अपने मूल से उखड़ कर तो एक पौधा भी सूख जाता है, मनुष्य भला कैसे अपनी जन्मभूमि से बिछड़ कर सुखी रह सकता है। नरेन्द्र नेगी जी ने इस गाने के माध्यम से अपने पैतृक गांव और परिवार से दूर रह रहे एक प्रवासी पहाड़ी पुरुष की तड़प व्यक्त की है। शहर की तेज दौड़ती ज़िन्दगी के बीच अचानक इस पुरुष को बडुळि (हिचकी) लगती है, पैरों के तलवों में खुजली लगती है और चूल्हें की आग भरभरा कर आवाज करने लगती है। पहाड़ों में यह माना जात है कि…
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Information about Uttarakhand Culture (उत्तराखंड की संस्कृति)
पी जाओ म्यॉर पहाड़ को ठंडो पानी
गोपाल बाबू गोस्वामी द्वारा गाया गाना “पी जाओ, पी जाओ, म्यॉर पहाड़ को ठंडो पाणी” लोगों को अपने पहाड़ की याद दिलाता है। पहाड़ का प्राकृतिक वातावरण होता ही इतना सुन्दर है कि पहाड़ लोगों की स्मृतियों में हमेशा ज़िन्दा रहता है। पहाड़ के लोग पहाड़ में शहर को खोजते हैं और एक बार शहर पहुंच जाते हैं तो वहाँ पहाड़ को। हिमालय जो देवभूमि है, देवता जहां निवास करते हैं उसी की सुन्दरता दिखाता हुआ गाना है यह। भावार्थ : आओ मेरे पहाड़ का शीतल जल पी जाओ। मेरे…
Read Moreतेरि पिड़ा मां दुई आंसु मेरा भि
नरेन्द्र सिंह नेगी जी के गीतों में अन्तर्निहित भावों की सुन्दरता को आपने इससे पहले भी कई गीतों में इस साइट पर महसूस किया होगा। यही अन्तर्निहित भाव उनके गीतों अधिक सुन्दर व अर्थपूर्ण बनाते है। आज हम ऐसा ही भावनापूर्ण गीत आपके सामने लेकर आ रहा हैं। इस गीत में पहाड़ के अधिकांश विवाहित जोड़ों की तरह पति पहाड़ से बाहर जाकर नौकरी कर रहा है और स्त्री गांव में रहकर घर व खेतों की देखभाल कर रही है व परिवार का पालन-पोषण कर रही है। विरहरस से भरे…
Read Moreबोला भै-बन्धु तुमथें कनु उत्तराखण्ड चयेणुं च
उत्तराखण्ड राज्य प्राप्ति के लिये उत्तराखण्ड के लोगों ने लगभग 50 साल तक संघर्ष किया और एक बड़े अहिंसक आन्दोलन के फलस्वरूप अलग राज्य का निर्माण हुआ। पृथक राज्य निर्माण की मांग पीछे लोगों की यह अपेक्षाएं थी कि अपना राज्य और अपना शासन होगा तो दुश्वारियां कुछ कम होंगी और सामान्य जनता की इच्छानुसार एक आदर्श राज्य की स्थापना होगी। पृथक राज्य बनाने के उद्देश्य को लेकर लड़ रहे समाज में हर तबके की अपनी-अपनी प्राथमिकताएं और अपेक्षाएं थीं, उसी दौर में नेगी जी ने यह गाना लिखा। इस…
Read Moreजी रे जागि रे, जुगराज रे तू- जी रे
तेजी से बदलते भारतीय समाज में अन्य भारतीय परम्पराओं के साथ- साथ संयुक्त परिवार का ताना-बाना भी टूटता जा रहा है। कैरियर और प्रतिस्पर्धा के पीछे भागते-भागते आज का युवावर्ग अपने माता-पिता के रूप में किस अमूल्य निधि का तिरस्कार करता है, उसे आभास नहीं हो पाता। बड़े शहरों में ऐसे कई बुजुर्गों की कहानी सुनने को मिलती है जिनकी सन्तानें उन्हें अकेले छोड़कर या वृद्धाश्रम में धकेलकर बेरोकटोक, स्वतन्त्र जीवन जीने का रास्ता चुनते हैं और अन्तत: ऐसे बुजुर्ग या तो अपने नौकरों के हाथों मारे जाते हैं या…
Read Moreगरा रा रा ऐगे रे बरखा झुकि ऐगे
नरेन्द्र सिंह नेगी द्वारा गाये गये सभी गीतों में इस गाने की एक विशेष पहचान है। नेगी जी ने इस गाने के माध्यम से यह सजीव दृश्य सामने रखा है कि एक छोटे से गांव में अप्रत्याशित रूप से बारिश की बूंदे गिरने लगे तो सामान्य जीवन किस तरह अस्त-व्यस्त हो जाता है। आमतौर पर वर्षाऋतु पर आधारित गाने श्रंगार रस, विरह वेदना या प्राकृतिक सुन्दरता को प्रदर्शित करते हैं लेकिन नेगी जी इस परिस्थिति में भी आम ग्रामीणों के दुख-दर्द को सामने रखने में बखूबी कामयाब हुए हैं और…
Read Moreइखि ई पिरथिमा ये हि जलम मां
नरेन्द्र सिंह नेगी जी द्वारा गाये बहुत से गाने ऐसे है जिनमें उपमायें, भाव पूरी तरह से नये तरीके हैं। कुछ गाने आप पहले भी सुन चुके हैं जैसे रोग पुराणु कटे ज़िन्दगी नई ह्वैगे, तेरु मुल – मुल हैंसुणु दवाई ह्वैगे या फिर त्यारा रूप कि झौल मां, नौंणी सी ज्यू म्यारु । आज प्रस्तुत है इसी तरह का एक और गाना। इसका भावार्थ करना कफी कठिन है। इसलिये हम इसके भावार्थ के साथ साथ इसका पद्यानुवाद भी दे रहे हैं। इस गाने में प्रेमी एक सुन्दरी को देख…
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