हुड़क्या बौल

हुड़क्या बौल कृषि गीतों का सबसे प्रमुख प्रकार है। यह गीत मुख्यतः यह रोपाई के समय गाये जाते हैं। “बौल” का शाब्दिक अर्थ है श्रम,मेहनत। हुड़्के के साथ श्रम करने को हुड़क्या बौल या हुड़की बौल नाम दिया गया है। सामुहिक रूप से खेत में परिश्रम करते हुए लोगों के काम में सरसता स्फूर्ति तथा उमंग का संचार करने का यह अत्यंत सुन्दर माध्यम है। इस कृषि गीत में एक व्यक्ति हाथ में हुड़का लेकर उसे बजाते हुई गीत गाता है। इस व्यक्ति को हुड़किया कहा जाता है। हुड़के की थाप पर हुड़किया काम करने वाले स्त्री-पुरुषों को प्रोत्साहित करने का काम करता है। यह एक तरह का मनोवैज्ञानिक प्रयोग है, जिससे काम करते-करते थकान का अनुभव भी न हो और काम भी हो जाय। हुड़के की थाप पर श्रम करते हुए हाथ-पैरों में एक यात्रिंक गति सी आ जाती है। हुड़किया, देवों की स्तुति, लोक गाथाओं और लोक गीतों को गाते-गाते लोगों को काम करने के लिये प्रोत्साहित करता है और लोग उसकी बातों से तथा इन गीतों से दुगुने जोश और लगन के साथ काम करते हैं।

इन गीतों का आरंभ ग्राम देवता-भूमिया की स्तुति से होता है । भूमिया से अच्छी खेती होने की कामना की जाती है। इसके पश्चात गीतों के माध्यम से आकाश, पृथ्वी और स्वर्ग के देवताओं को आमंत्रित किया जाता है। हुड़्क्या फिर लोक कथायें सुनाता है। अंत में कार्य समाप्ति के साथ कृषकों की मंगल कामना करते हुये उन्हें आशीर्वाद देकर गीत खत्म हो जाता  है।

हुड़्क्या बौल में गाये जाने वाले कुछ गीत

भूमि के देवता “भूमियां” से अनुकूल एवं वरदायी बने रहने की प्रार्थना की जा रही है।

भूमि का भूमिका, भूमियां हो वरदेणा होया,
पांच भाई पाण्डव हो वरदेणा होया।

खेत में काम करने से पहले कार्य सिद्धि के लिये गणेश जी तथा स्थानीय देवों की पूजा गीत के माध्यम से की जा रही है।

खोलिका गणेशा, हां रे हां, गणेशा देवा-देवा!
सफल है जाये हां रे हां, गणेशा हां रे हां।
धार का चमुंवा देवा हो, चमुवा देवा-देवा।
सुफल है जाये हां रे हां, चमुंआ देवा-देवा,
ओ भूमि का भूमियाला देवा हां, भूमियाला देवा-देवा,
सफल है जाया, हां रे हां, भूमियाला देवा-देवा।

एक और गीत

जिरि झुमका द रे चांदी खेता मांजा रे, जिरि झुमका रुपाई है रे, छे रे,
जिरि झुमका दरे रुपाई करला रे, जिरि हो झुमका यूं दिन यूं मास हो,
जिरि हो झुमका भेटन लै जाया हो॥

खेत में धान की रोपाई लगाते समय यह गीत गाया जाता है। भूमिया देवता से उपहार स्वीकार करने की प्रार्थना की जा रही है।

ए जिमि का जिमिदार, भूमि का भूमिदार,
तुमरि सेरि बौल, होलो, तुमि, दैणा होया हो,
धरती धरम राजा, तुमि सुफल है जाया हो।
यो गगन की सेरि होली रोपार-तोपारा हो,
हलिया-बल्द आया हे भूमि-भूमियां हो,
श्येला बिदौ दिन दिए हाथ दिए छाया हो॥

अंत में प्रधान गायक भूस्वामी को आशीर्वाद देता है।

जीरया जीरया जनरियो गोड़ाई तोपाई।
या ऋतु यो मास भेटने रया हो।

अब क़ृषि योग्य कम भूमि होने, कृषि के प्रति लोगों के उत्साह में कमी और लोगों में सामूहिक रुप से कार्य करने के बजाय मजदूरों से काम करवाने की ललक से यह लोक विधा कहीं खो सी रही है। लोक संस्कृति के इस अभिन्न अंग का आज संरक्षण किये जाने की आवश्यकता है।

हुड़्क्या बौल पर एक वीडियो क्लिप (सौजन्य-मोहन बिष्ट)

हुड़्क्या बौल पर एक न्यूज क्लिप (सौजन्य-हेम पंत)

Related posts

2 Thoughts to “हुड़क्या बौल”

  1. उत्तराखण्ड की लुप्त होती लोक संस्कृति की एक विधा है हुड़्क्या बौल, लेकिन उचित संरक्षण और संवर्द्धन के अभाव में, लोगों में आपसी तालमेल की कमी, अपने-अपने काम के लिये ग्रामवासियों के बजाय, अपने-अपने संसाधनों पर निर्भरता को ज्यादा तरजीह देने से यह कृषि लोक कला आज दम तोड़ती नजर आती है। अब तो कुशल हुड़का वादक भी बहुत कम मिलते हैं….उत्तराखण्ड की अधिकांश लोक कलायें अलिखित हैं और अधिकतर लोक कलायें जागर हो, हुडक्या बौल हो, चांचरी हो झोड़े हो या कोई भी कला हो सब अलिखित है और पीढी दर पीढी मौखिक रुप से विरासत में चली आ रही है। जिससे निश्चित तौर पर इसकी मौलिकता पर प्रभाव पड़ रहा है।

    अब जब हमारा अलग राज्य बन गया है और अलग विभाग भी है तो संस्कृति विभाग को चाहिये कि इन सब चीजों का अभिलेखीकरण कर राज्य स्तर पर एक संग्रहालय में संग्रहीत करे। संस्कृति विभाग को इस ओर गंभीरता से सोचना चाहिये और इनके संरक्षण और संवर्धन के लिये प्रयास कर मूर्त रुप देना चाहिये। जब हम जैसे बेकार और अनपढ़ लोग इस बारे में सोच ले रहे हैं तो उत्तराखण्ड के प्रबुद्ध एवं विद्वान मंत्री, सचिव, विभागाध्यक्ष इस बारे में क्यों नहीं सोच पा रहे, यह यक्ष प्रश्न है।

  2. आपका प्रयास बहुत सराहनीय है।

    धन्यवाद – गजेन्द्र बिष्ट

Leave a Comment