एक थीं गौरा देवी: एक माँ के बहाने चिपको आन्दोलन की याद – 4 [पिछ्ले भागों में आपने पढ़ा कि किस प्रकार शेखर पाठक जी अपने साथियों के साथ गौरा देवी से मिले , कैसे हुई चिपको की शुरुआत और क्या हुआ चिपको आंदोलन के बाद ,आज जानते है कि कैसे चिपको आंदोलन को कुछ लोगों ने हथिया लिया। प्रस्तुत है लेख की अंतिम किश्त। ] गौरा देवी अपने जीवन के अन्तिम वर्षों में गुर्दे और पेशाब की बीमारी से परेशान रहीं। पक्षाघात भी हुआ। पर किसी से उन्हें मदद…
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Various Articles written on Uttarakhand (उत्तराखंड से संबंधित लेख)
चिपको के बहाने कुछ और बातें…
[पिछ्ले भागों में आपने पढ़ा कि किस प्रकार शेखर पाठक जी अपने साथियों के साथ गौरा देवी से मिले और कैसे हुई चिपको की शुरुआत। आज जानिये चिपको आंदोलन के बाद के परिदृश्य के बारे में। ] रैणी 1984 में पौने पाँच बजे हमारी सभा शुरू हुई। 1974 के रैंणी आन्दोलन में शामिल हरकी देवी, उमा देवी, रुपसा देवी, इन्द्री देवी, बाली देवी, गौमा देवी, बसन्ती देवी आदि सभा में आ गईं। सभापति जी के साथ गाँव के अनेक बच्चे और बुजुर्ग भी जमा हो गये। गौरा देवी ने सूत्रवत्…
Read Moreरैणी: 26 मार्च 1974: चिपको आंदोलन की सच्ची कहानी
[पिछ्ले भाग में आपने पढ़ा कि किस प्रकार शेखर पाठक जी अपने साथियों के साथ गौरा देवी से मिले। आज के भाग में जानिये कि क्या हुआ रैनी में 26 मार्च 1974 को और कैसे हुई चिपको के आंदोलन की शुरुआत। ] रैणी: 26 मार्च 1974 1970 की बाढ़ ने समस्त अलकनन्दा/गंगा घाटी को भयभीत किया था। 1973 में जंगलों के कटान के खिलाफ मंडल, गोपेश्वर तथा रामपुर फाटा में जो प्रतिरोध हुए थे, उनकी खबर चमोली के दूरस्थ गाँवों तक पहुँचने लगी थी। इस सूचना के वाहक थे कुछ…
Read Moreएक थीं गौरा देवी: एक माँ के बहाने चिपको आन्दोलन की याद
प्रस्तुति : शेखर पाठक [डा. शेखर पाठक जी को हमारे पाठक उनके अस्कोट-आराकोट अभियान और उनके साक्षात्कार के माध्यम से जानते है। वह पहाड़ संस्था के संस्थापक सद्स्यों में से एक हैं। हाल ही में उनका चिपको आंदोलन की प्रणेता गौरा देवी पर लिखा लेख रविवारी जनसत्ता में छ्पा था। उसी लेख (असंपादित) को हम अपने पाठकों के लिये अपना उत्तराखंड में प्रस्तुत कर रहे हैं। आज प्रस्तुत है पहला भाग। – प्रबंधक ] जनवरी 1974 में जब अस्कोट-आराकोट अभियान की रूपरेखा तैयार हुई थी, तो हमारे मन में सबसे…
Read Moreभिनज्यू को बेटे में बदलने की साजिश
[हमारे साथ नये जुड़े श्री उमेश तिवारी ‘विश्वास की दाज्यू कथा का पहला भाग व दूसरा भाग आपने पढ़ा। उनकी एक और रचना भिंज्यू-कथा का पहला भाग भी आप पढ़ चुके हैं आज प्रस्तुत है उसी भिंज्यू कथा का दूसरा भाग – प्रबंधक ] ऐसा नहीं है कि भिनज्यू की भूमिका हल्की-फुल्की ही हो, ससुराल के कई महत्वपूर्ण मसलों पर उनकी राय ली जाती है। कई बार ये मामले इतने गंभीर होते हैं कि उन्हें अपनी एफ.डी. तुड़ानी पड़ती है। घर-वर के चयन में निर्णायक स्वीकारोक्ति या ना-नकुर सम्प्रेषित करनी…
Read Moreभिनज्यू : हरफनमौला.. हरफन अधूरा
[हमारे साथ नये जुड़े श्री उमेश तिवारी ‘विश्वास की दाज्यू कथा का पहला भाग व दूसरा भाग आपने पढ़ा। आज प्रस्तुत है उनकी एक और रचना भिंज्यू-कथा का पहला भाग – प्रबंधक ] भिनज्यू एक आम पहाड़ी परिवार में एक विशिष्ट छवि लिए रहते हैं। उनकी यह छवि बरसों बरस से चले आ रहे पारस्परिक व्यवहार से बनी है। जैसे संसद में लोकसभा अध्यक्ष की। अन्यत्र उनका नाम चाहे कितनी ही बेअदबी से लिया जा रहा हो, भिनज्यू के रूप में संबोधित होते ही उनके अन्दर टूटा हुआ कॉच का…
Read Moreफसलें और त्यौहार
[देवेन्द्र मेवाड़ी जी द्वारा सुनाये गये कई किस्से आप पढ़ चुके हैं हाल ही में उन्होंने गोरु बाछों के बारे में हमार गोरू-बाछ और चिंगोरे हुए हाथ.. , ब्वाँश, बाघ, मूना और “पैजाम उतार पैजाम”…. , बेचारा गुजारा … , गाय-भैंस का ब्याना और बिगौत का खाना.. जैसे किस्से सुनाये। फसलों और त्यौहारों की कहानी का पहला भाग आप पढ़ चुके है। आज प्रस्तुत है दूसरा व अंतिम भाग : प्रबंधक] उधर दक्षिण भारत में फसलों के स्वागत में ‘पोंगल’ का त्योहार मनाया जाता है। नए बर्तन में ताजा दूध…
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