मालुरा हरियालु डांना का पार

गोपाल बाबू गोस्वामी का गाया एक सुरीला व प्रचलित गीत है “मालुरा हरियालु डांना का पार” । आज इसी गीत की चर्चा करते हैं। यह गाना भी कई रूपों में मिलता है. यहाँ पर जो गाना प्रस्तुत किया जा रहा है उसमें कुल छ्ह अंतरे हैं जिसमें दो अंतरे दो बार गाये गये हैं यानि देखा जाये तो केवल चार ही अलग अंतरे हैं। भावार्थ : एक प्रेमी अपनी प्रेमिका से ऊंची ऊंची व हरी भरी चोटियों के पार जाने की जिद कर रहा है। प्रेमिका को वह प्यार से…

Read More

ओ भिना कस के जानू द्वारिहाटा

उत्तराखंड का एक बहुप्रचलित और लोकप्रिय गीत है “ओ भिना कस के जानू द्वारिहाटा” जो लगभग हर शादी ब्याह में महिला संगीत या महिला होली में गाया जाता है। इस गीत में जीजा-साली के बीच की प्यार भरी नौंक-झौंक का वर्णन है जैसा कि एक अन्य गाने “रुपसा रमौती घुंघुंर नी बाजा” में भी मिलता है। इस गीत में एक जीजा अपनी साली को लेकर द्वाराहाट (उत्तराखंड में रानीखेत के पास एक जगह)  मेले में जाना चाहता है लेकिन साली वहां ना जाने के लिये कई तरह के बहाने बना…

Read More

सुमा हे निहोणया सुमा डांडा नजा

उत्तराखंड के पहाड़ी इलाके में ग्रामीण लोगों का जीवन जंगलों पर काफी हद तक निर्भर है। जंगलों में जाकर ईंधन के लिये लकड़ी और पशुओं के चारे के लिये घास लाना गांवों की महिलाओं की दिनचर्या का एक हिस्सा है। समय समय पर जंगलों में इन महिलाओं पर जानवरों द्वारा हिंसक हमलों की घटनाऐं होती रहती हैं। ऐसी ही एक घटना का दृश्य “सुमा हे निहोणया  सुमा डांडा नजा” गाने में भी नजर आता है। नरेन्द्र सिंह नेगी का यह गाना पहाड़ के ग्रामीण अंचल में घटी एक घटना का…

Read More

अबैरी दां तू लssम्बी छुट्टी लै के ऐई

आज एक ओर आधुनिकता और विकास की अन्धी दौड़ में मानवीय संवेदनाएं और आपसी रिश्ते धूमिल होते जा रहे हैं और वहीं मानव सभ्यता की कई धरोहरें भी मनुष्य की बढ़ती जरूरतों की भेंट चढ रही हैं। महानगरों में रह रहे लोगों के वातानुकूलित कमरों और चमचमाती सड़कों के लिये रोशनी पैदा करने की खातिर एक पूर्ण विकसित शहर को गंगा जी की लहरों में जलसमाधि लेनी पड़ी। यह शहर था टिहरी शहर, जिसका एक गौरवशाली इतिहास रहा है लेकिन व्यापक जन-विरोध के बाबजूद टिहरी बांध के निर्माण के लिये…

Read More

मेरा डांडी काण्ठियों का मुलुक जैल्यु…

पहाड़ वैसे तो हर मौसम में अपनी प्राकृतिक सुन्दरता से लोगों का मन मोह लेते हैं लेकिन वसंत ऋतु में उनकी सुन्दरता देखने लायक होती है। इसीलिये नरेन्द्र सिंह नेगी उत्तराखंड जाने वालों को सलाह देते हैं कि “मेरा डांडी काण्ठियों का मुलुक जैल्यु, बसन्त रितु मा जैयि” अर्थात अगर मेरे पहाड़ी देश में जाना तो बसन्त ऋतु में ही जाना और फिर वह इसके पीछे के कारणों को भी बताते हैं। लगता है यह गीत हर पहाड़ी व्यक्ति की भावना का गीत है क्योंकि यह सब बातें पूरे उत्तराखंड…

Read More

माछी पाणी सी ज्यू तेरु मेरु

"माछी-पाणी सी ज्यू तेरु मेरु " …यह एक विरह रस का बहुत ही प्यारा गाना है। इस गाने के दो वीडियो रिलीज हुए हैं। पहले वीडियो में इस गीत को नरेन्द्र सिंह नेगी और मीना राणा द्वारा गाया गया है। यह गीत एलबम "ठंडो रे ठंडो" से लिया गया है और इसके ऑडियो और वीसीडी टी सीरीज पर उपलब्ध हैं। दूसरा वीडियो "रुमुक" एलबम में है, हर अन्तरे में अलग नायक-नायिकाओं के साथ। तब इस गीत में सहगायिका अनुराधा निराला जी हैं। इस वीडियो के ऑडियो-वीडियो राइट्स रामा कैसेट्स के…

Read More

काली गंगा को कालो पाणी

पिथौरागढ़ जिले में एक नदी बहती है जिसे काली गंगा भी कहा जाता है। इस नदी को शारदा नदी के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता कि देवी काली के नाम से इसका नाम काली गंगा पड़ा। काली नदी का उद्गम स्थान वृहद्तर हिमालय में ३,६०० मीटर की ऊँचाई पर स्थित कालापानी नामक स्थान पर है, जो भारत के उत्तराखंड राज्य के पिथौरागढ़ जिले में है। इस नदी का नाम काली माता के नाम पर पड़ा जिनका मंदिर कालापानी में लिपु-लेख दर्रे के निकट भारत और तिब्बत की…

Read More