यह नरेन्द्र सिंह नेगी जी का बहुत प्रसिद्ध और पुराना गाना है। सूर्योदय से लेकर सांझ ढलने तक सूरज की सभी अवस्थाओं का बखान करने के साथ ही नेगी जी ने इस गाने में ग्रामीण परिवेश में रह रही महिलाओं की दिनचर्या को भी खूबसूरती से चित्रित किया है। भावार्थ : चमकता हुआ घाम (धूप) बर्फीली चोटियों पर पड़ता है तो ऐसा लगता है मानो हिमाच्छादित यह चोटियां चांदी की बन गईं हो। सबसे पहले (सूरज की पहली किरण) भगवान शिव के धाम, कैलाश पर्वत पर पड़ती है, फिर उसका…
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Information about Uttarakhand Culture (उत्तराखंड की संस्कृति)
हाय तेरो मिजाता,मिजाता लुकुड़ छन
आपने गोपाल बाबू गोस्वामी के गाये ओ परुवा बौज्यू चपल के ल्याछा यस या फिर पतई कमर तिरछी नजर गाने सुने ही हैं, जिसमें एक स्त्री के रूप के साथ उसके फैशन के बारे में भी बात की गयी थी। आज जो गाना आप सुनने जा रहे हैं उसमें एक पति अपनी पत्नी के शानो-शौकत और फैशन से त्रस्त है और उसकी मांगो को पूरी करने में अपने आप को असमर्थ पाता है। मजेदार गाना है यह। भावार्थ : अरे तेरी इस शानोशौकत के क्या कहने,अरे मेरी संतरे के दाने…
Read Moreमेरी कमला तो रोये ना, ओ…. सुवा घर ऊंल में चम
उत्तराखंड के पुरुषों का रोजी-रोटी के लिये पहाड़ को छोड़ना और सेना में भर्ती होना एक आम बात है। पति के सेना में होने से उसकी पत्नी पर क्या बीतती है इस पर हमने गोपाल बाबू गोस्वामी द्वारा गाये गीतों कैले बाजे मुरुली, घुघुती ना बासा जैसे गीतों के द्वारा चर्चा की थी। आज हम गोपाल बाबू के जिस गीत की चर्चा कर रहे हैं उसमें एक पति युद्ध भूमि की ओर प्रस्थान कर रहा है, और उसको छोड़ने को आई पत्नी रो रही है। अपनी पत्नी को दिलासा देता…
Read Moreम्यर घर छो रंगीलो, घरवाली रंगीली
गोपाल बाबू गोस्वामी ने अनेक विषयों पर आधारित गीत गाये। आज प्रस्तुत है परिवार नियोजन पर गाया हुआ उनका एक गीत, जिसमें उन्होने यह बताने की कोशिश की है एक छोटा-परिवार किस तरह से सुखी व सम्पन्न है। इस तरह की थीम पर आधारित गाने बहुत कम ही देखने को मिलते हैं लेकिन गोपाल दा तो फिर गोपाल दा ही ठहरे। भावार्थ : मेरा घर कितना अच्छा है, मेरी पत्नी कितनी सुखी है, मेरा छोटा सा परिवार है और मेरा मन खुश है निश्चिंत है। हमारे परिवार में सिर्फ दो…
Read Moreडाल्यूं ना काटा चुचो डाल्यूं ना काटा
उत्तराखण्ड के लोगों के लिये वन बहुत महत्वपूर्ण हैं और इनका संरक्षण यहां की संस्कृति का हिस्सा रहा है। सरकार द्वारा चलाई जा रही वनसंरक्षण और वृक्षारोपण की योजनाएं अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो पा रही हैं, इसका कारण प्रमुखत: यह है कि आम जनता की भावनाऐं इन योजनाओं से नहीं जुड़ पाती है। सेमिनारों और गोष्ठियों में भाषण देकर इन परियोजनाओं में सफलता मिल जायेगी, ये सोचना बेमानी है। वनसंरक्षण और वृक्षारोपण तभी सफल हो पायेगा जब इसके लाभ और अनियन्त्रित वन कटान के दुष्प्रभावों के प्रति जनता…
Read Moreधन मेरो पहाड़ा मैं तेरी बलाई ल्यूंल
“धन मेरो पहाड़ा मैं तेरी बलाई ल्यूंल” गोपाल बाबू गोस्वामी द्वारा एक ऐसा गाना है जिसमें उनका अपने देश भारत और अपने पहाड़ के प्रति प्रेम परिलक्षित होता है। वैसे यह गाना उनके द्वारा गाए हुए गानों की तुलना में छोटा है पर इसमें जो विचार हैं वह बहुत बड़े हैं। वह अपने देश व अपने पहाड़ के लिये क्या क्या करने की तमन्ना रखते हैं वही इस गाने में बताया गया है। भावार्थ : मेरे देश भारत मैं तुझ पर बलि जाऊंगा, मेरे पहाड़ मैं तुझ पर बलि जाऊँगा।…
Read Moreआज यो मेरी सुणो पुकारा, धात लगुंछो आज हिमाला
आज जब हर तरफ लोग ग्लोबल वार्मिग की बात कर रहे हैं, वन बचाओ की बातें की जा रही हैं, हिमालय बचाओ का नारा लगाया जा रहा है वहीं गोपाल बाबू गोस्वामी ने बहुत पहले ही अपने एक गाने के माध्यम से इस संदेश को देने की कोशिश की है। अपने इस गाने में उन्होने हिमालय, पशु-पक्षी, पेड़ों द्वारा लगायी जा रही आभासी आवाजों के माध्यम से पर्यायवरण असंतुलन का एक चित्र प्रस्तुत किया है। भावार्थ : आज आकाश-धरती तड्प रहे है, हिमालय झुलस गया है, जंगल जल रहे हैं,…
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