ओ परुवा बॉज्यू चपल के ल्याछा यस

“ओ परुवा बॉज्यू, चपल के ल्याछा यस” एक हल्का-फुल्का गीत है जिसमें पति-पत्नी की मीठी नौंक-झौंक के साथ यह बात एक बार फिर स्पष्ट होती है कि पति बेचारा कुछ भी करले उसकी पत्नी उसके काम में मीन-मेख निकालेगी ही 🙂 यह एक भुक्त-भोगी पति ही समझ सकता है। इस गाने में ऐसा ही एक बेचारा पति अपनी पत्नी के लिये चुन चुन कर अच्छे अच्छे सामान लाता है लेकिन उसकी पत्नी हर सामान में कुछ ना कुछ कमी निकाल ही देती है। आइये आनन्द लें इस मनमोहक गीत का।…

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विदाई गीत : न रो चेलि न रो मेरि लाल

गोपाल बाबू गोस्वामी ने सब तरह के गाने गाये हैं। उनके गाये हुए विवाह गीतों की चर्चा हम आगे करेंगे, लेकिन आज हम जिस गीत की चर्चा कर रहे हैं वह एक विदाई गीत है, जिसमें अपनी पुत्री को विदा करते समय एक पिता अपनी पुत्री को ढाढस बताते हुए ना रोने की सलाह दे रहा है लेकिन यह सलाह देते देते उसका खुद का गला बार बार भर आ रहा है। अपनी आशीषों के साथ साथ पिता अपनी बेटी को हिदायतें भी दे रहा है कि वह कैसे ससुराल…

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मथि पहाड़ु बटि, निस गंगाड़ु बटि..उत्तराखण्ड आन्दोलन मां

नरेन्द्र सिंह नेगी की कैसेट “उठा जागा उत्तराखण्ड्यूं” से लिया गया यह गाना ऐसे समय पर गाया गया जब पूरा उत्तराखण्ड पृथक राज्य प्राप्ति की मांग को लेकर उद्वेलित था। पृथक उत्तराखण्ड राज्य की मांग को लेकर आजादी से पहले से ही उत्तर प्रदेश के गढवाल-कुमाऊं के पहाड़ी इलाके के लोग एकजुट होकर प्रयास करने लगे थे। लेकिन 1994 में उत्तराखण्ड क्रान्ति दल व छात्र संगठनों द्वारा शुरु किया गया पृथक उत्तराखंड राज्य के लिये आन्दोलन इस दिशा में एक महत्वपूर्ण आन्दोलन था। उत्तराखण्ड के लोगों के द्वारा अहिंसात्मक व…

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इखमां छुईं, उखमां छुईं, जखमां देख, तखमां छुई

मानव जीवन में कई तरह की परेशानियां होती हैं लेकिन इस गाने के नायक की परेशानी नारी स्वभाव से जुड़ी एक सामान्य आदत है और वह आदत बकबक बोलने की… नरेन्द्र सिंह नेगी जी के इस व्यंगात्मक गाने में एक ऐसे आदमी का चित्रण किया है जो अपनी पत्नी की छुंयाल (बातूनी) आदत से त्रस्त है। उस आदमी का दर्द फूट-फूट कर सामने आ रहा है .. गाना सुनकर समझ में आता है कि वास्तव में उसकी पत्नी की बतकही की आदत वाचालता की हद तक जा पहुंची है। यह…

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पतई कमर तिरछी नजर..हाय हाय रे मिजाता..

गोपाल बाबू गोस्वामी का एक गाना है “पतई कमर तिरछी नजर” जिसमें एक प्रेमी अपनी प्रेमिका के रूप के साथ साथ उसके फैशन की भी तारीफ करता है। यह गाना उस समय लिखा गया था जब पहाड़ों में नये जमाने का फैशन नहीं था। उस समय आंखों का धूप का चश्मा, लिपस्टिक, नेल पॉलिश, हाथ की घड़ी फैशन की नयी नयी चीजों में शामिल था इसलिये उन सभी चीजों के बारे में इस गाने में बताया गया है। फिल्म बरसात (1949) में एक गाना था “पतली कमर है, तिरछी नजर…

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हाय सुपारी खाय-खाय सुण माया, क्या रामरो घाम लाग्यो छ

‘हाय सुपारी खाय-खाय सुण माया’ गोपाल बाबू गोस्वामी जी द्वारा गाया हुआ गीत है। इसमें एक प्रेमी अपनी प्रेमिका के रूप की प्रसंशा कर रहा है। इसमे एक शब्द ‘रामरो’ का प्रयोग किया गया है। जो मूलत: नैपाली भाषा का शब्द है। इसका अर्थ है अच्छा, ठीक,खुशगवार। भावार्थ : हाय सुपारी खाकर यह धूप कितनी खुशनुमा लग रही है। वो दूर देवी के मंदिर में मैने दूध चढ़ावा है, तेरे प्यार में मेरा दिमाग पगलाया है। चमकते गिलास में दमकती चाय है, तेरे मेरे प्यार से दुनिया जलती जाय है।…

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ऊँचा नीसा डाडों मा, टेढ़ा मेढ़ा बाटों मा

आज प्रस्तुत है एक बहुत ही पुराना गाना “ऊँचा नीसा डाडों मा, टेढ़ा मेढ़ा बाटों मा” जिसे नरेन्द्र सिंह नेगी ने गाया है। हाँलाकि इस गाने के बाद में कई संस्करण बन चुके है लेकिन यहां हम आप को इसके दो रूपों से परिचित करवा रहे हैं। पहला वाला कैसेट से लिया गया है और दूसरा वाला वी.सी.डी से। दूसरे गाने में सहगायिका के रूप में मीना राणा भी हैं। यह  “चली भै मोटर चली”  एलबम से लिया गया है और इसके वीडियो टी.सीरीज पर उपलब्ध हैं। पहाड़ के रास्तों…

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