राकेश चन्द्र नौटियाल

अपनी अपंगता से निराश न होकर विषम परिस्थितियों से जूझते हुए भाई-बहिनों की शिक्षा-दीक्षा व जीवन में व्यवस्थित होने में सहायक रहना। स्वयं का जीवन व्यवस्थित करना। 30 वर्ष के अध्यापन अनुभव के अलावा दो कविता एवं एक कहानी संग्रह का प्रकाशन तथा दो पुस्तकें संपादित कीं। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में दर्जनों निबंध एवं शोध पत्र प्रकाशित। ‘नैतिकी’ मासिक पत्रिका तथा उत्तराखण्ड शोध संस्थान की ‘शिक्षा शोध पत्रिका’ का सह संपादन। सीमान्त खबर (साप्ताहिक) का साहित्यिक संपादक। सदस्य, सलाहकार समिति, इंस्टीट्यूट ऑफ टैक्नालॉजी एण्ड मैनेजमेंट, चकराता रोड, देहरादून।

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प्रेम सिंह नेगी

हिन्दी की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं, जैसे धर्मयुग, सारिका, साप्ताहिक हिन्दुस्तान, कहानी, रविवार, दैनिक हिन्दुस्तान, दैनिक अमर उजाला आदि में लगभग पांच दर्जन कहानियाँ प्रकाशित। साप्ताहिक हिन्दुस्तान द्वारा आयोजित सर्वभाषा कहानी प्रतियोगिता में ‘अठमंगली’ कहानी को पुरस्कार। अब तक चार कहानी संग्रह और एक उपन्यास छप चुके हैं। कुछ कहानियाँ अन्य प्रादेशिक भाषाओं में भी प्रकाशित। नेशनल बुक ट्रस्ट से बाल रचनाओं का नव साक्षरों के लिए प्रकाशन। ‘युगमंच’ तथा ‘उमंग’ संस्थाओं द्वारा कुछ कहानियों का मंचन। कुछ संस्थाओं द्वारा साहित्य सेवा के लिए सम्मानित।

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मोहन चन्द तिवारी

अब तक प्राच्य विद्या, इतिहास तथा संस्कृति से सम्बंधित छः पुस्तकें तथा सौ से भी अधिक शोधलेखों का राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन। दिल्ली संस्कृत अकादमी द्वारा ‘संस्कृत शिक्षक’ पुरस्कार। ‘विद्या रत्न सम्मान’। ‘आचार्य रत्न देशभूषण सम्मान’। राष्ट्रपति सम्मान। सामाजिक संस्था बाल सहयोग’ की प्रबंध समिति का सदस्य। दिल्ली संस्कृत अकादमी की कार्यकारिणी का सदस्य।

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महेश दर्पण

हिन्दी अकादमी द्वारा ‘साहित्यकार सम्मान’, ‘कृति पुरस्कार’, ‘नेताजी सुभाषचंद्र बोस सम्मान’, ‘सी.एल. नेपाली पत्रकारिता सम्मान’, ‘पीपुल्स विक्ट्री पत्रकारिता सम्मान’, ‘सार्थक पत्रकारिता सम्मान’ प्राप्त। अब तक पांच कहानी संग्रह, एक आलोचना, एक साक्षात्कार, तीन बाल एवं प्रौढ़ साहित्य की पुस्तकें तथा बारह खण्डों में ‘बीसवीं शताब्दी की हिन्दी कहानियां’ सहित ‘स्वातंत्रयोत्तर हिन्दी कहानी कोश’ और सात अन्य पुस्तकें सम्पादित। सम्प्रतिः टाइम्स ऑफ इण्डिया प्रकाशन समूह के दैनिक सान्ध्य टाइम्स के सम्पादकीय विभाग में।

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गिरीश तिवारी ‘गिर्दा’

आजीविका चलाने के लिए क्लर्क से लेकर वर्कचार्जी तक का काम करना पड़ा। फिर संस्कृति और सृजन के संयोग ने कुछ अलग करने की लालसा पैदा की। अभिलाषा पूरी हुई जब हिमालय और पर्वतीय क्षेत्र की लोक संस्कृति से सम्बद्ध कुछ करने का अवसर मिला। प्रमुख नाटक, जो निर्देशित किये- ‘अन्धायुग’, ‘अंधेरी नगरी’, ‘थैंक्यू मिस्टर ग्लाड’, ‘भारत दुर्दशा’। ‘नगाड़े खामोश हैं’ तथा ‘धनुष यज्ञ’ नाटकों का लेखन किया। कुमाउँनी-हिन्दी की ढेर सारी रचनाएँ लिखीं । गिर्दा ‘शिखरों के स्वर’ (1969), ‘हमारी कविता के आँखर’ (1978) के सह लेखक तथा ‘रंग डारि दियो हो अलबेलिन में’ (1999) के संपादक हैं तथा ‘उत्तराखण्ड काव्य’ (2002) के रचनाकार हैं। ‘झूसिया दमाई’ पर उन्होंने अपने सहयोगियों के साथ एक अत्यन्त महत्वपूर्ण संकलन-अध्ययन किया है। उत्तराखण्ड के कतिपय आन्दोलनों में हिस्सेदारी की। कुछेक बार गिरफ्तारी भी हुई।

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अरुण प्रकाश ढौंडियाल

अब तक एक आलोचना ग्रंथ, तीन उपन्यास, दो कहानी संग्रह व एक कविता संग्रह प्रकाशित। कानपुर से प्रकाशित पत्रिका ‘कोमा’ में सहयोगी संपादक। ‘स्वतंत्रता संग्राम में उत्तराखण्ड का योगदान’ स्मारिका के प्रधन संपादक। एन.सी.ई.आर.टी. में कई वर्षों तक रिसोर्स परसन। ‘अखिल भारतीय लघु पत्र-पत्रिका समन्वय मंच’ के महासचिव। ‘आंचलिक सेवा संस्थान’ के संस्थापक-संरक्षक। अनेक पुरस्कारों से सम्मानित।

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विनय मार डबराल

अब तक एक हजार से अधिक कहानियां तथा 13 उपन्यास लिखे हैं। संग्रह के रूप में 11 कहानी संग्रह, 2 उपन्यास व 3 आलोचनात्मक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। युवाओं के नाम संदेशः प्रत्येक मनुष्य के पास कोई न कोई प्रतिभा अवश्य होती है। हमें अपनी प्रतिभा को दबाना नहीं चाहिए, बल्कि उसे देशहित में लगाना चाहिए। फल तो स्वयं मिलता है। उसे मांगने की आवश्यकता नहीं।

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