश करते हैं वैसे ही भिनज्यू अपनी सीमाओं में, मर्यादाओं के फंदे में फंसे-फंसे, सालियों उनकी सहेलियों आदि आदि पर खिंचाई नामक शस्त्र का प्रयोग करते हैं। इस शस्त्र की विशेषता यह है कि इसके असर से सब लोक वाकिफ हैं पत्नियां भी सालियां भी। इसकी मारक क्षमता का भिनज्यू को भी आभास हैं। मध्यम तेज गति के गेंदबाज की बॉउसर की तरह यह चौंका तो देती है पर विकेट बहुत कम ले पाती है। इसके कुछ नमूने देखें-एक छरहरी साली को देखकर भिनज्यू-‘ये आलूओं के खेत में भिण्डी कहां से आई ?’ जबाव, ‘आप अपने गोबी के फूल का ध्यान धरें’-और ही-ही, ठी-ठी। नेपथ्य में ‘सिसूणकि पात,’ ठहाका, ‘जेठाक महैणा जास निमू…’ बड़ा समवेत ठहाका। भिनज्यू-‘आप लोगों की दीदी हॉ कहे तो हम एक और ले जाए ?’ जवाब ‘आलू या भिण्डी ?’ भिनज्यू-‘कोई भी चलेगी’, प्रत्युत्तर- ‘तब तो, गेठी ले जाओ,’ फिर लम्बा खितखिताट।

कई भिनज्यू वापस घर जा इस खिंचाई, में नमक-मिर्च लगाकर अपने दोस्तों को बताते पाऐ गये हैं, ‘‘–क्या बताऊ यार लौंडिया बड़ी तेज- मैने कहा बेटा जवाब लग गया तो जिन्दगी भर का हो जाएगा, अगल-बगल देखा और एक को आँख मार दी, कहा कुछ नहीं–वह उठकर चल दी, साथ में दूसरी छप्पन छुरि को भी ले गयीं। मैं भी बाथरूम के बहाने उठा– बगल के कमरे में अँधेरा था, बस क्या कहूँ– हा हा ही ही ही!’’ श्रोता गर्दन हिलाते है, कोई ईर्ष्या का भाव नहीं दिखता क्योंकि दोस्तों को भी पता है कि खिंचाई कितना निरीह हथियार है, पर वह भी भिनज्यू हैं या बनेंगे, इसलिए मुठ्ठी के बंद रहने में ही भलाई समझते हैं।

जारी है ….

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8 Thoughts to “भिनज्यू : हरफनमौला.. हरफन अधूरा”

  1. क्या हो दाज्यू, आपने तो भिन्ज्यू के नाम की मौ लगा रखी है। 😀

  2. आपने तो भिनज्यु की बहुत खिचाई कर दी है ऐसा लगता है कि जैसे कलम की ताकत से साली का रोल निभाया हो. पर अच्छा है लेखक की अपनी भुमिका होती है. सुक्रिया

  3. हलिया

    अरे महाराज भिंजु अगर पढ रहे होंगे तो ‘सिनपानी’ जैसा लग रहा होगा.

  4. हालिया दा आप भी तो किसी के भिनज्यु होंगे.. अपनी भावनाएं सब पर 'एप्लाई' कर दी आपने!

  5. हलिया दा आप भी तो किसी के भिनज्यु होंगे.. अपनी भावनाएं सब पर 'एप्लाई' कर दी आपने!

  6. sanjupahari

    waaah…ekdam mauzaa aa gaya hoo Bhinju ke baare main padke…… pai bhinju ko kewal saali hi hara bhi sakne waali thairi bal.

  7. Prem Negi

    whaaah majaa aagaya

  8. aapne to mere din yaad dila diye….

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