‘धाकड़’ दाज्यू आप चिरंजीवी हो…..

[हमारे साथ नये जुड़े श्री उमेश तिवारी ‘विश्वास की दाज्यू कथा का पहला भाग आपने पढ़ा। अब प्रस्तुत है दूसरा भाग। – प्रबंधक ]

dajyu-in-villageआपको लग रहा होगा कि हर छोटा भाई कभी न कभी दाज्यू बनता ही होगा। पर ये ‘सास भी कभी बहू थी’ वाला फार्मूला यहां फिट नहीं बैठता। हर एक भइयू, भुली या कुतानू; दाज्यू नहीं बनता। निरे प्रतिभाशाली ही, दाज्यू के रूप में स्थापित होते गये हैं। उनकी एक पृष्ठभूमि होती है। समाजशास्त्री इसे ‘वैल्यू ओरिएंटेशन इन ए सोसियल सिस्टम’ बताते हैं। जैसे पूत के पांव पालने में दिख जाते हैं वैसे ही दाज्यू बनने के आरम्भिक लक्षण किशोरों में परिलक्षित होने लगते हैं। उदाहरण के लिए अपने मुहल्ले की लड़की को छेड़ने के एवज में वह जीवन पहलवान को अधमरा कर चुके होते हैं। फर्स्ट डे-फर्स्ट शो का पहला टिकट निकाल चुके होते हैं। क्योंकि वह कड़ा पहनते हैं, इसलिए घावों के निशान आज भी उनकी कलाई पर देखे जा सकते हैं। हाकी, फुटबाल, कैरम, शतरंज, डिब्बू और मग्घू चोर में वह एक सी निपुणता रखते हैं। अपने दाज्युओं के लिए वह जान पर खेल जाने का जज्बा रखते हैं। इण्टर गणित के पर्चे को सौल्भ करवा के, खिड़की पर तुरई की तरह लटक कर, सफलता पूर्वक पर्ची को ठीक अपने दाज्यू की डैस्क तक पहुंचा चुके होते हैं। जरूरत समझें तो मास्साब को आंख दिखा या मार भी सकते हैं। आदि-आदि।

उनका कद अब जिला परिषद के स्कूलों के बीच जी.आई.सी. जैसा हो जाता है। यहां लड़कियां उनको रिझाने का प्रयास करती हैं किन्तु जैसा कि उनके भाग में बदा है, वह अपनी छवि में मगन सेलिब्रेटी जैसा व्यवहार करते हैं। प्रशंसकों से एक दूरी बनाएं रखते हैं-हुड़भ्यास! आटोग्राफ का प्रचलन न होने से वह छुआ-छुई और फाईनली कामदेव के प्रभाव से बचे रह जाते हैं। मात्र निद्रा के आगोश में जाने से पूर्व रजाई में मुंह ढक कर सुन्दरता को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।

इस अवस्था को पार कर सामान्यतः उन्हें ‘धाकड़’ की पदवी मिलती है। बिना मैडल या प्रशस्ति पत्र, यह एक ऐसी मान्यता है, जो पूरी तरह गैर सिफारिशी और स्वतःस्फूर्त है। इसे हासिल कर वह उन सोपानों के अधिकारी होते हैं जिनमें रामलीला, मुहर्रम आदि अवसरों पर सौहार्द सुनिश्चित करना या अति सौहार्द दिखा रहे कलाकारों पर नियंत्रण की व्यवस्था निहित है। उनका कद अब जिला परिषद के स्कूलों के बीच जी.आई.सी. जैसा हो जाता है। यहां लड़कियां उनको रिझाने का प्रयास करती हैं किन्तु जैसा कि उनके भाग में बदा है, वह अपनी छवि में मगन सेलिब्रेटी जैसा व्यवहार करते हैं। प्रशंसकों से एक दूरी बनाएं रखते हैं-हुड़भ्यास! आटोग्राफ का प्रचलन न होने से वह छुआ-छुई और फाईनली कामदेव के प्रभाव से बचे रह जाते हैं। मात्र निद्रा के आगोश में जाने से पूर्व रजाई में मुंह ढक कर सुन्दरता को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। यहां आपको एक दुखद परिणिति भी बताता चलूं; कुछ धाकड़ों की जल्दी नौकरी लग जाती है और इस स्थिति में समाज एक दाज्यू से महरूम रह जाता है। हां, अगर वह मिलट्री वगैरहा में चला जाए तो साल में एक बार रम की बोतलों के साथ आकर धुरमन्न जरूर कर देता है। पर यह तो ऐसा हुआ जैसे सानियां मिर्जा एक ग्रेंड स्लैम में तीसरी रैकिंग वाली को हरा दे और फिर साल भर इंतजार करवाए।

खैर, दाज्यू फिर भी बनते हैं, क्योंकि सबको नौकरी कहां मिलती है। अब, यह ‘धाकड़’ परिस्थितियों से जूझते हैं। घर से टोकाई खाते, पढ़ाई में सेकिण्ड-थर्ड डिवीजन पाते, बीड़ी-सिगरेट सुलगाते, नौकरी की आस और प्यार की प्यास लिए धीरे-धीरे दाज्यू के रूप में विकसित होते हैं, जैसे बंगाल का कम्यूनिस्ट पोलित ब्यूरो का सदस्य बने।

जब पैरा राजनीति पर खतम जैसा हो रहा है तो आपको दाज्यू और उनकी राजनीति के बारे में बताता चलूं। अधिकांश दाज्यू डेमोक्रेट के रूप में पाये जाते हैं और इतने बड़े कि अपनी पार्टी जीत जाए तो आप उन्हें विरोधियों में पाएंगे-दाज्यू पैलाग! वह दाज्यू हैं। हर मुहल्ले में कम से कम एक हैं। उनके प्रभाव के चलते परदेशी पहाड़ से पांच हजार की लीड ले गया जो नीचे जाकर पचास हजार होनी ही थी। उनको फिर भी कोई घमंड नहीं है। उनसे अमर उजाला-जागरण वालों ने पूछा, ‘ये कैसे हो गया दाज्यू’ ? दाज्यू ने जबाब दिया, ‘ठंड की वजह से’ ! दाज्यू का प्रभाव देखिए जीत की यह वजह पहाड़ के पन्ने पर छप भी गई। वैसे मैदान में गर्मी भी थी। जहां दाज्यू सक्रिय कार्यकर्ता की तरह दिन-रात एक करके अपने कंडीडेट को जिताते देखे गये हैं वहीं एक-आध बार खुन्दक की वजह से खुद भी चुनावी समर में कूदते पाये गये हैं। अधिकांश अवसरों पर उनकी मट्टी पलीत हुई है। क्योंकि इतिहास गवाह है ऊपर की लीड काफी नहीं होती नीचे की लीड जरूर चाहिए। पर इससे दाज्यू पर बहुत असर नहीं पड़ता। वह बैटिंग में भले फेल हो गये हों पर बालिंग, फील्डिंग के लिए तेंदुलकर जैसे उतावले दिख सकते हैं। वह समझते हैं कि लोग उनके धाकड़पने के कायल हैं। कई लोग उनके बारे में कहते हैं ‘कहीं से पैसे खाए होंगे’ और कई, उनकी सेक्स लाइफ पर स्टिंग आपरेशन में लग जाते हैं। दाज्यू के लिए दोनों स्थितियां मुफीद हैं। खासतौर पर जबकि दोनों ही गलत हों। पत्रकार अगर पूछे कि देश की राजनीति का भविष्य क्या है, तो उत्तर में दाज्यू कह सकते हैं, ‘भारत की राजनीति तो उत्तराखण्ड ही तय करेगा। पर उसका बनना जरूरी है’।

वह विचारक दाज्यू ही थे जिन्होंने, कहने को रकाद में, सार्वजनिक मर्दाना के अन्दर की दीवाल पर ‘आपका भविष्य आपके हाथ में है’ लिखवाया था। पाठक मुझे क्षमा करेंगे, यदि आपके विचार में उनकी पद्धति में भदेस था। जिस देश में ढाई तीन घन्टे की पिक्चर ‘लगे रहो मुन्ना भाई’ के जरिये लोग महात्मा गॉंधी को समझने की कोशिश कर रहे हों वहॉं यदि दो मिनट पब्लिक टॉयलेट के माध्यम से भविष्य को समझाने/समझने का मौका मिले तो मै तो ना छोडूं।

आप सोच रहे होंगे आखिर दाज्यू का अपना भविष्य क्या है, क्या सर्वगुण सम्पन्न होते हुए भी वह भटकते रहेंगे, क्या उन्हें कभी कोई मंजिल नहीं मिलेगी ? सच तो ये है कि इस बात का जवाब मेरे पास भी नहीं है। मैं उनका इतना सम्मान करता हॅू कि उनके प्रति कोई चिंता का भाव मेरे मन में जनम नहीं लेता। वह अद्भुत हैं, चमत्कारी हैं, दूरदर्शी हैं। जब उनको कोई फिकर नहीं तो आपको पेट पीड़ करने की क्या जरूरत है। उनका जो भी होगा अच्छा ही होगा। दाज्यू भविष्य के महत्व को समझते हैं, बल्कि दूसरों के सन्दर्भ में अधिक। अपने रोमांटिक दौर में उन्होंने जिन सुंदरियों को बी.एच.एम.बी. बताया वह हमेशा बड़ी होकर मिसवर्ड बनी हों ऐसा तो नहीं है पर समकालीन युवकों पर उनके द्वारा छोड़ी गयी छाप अमिट हैं- आप आज भी एक का नाम लिजिए और एस.एम.एस. से वोटिंग करा लिजिए, इलाके में अगर प्रियंका चोपड़ा से अधिक वोट न पाए तो, मैं दाज्यू का भाई नहीं, सौ जूते मारना अलग। अलग बात यह भी है कि वह भविष्य को अपने इस्टाइल में परिभाषित करते रहे हैं। अब मर्दों का केस लेता हूँ। आपको शायद मालूम न हो, वह विचारक दाज्यू ही थे जिन्होंने, कहने को रकाद में, सार्वजनिक मर्दाना के अन्दर की दीवाल पर ‘आपका भविष्य आपके हाथ में है’ लिखवाया था। पाठक मुझे क्षमा करेंगे, यदि आपके विचार में उनकी पद्धति में भदेस था। जिस देश में ढाई तीन घन्टे की पिक्चर ‘लगे रहो मुन्ना भाई’ के जरिये लोग महात्मा गॉंधी को समझने की कोशिश कर रहे हों वहॉं यदि दो मिनट पब्लिक टॉयलेट के माध्यम से भविष्य को समझाने/समझने का मौका मिले तो मै तो ना छोडूं।

खैर, आप समझ गये होंगे कि दाज्यू का भविष्य के प्रति नजरिया कितना स्वाभाविक, लचीला और उपजाऊ रहा है। उनके विचार में भविष्य स्थितिजन्य है। उत्तरांचल में खेलों के भविष्य पर टिप्पणी करते हुए सी.टी.वी. चैनल पर उन्होंने अंग्रेजी में कहा था ‘फ्यूचर इज बाउण्ड टू अ लोकेशन’। बाकी आप समझदार है, थोड़ा कहा काफी समझना। हाँ यहां आपको बताता चलूं कि हाल तक दाज्यू सबेरे साढ़े सात मील दौड़ते थे, हाकी के फारवर्ड और फुटबाल के बैक थे, नाटकों के सूत्रधार और चुटकुलों के भण्डार थे। आज भी (बावजूद किताबें मारने वालों की मेहरबानी के) उनके संकलन में इब्ने सफी बी.ए., ओम प्रकाश शर्मा, वेद प्रकाश काम्बोज, एस.एन. कॅवल, कर्नल रंजीत का जासूसी साहित्य, बंगाली उपन्यासकारों के समग्र, देवकी नंदन खत्री के तिलिस्म, भारतेन्दु रचना समग्र, प्रेम बाजपेई, गुलशन नंदा से लेकर शिवानी तक का कथा संसार उनके द्वारा चाटे जाने के बाद छज्जे में धूल फॉक रहा है। उनके जीते गये कप, ढक्कन से बिछुड कर ऐश ट्रे बन गये हैं। संदर्भ हेतु कुछ फोटो-फ्रेम टंगे रह गये हैं जिनमें हमारे दाज्यू, वो घुंघराले बालों वाले, अरशद वारसी जैसे दिखाई पड़ रहे हैं।

शायद तुम ठीक कहते हो दाज्यू ‘फ्यूचर इज बाउण्ड टू अ लोकेशन’-देवभूमि में रहते हुए दिल्ली जैसे विलासितापूर्ण भविष्य की कल्पना करना बेमानी है। मैं देख रहा हूँ, तुम खाते-पीते हो, लिखते-पढ़ते हो, सुलगते-सुलगाते हो, हंसी-मजाक करते हो, होली खेलते हो-दीवाली मनाते हो, सम्मान देते हो-पाते हो! लोग आजकल छोटे से परिवार में बड़े भाई का दायित्व नहीं सम्हाल पाते, आप तो सारे शहर के दाज्यू हो-और क्या चाहिए ? आप चिरंजीवी हों!

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7 Thoughts to “‘धाकड़’ दाज्यू आप चिरंजीवी हो…..”

  1. ऐसे ठेठ पहाड़ी दाज्युओं की आज बहुत आवश्यकता है। वे भले ही खुद के लिये कुछ न कर पांये, लेकिन वो समाज को जो देते हैं और जो सामाजिक ताना-बान वे गुनते हैं, वह अनमोल है।

  2. dinesh bijalwan

    Dhanya ho Daju… , garhwali ya kumauni ma likhada ta jyu hor bi bagchatt hwai jandu… lagya rau daaju..

  3. sunil sah

    Daju chha kas la ho daju thara

  4. yogesh pandey

    bhal ho ryocha daju, lekhana rya lekhana rya

  5. chandan

    nice but now days this types of "daju" are found very rare.

  6. Ved Bhadola

    नैनीताल समाचार में शम्भू राणा के बाद आपकी लेखनी का भी कायल हो गया हूँ…

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