विश्व महिला शीर्ष सम्मेलन निधि, जेनेवा के ‘ग्राम्य जीवन में रचनात्मक पुरस्कार’ से सम्मानित। ‘चिपको आन्दोलन’ की जननी दशौली ग्राम स्वराज्य मंडल की सक्रिय सदस्य। बछेर गाँव में बिजली की सुविधा के लिए महिलाओं को संगठित किया। महिला मंगल दल की अध्यक्षा। हिंदुकुश हिमालय के देशों की महिलाओं के संगठन ‘हिमवंती’ की उत्तराखण्ड क्षेत्र की संयोजक। जल, जंगल और जमीन जैसे प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण तथा विवेकपूर्ण दोहन के लिए चल रहे विभिन्न आन्दोलनों में सक्रिय भूमिका।
Read MoreCategory: पर्यावरण
Talents in the field of Environment (पर्यावरण के क्षेत्र से जुड़ी हुई प्रतिभायें)
संग्रामी देवी राणा
महिला मंगल दलों के सहयोग से पर्यावरण के प्रति जागरूकता, गांव में बिजली, पानी व शिक्षा, यातायात, सड़क पैदल मार्ग, 1970 की अलकनन्दा बाढ़ में श्री चण्डी प्रसाद भट्ट जी के सहयोग से बचाव एवं राहत कार्य, महिला मंगल दल का गठन, उजड़े गांव को हरा-भरा बनाया तथा अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के प्रयास किए। ‘वर्ल्ड वुमैन 1999’ का सम्मान पाने वाली विश्व की 34 वीं और भारत की 5 महिलाओं में एक।
Read Moreए.डी. मौडी
द्वितीय विश्वयुद्ध में भारतीय सेना में कार्यरत. निदेशक, हिंदुस्तान लीवर लिमिटेड. संस्थापक सदस्य- प्ब्प्डव्क्. सदस्य, योजना आयोग, 1979-80. विकास परियोजनाओं हेतु वरिष्ठ सलाहकार, जी.टी.जेड., आर्थिक सहयोग मंत्रालय, जर्मनी. चेयरमैन, सेन्ट्रल हिमालयन ईको डेवलपमेंट ऐसोसिएशन (चिया), 1980-91। पांच पुस्तकें प्रकाशित।
Read Moreसच्चिदानन्द भारती
चिपको जैसे सामाजिक तथा पर्यावरण आन्दोलन के कार्यकर्ता, दूधातोली लोक विकास संस्थान, बिनसर मंदिर समिति, चन्द्र सिंह गढ़वाली स्मारक निर्माण समिति के संस्थापक- संयोजक। कीनिया की संस्था इन्वायरनमेन्टल लियाजो सेन्टर द्वारा ‘संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सेवक’ पुरस्कार। उफरैखाल क्षेत्र में वन एवं जल संरक्षण का अनूठा प्रयोग जिसने एक सूखी जलधारा के प्राण लौटा दिए। ‘जल तलाई’ नाम से चर्चित यह अभियान वर्षा जल संग्रहण के द्वारा उफरैखाल और आस पास के गांवों के जलस्रोतों का पुनर्संभरण कर सका है। वन एवं जल संरक्षण के बाद ‘ग्राम देवता’ अभियान के तहत श्रमदान द्वारा गांवों में सामूहिकता का चेतना वापस लौटाने का प्रयास।1981 में ‘बदरीकाश्रम’ नामक पुस्तक का प्रकाशन।
Read Moreचण्डी प्रसाद भट्ट
सहकारिता आधारित आन्दोलन के प्रारम्भकर्ता, दशौली ग्राम स्वराज्य मण्डल के संस्थापक, ‘चिपको आन्दोलन’ के सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्यकर्ता, पेड़ों को बचाने के साथ वृक्षारोपण तथा पर्यावरण चेतना के आन्दोलन को फैलाने में महत्वपूर्ण योगदान। दर्जनों पुरस्कारों से सम्मानित। विभिन्न राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय समितियों के सदस्य। वर्तमान में राष्ट्रीय वन आयोग तथा अन्तरिक्ष विभाग की समिति के सदस्य। सैकड़ों लेख तथा अनेक पुस्तकें प्रकाशित।
Read Moreहर्षवन्ती बिष्ट
नन्दादेवी शिखर आरोहण, 1981; एवरेस्ट अभियान, 1984 में हिस्सेदारी. 2. अर्जुन पुरस्कार (1981) तथा 1984 में; उ.प्र. उच्च शिक्षा निदेशालय का स्वर्ण पदक; गढ़वाल हिमालय में पर्यटन विकास एवं पर्यावरण पर स्व. सुनील चन्द्र फैलोशिप (2000)
Read Moreसुन्दर लाल बहुगुणा
अस्पृश्यता निवारण के लिए टिहरी में 1950 में ठक्कर बाबा छात्रावास की स्थापना तथा 1957 में गंगोत्री, यमुनोत्री व बूढ़ाकेदार के मंदिरों में हरिजन प्रवेश। ‘चिपको आन्दोलन’ का संदेशवाहक बना तथा पारिस्थितिकी आन्दोलन का स्वरूप दिया। जिसकी अन्तर्राष्ट्रीय मान्यता के रूप में 1981 में स्टाकहोम का वैकल्पिक नोबेल पुरस्कार मिला। उत्तराखण्ड के पर्वतीय जिलों में 1000 मी से ऊपर के क्षेत्रों में हरे पेड़ों की व्यापारिक कटाई पर पाबन्दी लगी, जो हि.प्र. और उत्तराखण्ड में अब भी कायम है। इससे पूर्व 1965 से 1971 तक शराबबन्दी आन्दोलन में सक्रिय|1981-83, पारिस्थितिकी चेतना के लिए कश्मीर में कोहिमा तक की 4870 किमी. की पैदल यात्रा की।
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