नैनीताल समाचार : अखवार ही नहीं आन्दोलन भी

आज का जमाना समाचारों व जानकारियों के विस्फोट का जमाना है। आज हमारे पास, कहने को, समाचार व जानकारी प्राप्त करने के अनेक साधन उपलब्ध है। अब पहले की तरह नहीं है जब आप को दिन में दो तीन बार प्रसारित होने वाले सरकारी समाचारों पर निर्भर रहना पड़ता था या फिर निष्पक्ष समाचारों के बी.बी.सी. रेडियो की प्रतीक्षा करनी पड़ती थी। आज हमारे पास 24 घंटे चलने वाले वाले समाचार चैनल हैं, थोड़ी थोड़ी देर में आने वाले तोड़ू समाचार (ब्रेकिंग न्यूज) हैं। इन सब के बावजूद भी यदि आप समाचारों का स्तर देखें तो पायेंगे कि आजकल समाचार मैट्रो शहर या चंद बड़े शहरों तक ही सीमित रह गये हैं। इन समाचार पत्रों में आपको यह तो पता लग सकता है ऐश्वर्या राय ने जन्माष्टमी कैसे और किसके साथ मनायी लेकिन यदि आप उत्तराखंड में हुए किसी भू-स्खलन की जानकारी पाना चाहें या बादल फटने के बाद की स्थितियों,परिस्थितियों का जायजा लेना चाहें तो आपको निराशा ही हाथ लगेगी। चाहे बड़े बड़े चैनल हों या समाचार पत्र यह केवल कुछ बड़े शहरों तक ही सीमित होकर रह गये हैं, जहाँ इनके पत्रकार आसानी से जा सकें और रपट दे सकें। ऐसे में आंचलिक समाचार पत्रों का महत्व बहुत बढ़ जाता हैं। नैनीताल समाचार एक ऐसा ही समाचार पत्र है जो पिछ्ले बत्तीस सालों से अपने इस कर्तव्य को निभा रहा है।

ns-logo आज समाचार पत्र निकालना व चलाना एक धंधा बन गया हैं। सरकारी विज्ञापनों की बंदर बाट में अपने लिये मोटी रकम हासिल करने के लिये आपके पास एक अदद रजिस्टर्ड समाचार पत्र होना चाहिये, और सरकारी अधिकारियों को खिलाने पिलाने की योग्यता। ऐसे में आप क्या लिखते हैं, क्यों लिखते हैं, कौन आपका लिखा पढ़ता है, कितने लोग पढ़ते हैं यह बातें बेमानी हो जाती हैं। इसलिये आज धड़ल्ले से समाचार पत्र निकाले जा रहे हैं और नैनीताल समाचार पत्र की ही एक रपट के अनुसार अकेले देहरादून से कोई 250 से ज्यादा समाचार पत्र निकल रहे हैं। ऐसे में नैनीताल समाचार एक ऐसा पाक्षिक समाचार पत्र है जो अपने अस्तित्व को बचाने के संकट से जूझता, लड़खड़ाता लेकिन पत्रकारिता के उच्च आदर्शों को स्थापित करता और खरी खरी बातें करता पिछले 32 सालों से अनेक लोगों तक एक अदद सच पहुंचाता रहा है। यह एक ऐसा समाचार पत्र है जो व्यवसायिकता के लिये नहीं वरन उत्तराखंड के जन जन की आवाज लोगों के कानों तक पहुंचाने के लिये पिछले 32 सालों से लगा हुआ है। पिछ्ले बत्तीस सालों में उत्तराखंड से जुड़ा कोई ऐसा मुद्दा नहीं जिसे नैनीताल समाचार पत्र ने ना छुआ हो। इसलिये यह एक मात्र समाचार पत्र नहीं एक आन्दोलन है जिसे इसके संपादक राजीव लोचन साह जी पिछले 32 सालों से अपने सहयोगियों के साथ नेतृत्व दे रहे हैं।

ns नैनीताल समाचार का पहला अंक 15 अगस्त 1977 को निकला था और तब से यह लगातार निकलता आ रहा है। बीच बीच में इसे बन्द किये जाने के बारे में भी सोचा गया लेकिन इसके पाठकों के सहयोग और उनकी इच्छा को देखते हुए इसे बन्द करना संभव ना हो पाया। अपने पच्चीस वर्ष पूरे करने पर नैनीताल समाचार के कुछ प्रमुख लेखों का संकलन एक 400 पृष्ठ की पुस्तक के रूप में भी छ्पा था। यह पुस्तक उत्तराखंड के मामलों में रुचि लेने वालों के लिये एक महत्वपूर्ण व उपयोगी पुस्तक है।

नैनीताल समाचार अपने होली अंकहरेला अंक के लिये भी अपने पाठकों के बीच बहुत प्रसिद्ध है। इसका चिट्ठी पत्री स्तंभ और स्वस्ती श्री स्तंभ पाठको की अभिव्यक्ति को स्वर देते आये हैं। पिछले बत्तीस सालों में उत्तराखंड का कौन सा ऐसा महत्वपूर्ण व्यक्ति होगा जिसका पत्र नैनीताल समाचार में किसी ना किसी रूप में ना छ्पा हो।  इसी तरह समय समय पर समाचार अपने विशेषाँक भी निकालते रहा है। सन 1994 के राज्य आन्दोलन के दौरान नैनीताल समाचार ने “सांध्यकालीन  उत्तराखंड बुलेटिन‘ का प्रयोग किया। इस दौरान 3 सितम्बर 1994 से 25 अक्टूबर 1994 के बीच नैनीताल में दो स्थानों पर रेडियो बुलेटिन की तर्ज पर यह बुलेटिन पढ़ा गया। चाहे इतिहास हो, पर्यटन हो, पर्यावरण हो, जल-जंगल-जमीन की बात हो, भ्रष्टाचार, संस्मरण हो या यात्राओं का वर्णन हो सभी विषय़ नैनीताल समाचार में समय समय पर स्थान पाते रहे हैं।

नैनीताल समाचार के 32 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में हमने इसके संपादक श्री राजीव लोचन शाह जी से अनुरोध किया कि वह समाचार के शुरुआती दिनों के बारे में और आगे की योजनाओं के बारे में बतायें। उन्होंने बताया कि नैनीताल समाचार के पुराने अंकों को शीघ्र ही इंटरनैट पर भी लाने की योजना है। यह नैनीताल समाचार पत्र के पुराने व नये दोनों तरह के पाठकों के लिये एक अमूल्य तोहफा होगा और अधिक से अधिक लोग सच को अपने असली रूप में पाठकों तक पहुचाने की इस मुहिम में सहयोग दे सकेंगे। यह सभी अंक नैनीताल समाचार की वैब साइट पर उपलब्ध होंगे।

राजीव लोचन जी ने समाचार के शुरुआती दिनों के बारे में बताया

यह बताना कि समाचार की शुरूआत कैसे हुई, थोड़ा कठिन काम है। डी.एस.बी. महाविद्यालय से बी.एस-सी. करने के दिनों में कहानियाँ लिखने लगा था और उनमें कुछ सत्तर के आसपास हिन्दी की ‘नई कहानियाँ’ जैसी प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में छप भी गई थीं। तभी बटरोही से भी परिचय हुआ, जो उसी समय हिन्दी के अध्यापक बन कर डी.एस.बी. कॉलेज में आये थे। तब आज के बच्चों की तरह कैरियर की कोई सचेत प्लानिंग तो हुआ नहीं करती थी। सबसे अच्छे छात्र बी.एस-सी. के बाद फिजिक्स से एम.एस-सी. किया करते थे। मैं कुछ अंक कम रह जाने के कारण फिजिक्स की मेरिट लिस्ट में नहीं आ सका और इसी कारण अत्यन्त हताशा में था। तब बटरोही ने सुझाया कि हिन्दी में एम.ए. कर लो और फिर चाहो तो विज्ञान के किसी विषय में दुबारा एम.एस-सी. कर सकते हो। यह राय जँची।

हिन्दी में एम. ए. करने के शुरूआती दिन काफी अच्छे थे। विभागाध्यक्ष डॉ. राकेश के अतिरिक्त बटरोही, केशव दत्त रुवाली और ऋषिकुमार चतुर्वेदी जैसे बहुत अच्छे शिक्षक भी। लेकिन फिर जल्दी ही ऊब होने लगी। यहाँ तो तुलसीदास को उसी तरह पढ़ाया जाता है, जैसे इंटरमीडिएट में पढ़ाया जाता था। फिर इस एम.ए. करने का क्या फायदा ? जल्दी ही हताशा और उससे भी आगे अवसाद की स्थिति आ गई। अंधकारपूर्ण भविष्य का खौफ हावी होने लगा।

तभी संयोग से ज्ञानरंजन (उस समय के बहुत चर्चित कथाकार और बाद में ‘पहल’ के यशस्वी सम्पादक) सपरिवार नैनीताल आये और हमारे ही सैवॉय होटल में आठ-दस दिन रहे। उनसे बहुत कुछ सीखा-जाना। अपनी समस्या का जिक्र किया तो उन्होंने राय दी, ‘‘तुम तो पारिवारिक पृष्ठभूमि से सम्पन्न हो। एक प्रिटिंग प्रेस क्यों नहीं खोल लेते ? बाद में चाहो तो पुस्तकों के प्रकाशन के क्षेत्र में जा सकते हो।’’ सुझाव मुझे पसन्द आया और इसने उस अवसाद से बाहर आने में मेरी मदद की।

एम.ए. में कुछ ही अंकों से प्रथम श्रेणी रह गई। दरअसल एक पेपर बीमारी के कारण दे ही नहीं पाया था। डॉ. छैलबिहारी गुप्त ‘राकेश’ ने, जो इसी बीच हिन्दी के विभागाध्यक्ष से डी.एस.बी. के प्राचार्य हो गये थे, अध्यापन के क्षेत्र मौका दिलाने की जोरदार पेशकश की। तब ‘पहाड़ी-देशी’, ‘ठाकुर-ब्राह्मण’ जैसी संकुचित भावनाओं से कितने ऊपर होते थे हमारे गुरुजन ? मैं यह प्रस्ताव रखने के लिये आज भी उनका ऋणी हूँ। लेकिन मैंने दृढ़ता से मना कर दिया। उस एक क्षण ने मेरी जिन्दगी को हमेशा के लिये बदल दिया। अन्यथा शायद मैं बहुत से बहुत किसी विश्वविद्यालय में हिन्दी का विभागाध्यक्ष होकर रिटायरमेंट के दिन का इंतजार कर रहा होता! आज की तरह इतने तरह के ऊलजलूल कामों में नहीं फँसा होता।

फिर 1972 के जाड़ों में इलाहाबाद के उस जमाने के प्रख्यात व्यक्तित्व ‘जगाती बाबू’, जो रिश्ते में मेरे नाना होते थे और मेरी लेखकीय प्रतिभा के बड़े कायले थे, के माध्यम से बलरामपुर हाउस में हिन्दी के सुविख्यात कथाकार रमाप्रसाद घिल्डियाल ‘पहाड़ी’ के प्रेस में पहुँचा और छपाई का क-ख-ग-घ सीखा। सन् 1973 की बरसात में एक पुरानी ट्रेडिल मशीन के साथ राजहंस प्रेस की शुरूआत हो गई। हिन्दी पत्रिका निकालने की साध तो वर्षों से थी, कालेज में एम.ए. करते हुए भी सहपाठियों के उकसाने पर एक हस्तलिखित पत्रिका ‘आलोक’ का सम्पादन किया था। छोटे पत्र-पत्रिकाओं में स्फुट लेखन लगातार चलता था। लेकिन हिन्दी साहित्य का अध्येता होने के कारण इतनी समझ भी थी कि जल्दबाजी में पत्रिका निकालोगे तो आर्थिक रूप से बर्बाद होने की सम्भावना भी उतनी ही अधिक होगी। अतः दो-तीन साल प्रेस को जमा लो, ताकि वह पत्रिका का धक्का बर्दाश्त कर सके। बहरहाल, 1975 की शुरूआत में नाम के पंजीकरण के लिये आवेदन किया तो कुछ ही समय बाद इमर्जेंसी लग गई।  उस आतंक में जमी-जमायी पत्रिकायें बन्द होने लगीं तो नयी पत्रिका को रजिस्ट्रेशन क्या मिलना था। मार्च 1977 में इमर्जेंसी खत्म होने के बाद उस प्रार्थनापत्र का उत्तर आया और रजिस्ट्रार ऑफ न्यूजपेपर्स द्वारा ‘नैनीताल समाचार’ को स्वीकृति मिल गई। हालाँकि ‘नैनीताल समाचार’ नाम मेरी पहली प्राथमिकता में नहीं था। वह तो तीसरे नंबर पर था, पहले नंबर पर ‘देवदार’ था। उस शुरूआती यौवन में कोई राजनैतिक चेतना तो थी नहीं, एक ‘डाइजेस्ट’ जैसी पत्रिका का खाका दिमाग में था, जिसमें उस समय की ‘नवनीत’ की तरह सारे विषयों का समावेश हो, मगर अनुभवशून्यता के बावजूद यह आत्मविश्वास भी था कि पहाड़ से उस वक्त निकलने वाली सभी पत्रिकाओं से कहीं बेहतर पत्रिका मैं निकाल ले जाऊँगा।

जून 1977 में नैनीताल के तत्कालीन डी.एम. रविमोहन सेठी के सामने अखबार का डिक्लरेशन भरा। उन्हीं दिनों अपने एक मित्र के भतीजे हरीश पंत, जो पढ़ाई में बहुत अच्छे न होने के बावजूद साहित्यिक, कलात्मक और रंगकर्म की रुचियों वाले थे। वे सहर्ष इस अखबार में काम करने को तैयार हो गये। 15 अगस्त 1977 को मैंने, हरीश पंत ने कैण्ट बाजार में दुकान चलाने वाले एक पंजाबी युवक पवन राकेश के साथ नैनीताल समाचार की शुरूआत कर दी। उस वक्त तक हम बटरोही के अतिरिक्त एक स्थानीय लेखक नन्द किशोर भगत और कुछ ही वर्ष पूर्व अस्कोट-आराकोट अभियान से लौट कर अपनी ख्याति के झंडे गाड़ चुके शेखर पाठक, जो कुमाऊँ विवि में इतिहास पढ़ाने आ चुके थे, से ही परिचित थे। पहला अंक निकलते-निकलते शेखर के माध्यम से एक ओर लखनऊ के नवीन जोशी से सम्पर्क हुआ तो दूसरी ओर सुन्दरलाल बहुगुणा से। हरीश पंत के माध्यम से उसके रंगकर्म के गुरु गिरीश तिवाड़ी (‘गिरदा’ तो उन्हें बाद में ‘समाचार’ ने ही बनाया…… भगतदा, तरदा आदि के साथ-साथ) भी आ जुड़े। नवीन जोशी ने ‘प्रवासी की डायरी’ का लोकप्रिय धारावाहिक शुरू किया तो सुन्दरलाल जी ने उत्तराखंड के कोने-कोने में अपने परिचितों और न्यूज एजेंटों तक ‘समाचार’ को पहुँचाया।

इमर्जेंसी के तत्काल बाद ‘नैनीताल समाचार’ ताजी हवा के एक झोंके की तरह आया था। उत्तराखंड और प्रवास में रहने वाले सभी प्रबुद्ध लोगों ने कुछ नौजवानों के इस प्रयास को हाथोंहाथ लिया। हालाँकि इसकी राजनैतिक दिशा तब स्पष्ट नहीं थी। लेकिन वह भी जल्दी ही स्पष्ट हो गयी। सुन्दरलाल जी हमारे साथ थे तो हममें ‘चिपको’ चेतना बढ़नी ही थी। अक्टूबर 1977 में एक दोपहर मैं और हरीश पंत रिंक हॉल में हो रही ‘वनों की नीलामी’ को पत्रकारिता के नजरिये से ‘कवर’ करने पहुँचे। हमारे पहुँचने तक मुठ्ठी भर आन्दोलनकारी पकड़ कर हवालात में डाल दिये गये थे और नीलामी बाकायदा चल रही थी। उस समय ऐसा गुस्सा आया कि हम पत्रकारिता-वत्रकारिता सब भूल गये। तैश में आकर सारी मेजों को ठोकर मार कर गिरा दिया। प्रदर्शनकारियों को हवालात में डालते हुए देखने से क्रुद्ध ढेर सारे तमाशाई हॉल के बाहर खड़े थे। वे सारे के सारे साथ आ जुटे और देखते-देखते रिंक हॉल एक रणभूमि बन गया। वन विभाग के कारिन्दे और जंगल के ठेकेदार नीलामी छोड़ कर भाग खड़े हुए। फिर उसी साल 28 नवम्बर को किस तरह से पुलिस के साये में नैनीताल में आतंक का साम्राज्य खड़ा कर नीलामी करवायी गई और इस जद्दोजहद में नैनीताल क्लब की ऐतिहासिक इमारत जल कर खाक हो गई, वह एक दूसरी कहानी है। लेकिन उसी दिन पहली बार एक आन्दोलनकारी की नैतिक ताकत देखी और प्रशासन तंत्र का कायराना चेहरा भी। उस रोज घर से निकलते वक्त मैं पत्रकार था और घर लौटते हुए आन्दोलनकारी हो चुका था।

वह दिन और आज का दिन ……. मैं आन्दोलनकारी पहले हो गया हूँ और पत्रकार बाद में। उन दिनों का पहाड़ ! नौजवानों में कितनी चेतना थी, कितना गुस्सा और कितनी ऊर्जा!

‘नैनीताल समाचार’ उत्तराखंड में अनवरत् चलने वाले आन्दालनों का मुखपत्र बन गया। उत्तराखंड की अस्मिता का प्रतीक! हाँ, पत्रकारिता के उच्चतम आदर्शों से यह कभी च्युत नहीं हुआ।

मेरा पहाड़ और अपना उत्तराखंड के ओर से नैनीताल समाचार को जनमदिन की ढेरों शुभकामनायें। आशा करते हैं यह पत्र अपनी स्थापना के पचास और सौ साल पूरे करे।

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6 Thoughts to “नैनीताल समाचार : अखवार ही नहीं आन्दोलन भी”

  1. debendra singh dangi

    very usefull

  2. mahesh chander

    pahar kipahnawa bahut achha lagata hai.

  3. S.K. SHARMA

    RAJIV JI AAP AUR HUM EK DOOSRE SE PARICHIT HAI AUR ME AAP KE SANGHARSH KE BARE ME ACHI TAREH JANTA HOON. AAP BHI MERE SE BHALI BHANTI PARICHIT HAIN. PHIR BHI AAP KO YAD KARVANA CHAHTA HOON, HUM RAJYA ANDOLAN KE LARAI ME BAHUT BAR MILE HAIN. UTTRAKHAND MANAVADHIKAR SANGRAKSHAN SAMITI KA ADHYAKSH HONE KE NATE EK PIL FILE KIYA THA (RAMPUR TIRAHA/MUZAFFAR NAGAR KAND PAR) AUR ALLAHBAD HIGH COURT SE AITIHASIK NIRNAY BHI KARWAYA THA. SHAH JI YEH DURBHAGYA HAI KI SATTA ME AIYE DOODH PEENE WALE MAJNU SHAHIDON KO BHOOL CHUKE HAIN KYONKI CITARJIA CASE ME MUKHYAMANTRI APNE LIYE KESRI NATH TRIPATHI AUR SHANTI BHUSHAN JAISE WAKILON KO KHARA KARTE HAIN WANHI DOOSRI AUR MUZAFFARNAGAR KAND KE DOSHION KI PAIRVI SARKAR NAHI KAR RAHI HAI AUR DOSHI BARI HOTE JA RAHE HAIN “SHAHIDO HUM SHARMINDA HAIN AAP KE KATIL JINDA HAIN” NARE KAB TAB LAGATE RAHENGE. AB SAMAY AA GAYA HAI APNO KE KHILAF SANGHARSH KA. TAIYARI AAP KO KARWANI HAI KHUD APNE AKHBAR KE MADHYAM SE KYON KI AAJ KE AKHBAR PATRIKARITA KE SIDHANTH I.E. FREE, FRANK AND FEARLESS JOURNALISM KO BHOOL CHUKE HAIN AUR CHAND VIGYAPANO TATHA VAIKTIGAT SWARTHON KE CHALTE APNI KALAM KO SATTA DHARION KE PAS GIRVI RAKH CHUKE HAIN YA UNKI KALAM KI DHAR KUND HO CHUKI HAI -. ABHI HAL HI MAIN DELHI MAIN UTTRAKHAND PATRAKAR PARISHAD KE PROGRAM ME BHI HUMNE MUKHYAMANTRI KA VIRODH KIYA THA AUR MUKHYAMANTRI KO PROGRAM CHOR KAR BHAGNA PARA THA. WAHAN BHI KUCH PATRAKARON NE MUKHYAMANTRI KE SIPAHI KI BHUMIKA ADA KI THI ISLIYE AISE PATRAKARON KA BHI BAHISHKAR KARNA BAHUT JAROORI HAI – MAIN AAP KE SAATH HOON.

  4. MUJHE BHI APNE PAHAD KE SAMACHARO SE BAHUT PREM HAI ME BAHUT DUR HARYANA ME RAHTA HUN LEKIN MERI RUCHI PAHARO SE BAHUT HAI ME DISTT ALMORA GAON SIMALGAON KA NIWASI HUN MUJHE HARYANA ME 30 SAL HO GAI HAIN
    KIRPYA PAHAD KE KHABAR JAROOR BHEJNE KI KIRPA KARE
    DHANYABAD
    JEEWAN SINGH NEGI

  5. rajeev ji nanital samachar padkar acha laga sach baton mujhe bhi pata nahi tha ki nanital samchar patrika ne itne kathen sanghras se aage bad raha hai main to yahi kahngo ka kee yaha paper sangharsh ke liye he nikla hai hamari bujurgo kee amanat dev bhoomi uttrakhand main aaj kuch raksas ghose aa hai abhi apko unse bhi sanghrash karna baki hai playan berojgari khet khaliyan or bujorg sampati sab ko bachana hai dost har trah se sacha uttrakhadi apke saath hai lage raho bhai mere subhkamnaion

  6. Risky Pathak

    Nainital Samachar ka Aarambh, Rajeev shah jee ke shabdo me padkar bahot acha lgaa..

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