‘पहाड़’ संस्था – एक परिचय

pahar-logo ‘पहाड़’ संस्था का नाम ‘पहाड़’ अंग्रेजी के शब्द PAHAR से बना है जिसका अर्थ है People’s Association for Himalaya Area Research अर्थात हिमालय क्षेत्र संबंधी शोध से जुड़े लोगों का समूह.‘पहाड़’ से जुड़े लोगों का कहना है कि इस संस्था को स्थापित करने का विचार सन 1977 में आया और इसकी विधिवत स्थापना सन 1982 में हुई। यह हिमालय तथा पहाडों सम्बन्धी अध्ययन में लगी गैर सरकारी,अव्यावसायिक तथा सदस्यों के सहयोग से चलने वाली संस्था है। एक प्रकार से यह हिमालय,इसके हिस्सों या बिरादरों को समग्रता में जानने की स्वायत्त कोशिश है।

संकलन,अध्ययन-यात्राओं,संगोष्ठियों और प्रदर्शनियों के आयोजन के साथ साथ ‘पहाड़’ एक सालाना संकलन भी निकालती है। यह संकलन हिमालय क्षेत्र से संबंधित विविध शोधों लेखों का संकलन होता है। ‘पहाड़’ द्वारा पहले त्रैमासिक फिर अनियमित हिमान्तर तथा हिमालय की समस्याओं पर पुस्तिकाएं प्रकाशित की जाती हैं। हिमालय तथा पहाडों सम्बन्धी विषयों पर ‘राहुल सांकृत्यायन स्मारक‘ तथा ‘गोपी-मोहन-झूसिया स्मारक’ व्याख्यानों का आयोजन होता है। अलग से भी व्याख्यान आयोजित होते हैं। अब तक (2008 तक) ‘पहाड़’ के 14 अंक,12 पुस्तिकाएं,6 पुस्तकें,4 पोस्टर,3 बृहत अंग्रेजी पुस्तकें तथा 4 अंग्रेजी पुस्तिकाएं प्रकाशित हो चुकी हैं। उत्तराखंड का मानचित्र (अंग्रेजी) प्रकाशित हुआ है। हिन्दी मानचित्र प्रकाशनाधीन है।

1984 तथा 1994 के पांगू-अस्कोट-आराकोट अभियानों के बीच ‘पहाड़’ के सदस्यों ने चमोली के नंदीकुंड-मनपई (1985), पिथौरागढ़ के काली-कुटी तथा धौली घाटीक्षेत्र (1986) तथा गोरीगंगा-मदकन्या घाटी (1987) का अध्ययन सर्वेक्षण किया। 1988 में चिपको-सिंधु अभियान में,1989 में जौलजीबी-मिलम-मलारी-जोशीमठ अभियान में और 1992 में चिपको-ब्रह्मपुत्र अभियान में हिस्सेदारी की। 1991-92 में गढ़वाल के भूकंप से ध्वस्त क्षेत्रों में राहत,अध्ययन -सर्वेक्षण का कार्य किया और 1991 में ही टौंस-यमुना तथा भागीरथी घाटियों का दो कठिन दर्रे पार करते हुए अध्ययन -सर्वेक्षण किया।1993 में पंचकेदार क्षेत्र की अध्ययन यात्रा सम्पन्न हुई।

1994 में मुख्य अस्कोट-आराकोट अभियान के साथ उत्तराखंड की अनेक pahar-25-yearsयात्राओं के बाद 1996 में बेगार आन्दोलन की हीरक जयंती के मौके पर सांस्कृतिक अभियान का आयोजन हुआ तो ताबो(हिमाचल) मठ के एक हजार साल पूरे होने पर,तत्पश्चात 1997 में हिमाचल की बास्पा,सतलज,स्पीती तथा चन्द्रा घाटियों की अध्ययन यात्रा की गई। उखीमठ-मालपा भूस्खलनों तथा मार्च 1999 के गढ़वाल भूकंप के समय पहाड़ ने राहत कार्य और अध्ययन यात्राएं कीं। इसी वर्ष चौंदास क्षेत्र के कन्डाली महोत्सव में भी हिस्सेदारी की। 2000 में पंचेश्वर बाँध परियोजना के डूब क्षेत्र की प्रारंभिक अध्ययन यात्रा तथा नंदादेवी राजजात मार्ग सर्वे व मुख्य यात्रा सम्पन्न हुई। 2001 में गुजरात भूकंप क्षेत्र के भ्रमण तथा ‘गोरी-धौली यात्रा रालम बाट’ में हिस्सेदारी की गई। 2002 में चोमोलंगमा(एवरेस्ट) की उत्तर -पूर्वी घाटियों में यात्रा की गई तथा 2004 में चौथा अस्कोट -आराकोट अभियान सम्पन्न हुआ। 2005 में सिक्किम, 2006 में हिमाचल तथा लद्दाख और 2007 में असम,अरुणाचल तथा दार्जिलिंग की यात्राएं हुईं।

हाल ही में ‘पहाड़’ संस्था ने अपने 25 वीं वर्षगांठ यानि रजत जयंती मनाई है। इस अवसर पर कई कार्यक्रम आयोजित किये गये।

 

देहरादून में सम्पन्न हुआ पहाड़ का कार्यक्रम

पद्म-उत्तराखडियों का दिल्ली में सम्मान

 

पहाड़ की सदस्यता

व्यक्तिगत

विशिष्ट सदस्यता रु. 10,000 ($500), आजीवन रु. 2000 ($250),वार्षिक रु.100 ($20)

संस्थागत

आजीवन रु. 10,000 ($500),वार्षिक रु.500 ($50)

 

विशिष्ट व आजीवन सदस्यों को पहाड़ तथा पुस्तिकाऐं मिलती रहेंगी जबकि वार्षिक सदस्यों को ‘पहाड़’ का एक अंक तथा प्रकाशित पुस्तिका मिलेगी। अन्य प्रकाशन सभी सदस्यों को विशेष रियायती मूल्य पर मिलेंगे। सदस्यता राशि ‘पहाड़’,नैनीताल के नाम से बैक ड्राफ्ट , मनीआर्डर या नकद भेजें। आउट स्टेशन चैक में रु. 50 जोड़ें।

 

पहाड़ के कार्यकलाप

पहाड़ के समस्त कार्यकलाप पूरी तरह से अवैतनिक हैं। ये पहाड़ की सद्स्यता, साहित्य बिक्री तथा सदस्यों के ऐच्छिक सहयोग से होते हैं।विभिन्न अध्ययन यात्रायें तथा आयोजन भी इसी तरह होते हैं।

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