शेर सिंह पांगती

शिक्षण-अध्यापन 33 साल। ब्रजेन्द्रलाल शाह के सत्संग में रहने से। ‘जोहार के स्वर’ (1984), ‘उत्तराखण्ड के भोटांतिक’, ‘स्वतंत्रता सेनानी का जीवन संघर्ष’ (1994), ‘मुनस्यारी लोक और साहित्य’ (2001)। दो किताबें प्रकाशनाधीन। दो बार कैलास मानसरोवर, एवरेस्ट बेस तथा न्यूजीलैण्ड आदि स्थानों की यात्राएँ की। मिलम में जड़ी, बूटी उत्पादन का प्रयास। 2002 में अपने सीमित संसाधनों से जोहार पर केन्द्रित संग्रहालय की स्थापना। 1956 से कुमाउँनी रामलीला का दरकोट (मुनस्यारी)में संचालन।

Read More

पूर्णिमा पाण्डे

उ.प्र. राज्य संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार. रोटरी क्लब लखनऊ द्वारा सम्मानित. नेशनल स्कॉलरशिप फॉर हायर स्टडीज इन कथक डान्स, भारत सरकार. कथक नृत्यांगना के रूप में कनाडा, अमेरिका, जर्मनी, फ्रांस, दक्षिण अमेरिका, सूरीनाम, गयाना एवं श्रीलंका आदि देशों में भारत का प्रतिनिधित्व किया. भातखण्डे संगीत महाविद्यालय में कथक नृत्य की शिक्षिका के रूप में प्रवक्ता, रीडर, प्रोफेसर व निदेशक आदि पदों पर रहते हुए अनेक विद्यार्थियों को सफल प्रशिक्षण दिया. विद्यार्थियों के लिए ‘नृत्यांजलि’ नामक ऑडियो कैसेट तैयार किया. ‘फ्लेमेंको का एक तुलनात्मक अध्ययन और कथक’ विषय पर शोध प्रबंध पीएच.डी. डिग्री हेतु प्रस्तुत। 7वें विश्व सम्मेलन पारामारिबो, सूरीनाम में भारत का प्रतिनिधित्व.

Read More

चन्द्र मोहन पपनै

पर्वतीय कला केन्द्र के सचिव, चीन, कोरिया, हांगकांग व थाइलैंड की यात्रा द्वारा भारतीय सांस्कृतिक सम्बंध परिषद, भारत सरकार। वर्तमान में दिल्ली फैडरेशन ऑफ न्यूजपेपर इम्प्लाइज के अध्यक्ष, उत्तरांचल विकास परिषद के सचिव, पाँच पुस्तकों का लेखन, उत्तरांचल पॉप के अनेक गीतों की रचना, विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेखन, अनेक संस्थाओं से सम्बंध, 1979 से समाचारपत्र इंडियन एक्सप्रेस, जनसत्ता में कार्यरत। वर्तमान में प्रकृत लोक पत्रिका के प्रबन्ध संपादक।

Read More

नरेन्द्र सिंह नेगी

उत्तराखण्डी लोक संगीत के सिरमौर।1974 से गढ़वाली लोकगीत/स्वरचित गीत गाने प्रारम्भ किए। 1978 से आकाशवाणी लखनऊ एवं नजीबाबाद के लिए गढ़वाली गीतों का गायन। दिल्ली व अल्मोड़ा केन्द्रों से भी गीतों का प्रसारण। 1982 से अब तक 26 ऑडियो कैसेट रिलीज। पारम्परिक लोक गाथाओं ;‘चक्रव्यूह भारत’ व ‘नौरता मण्डाण’ तथा मांगल गीतों -हल्दी हाथ, भाग 1 व 2 के ऑडियो संकलनों का संगीत-निर्देशन, संयोजन। 5 गढ़वाली फीचर फिल्मों तथा एक वीडियो फिल्म में संगीत-निर्देशन व गायन। उत्तराखण्ड व भारत के अनेक शहरों में मंचीय कार्यक्रमों की प्रस्तुति। अब तक तीन स्वरचित गढ़वाली गीत संग्रह ‘खुचकण्डी’, ‘गाण्यूं की गंगा स्याण्यू का समोदर’ और ‘मुट्ट बोटीकि रख’ प्रकाशित।

Read More

जीत सिंह नेगी

पहले-पहल हिंदी में गेय-गीतों की रचना की। बाद में उत्तराखण्ड की संस्कृति को आधार बना कर गीत लिखे और उनकी धुनें बना कर गाईं। ‘तू ह्नील वीरा…’ अत्यन्त लोकप्रिय गीत रहा। नेशनल ग्रामोफोन कम्पनी, बम्बई में कुछ रिकार्ड तैयार किए तथा बाद में हिज मास्टर्स वाइस एण्ड कोलम्बिया ग्रामोफोन कम्पनी द्वारा गढ़वाली गीतों के रिकार्ड बने तथा गढ़वाली गीतों के टेप तैयार किये। आकाशवाणी व दूरदर्शन के लिए उत्तराखण्ड की संस्कृति, रीति-रिवाजों, समस्याओं व जीवन पर केन्द्रित गीत गाए और आज भी यह क्रम जारी है। ‘भारीमल’ (हिन्दी-गढ़वाली, 1950), ‘मलेथा की कूल’ –1974 (संवाद रिकार्डेड थे) और ‘रामी बौराणी’- बैले, जिसका वे फिल्मांकन करना 2चाहते थे- उनकी ऐतिहासिक रचनाएँ हैं। सरकारी, गैर-सरकारी संस्थाओं द्वारा सम्मानित।

Read More