[नया साल शुरु होते ही हम अपने कलैंडर बदल लेते हैं। लेकिन क्या आपको मालूम है कि कलैंडर की शुरुआत कैसे हुई? क्यों 1 जनवरी से ही वर्ष का आरम्भ माना जाता है? क्या किसी वर्ष में 365 की जगह 445 दिन भी थे? क्या किसी महीने में मात्र 21 दिन भी थे? विश्व में कितने तरह के कलैंडर प्रचलित हैं? भारतीय पंचांग की शुरुआत कैसे हुई? इन्ही प्रश्नों का उत्तर जानने के लिये हम एक श्रंखला प्रकाशित कर रहे हैं जिसमें आपको इन सभी प्रश्नों का उत्तर मिल जायेगा।…
Read MoreCategory: विज्ञान
Science Related Articles/Stories (विज्ञान आधारित लेख व कहानियाँ)
उनके भी हैं अंदाजे़ बयां और…
अपनी बात दूसरों को समझाने के लिए हम क्या कुछ नहीं करते! बोलते हैं, आवाज देते हैं, मुख मुद्राएं बदलते हैं, शरीर की भाव-भंगिमाएं बनाते हैं, स्वागत करने के लिए गले लगाते हैं, हाथ मिलाते हैं, और विदा करने के लिए हाथ हिलाते हैं। यानी, येन-केन प्रकारेण अपनी बात दूसरों को समझा देते हैं। लेकिन, इस विशाल दुनिया में केवल हम ही तो नहीं हैं, हमारे लाखों हमसफर भी हमारे साथ इसी दुनिया में जीवन का सफर तय कर रहे हैं। वे कैसे समझाते होंगे अपने साथियों को अपनी बात?…
Read Moreअनजान से बना महान
रविवार था। छुट्टी का दिन। बच्चों ने शाम को ही देवीदा से बात करके तय कर लिया था कि सुबह सैर पर निकलेंगे। गार्गी के घर पर मिलने की बात हो गई। देवीदा ठीक समय पर पहुंच गए। लेकिन, घर के सामने उदास बैठी गार्गी को देख कर चौंक गए। पूछा, “तुम तो सैर के लिए सबसे ज्यादा खुश थीं, गार्गी। अब क्या हो गया? उदास क्यों हो?” गार्गी बोली, “बस यों ही देवीदा…” “बस यों ही तो नहीं है। कोई न कोई बात जरूर है।” देवीदा बोले। तब तक…
Read Moreतो, बस जाएंगे जाकर कहीं और…
विश्वविख्यात वैज्ञानिक स्टीफेन हॉकिंग की राय मानें तो मानव जाति को अपना अस्तित्व बचाने के लिए अब ग्रह-उपग्रहों पर बसने की तैयारी शुरू कर देनी चाहिए। मानव की अपनी करतूतों से धरती का जो हाल बेहाल होता चला जा रहा है, उसे देख कर लगता नहीं कि हमारा यह निराला ग्रह कुछ सदियों के बाद रहने लायक रह जाएगा। जीने के लिए जो कुछ प्रकृति ने दिया था, उसे हम विकास की बेतहाशा दौड़ में बर्बाद करते जा रहे हैं। हवा में दिन ब दिन और अधिक जहर घुल रहा…
Read Moreजब चली बात फूलों की
पता है दोस्तो, एक समय ऐसा भी था जब धरती पर फूल नहीं थे! करोड़ों वर्ष पहले की बात है। धरती पर चारों ओर बड़े-बड़े दलदल फैले हुए थे। उनमें ऊंचे-ऊंचे मॉस और फर्न के पेड़ उगते थे। दलदलों में विशालकाय डायनोसॉर विचरते थे। फिर ऐसे पेड़ों का जन्म हुआ जिनमें काठ के फल और बीज बने। चीड़, देवदार उन्हीं के वंशज हैं। लेकिन, तेरह-चौदह करोड़ वर्ष पहले ऐसे पेड़-पौधों का जन्म हुआ जिनमें फूल खिल उठे। दोस्तो, तब आदमी भी आदमी कहां था? हमारे पूर्वज बंदर थे। वह बंदरों…
Read Moreलाइकेन
दोस्ती हो तो लाइकेन जैसी! हां दोस्तो, प्रकृति में लाइकेन अटूट दोस्ती का बेमिसाल नमूना है। इसमें दो दोस्त अटूट बंधन में बंध जाते हैं। दोस्ती का ऐसा बंधन जो जीते-जी टूट नहीं सकता। इस दोस्ती के कारण उनको पहचानना तक कठिन हो जाता है। इस दोस्ती में वे बिल्कुल नया रूप रख लेते हैं और ‘लाइकेन’ बन जाते हैं। जीवन भर एक दूसरे का साथ निभाने वाले ये दो दोस्त हैं- शैवाल यानी एल्गी और फफूंदी यानी फंजाई। ये दोनों ही पौधे हैं। फफूंदी रंगहीन होती है और बारीक…
Read Moreनीला कुरिंजी
दोस्तो, बताओ तो जरा फूल कब खिलते हैं? साल भर? चलो मान लिया साल भर खिलते हैं। लेकिन, कौन-सा फूल कब खिलता है? कुछ फूल गर्मियों में खिलते हैं, कुछ वर्षा ऋतु में, कुछ सर्दियों में और बहुत सारे फूल वसंत ऋतु में। ठीक है? लेकिन, एक फूल ऐसा भी है जो 12 वर्ष बाद खिलता है। सन् 2006 में वह दक्षिण भारत के कोडइकनाल, नीलगिरी, अन्नामलाई और पलनी की पहाड़ियों में 12 वर्ष बाद खिला। अगस्त से दिसंबर तक तमिलनाडु में क्लावररई से केरल में मुन्नार के पास वट्टावडा…
Read More