विशेश्वरी देवी

सर्वोदयी कार्यकर्ताओं के साथ चिपको आंदोलन में हिस्सेदारी। 1988 में गरुड़गंगा (पाखी) गांव की अध्यक्षा चुनी गयी। इससे पूर्व मैंने गाँव में जातिभेद के खिलाफ अभियान चलाया था। अध्यक्षा चुने जाने के बाद गाँव में हैस्को, हार्क व सर्वोदयी संस्थाओं की मदद से पर्यावरण संरक्षण, रिंगाल उद्योग व फल-संरक्षण, वनस्पतियों से धूप-अगरबत्ती निर्माण, नयी प्रजाति की सब्जियों का उत्पादन आदि कार्यक्रमों के जरिए गांव की तस्वीर बदलने का प्रयास किया।

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बौणी देवी

पिछले 20 वर्षों से महिला मंगल दल की अध्यक्षा पद पर कार्य किया। सलना मंगलदल में अपना एक कोष तैयार किया और सामूहिक जरूरतों का सामान खरीदा। उर्गम हाईस्कूल के लिए दल ने आन्दोलन किया। स्व. गौरा देवी व श्री चण्डीप्रसाद भट्ट के नेतृत्व में चिपको आन्दोलन में हिस्सा लिया। उत्तराखण्ड सेवानिधि व जाखेश्वर शिक्षण संस्थान के साथ मिलकर पिछले 8 वर्षों से पर्यावरण शिक्षा व बालवाड़ी आन्दोलन में हिस्सा। पैनखण्डा महिला विकास संस्थान तथा जय नन्दा देवी स्वरोजगार शिक्षण संस्थान, भर्की की अध्यक्षा। 1987 इंदिरा गाँधी वृक्ष मित्र से सम्मानित। 2001 में जिला प्रशासन की ओर से चिपको नेत्री सम्मान। भारत सेवा समिति श्रीनगर की ओर से पर्यावरण पुरस्कार।

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रघुनन्दन सिंह टोलिया

उत्तराखण्ड राज्य के गठन में कौशिक कमेटी रिपोर्ट को सफलता पूर्वक पूर्ण कर, भारत सरकार को प्रेषण। सिविल सेवा में 1971 में प्रवेश करने पर यह निर्णय किया था कि उत्तराखण्ड व उत्तर प्रदेश के प्रशासनिक इतिहास में जो कुछ धुंधलापन है उसे साफ करने का प्रयास करूंगा। 1815 से 1858 तक काफी सीमा तक व्यवस्थित कर सका इसे। 1859 से 1884 तक अभी और व्यवस्थित करना है। सेवा में आने के बाद उत्तराखण्ड के आर्थिक विकास में योगदान करने की सेवा पर्यन्त (32 वर्ष) कोशिश। आज यह दुग्ध विकास, चाय विकास, जड़ी-बूटी व सुगंध पौध के क्षेत्र में कुछ दिखाई भी पड़ता है। अग्रेतर जैविक कृषि, बांस व रिंगाल तथा रेशा को शेष सेवा काल व सेवानिवृत्ति के उपरान्त एक मिशन के रूप में लेने की इच्छा।जन सहभागिता के क्षेत्र में थोड़ी बहुत सफलता।

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केदार सिंह कुंजवाल

स्कूली शिक्षा के बाद सर्वोदय से जुड़ गए| जयप्रकाश नारायण, अन्ना सहस्रबुद्धे, सुरेश राम भाई, विमला ठकार, करण भाई जैसे सर्वोदयी कार्य कर्ताओं के सानिध्य में रहने का अवसर प्राप्त हुआ। 1957 में मिर्जापुर जाकर आदिवासी क्षेत्रों में पांच वर्ष में समाजसेवा का कार्य किया। इस दौरान आचार्य विनोवा भावे के संपर्क में आए और अनेक पदयात्राएँ कीं। 1963 में गांधी स्मारक निधि से जुड़े। 1964 में ग्राम स्वराज्य मंडल कुंज जैंती की स्थापना देवकी कुन्जवाल के साथ की। उत्तराखण्ड में शराबबंदी, वन बचाओ आदि आन्दोलनों में भागीदारी। उत्तरा निर्धूम चूल्हे का विकास, बागेश्वरी चर्खे को नया रूप दिया जिसे ‘कर्मयोगी चर्खा’ नाम दिया गया।

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महेन्द्र कुँवर

दशौली ग्राम स्वराज्य मण्डल के कार्यक्रमों में शामिल । सी.एस.ई. में 1984-87। हार्क की स्थापना 1989 ।बूँद का प्रकाशन, संसाधन प्रबन्धन/आर्थिक क्रिया-कलाप। ग्रामीण बाजार सम्बन्धों पर कृषि कार्य, ग्रामीण स्तर पर संगठनों का निर्माण, नौगाँव में प्रसार शिक्षण केन्द्र की स्थापना। क्षमता विकास तथा महिलाओं/पंचायतों को लेकर कार्य।

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देवेन्द्र प्रसाद (डी.पी.) जोशी

उत्तर प्रदेश व भारतीय वन सेवा में रहकर वनों के संरक्षण व विकास में योगदान, हल्द्वानी में वानिकी प्रशिक्षण संस्थान की स्थापना एवं नैनीताल में उच्च स्थलीय प्राणी उद्यान की स्थापना में योगदान। चीआ के अध्यक्ष। एस.ओ.एस. चिल्ड्रन्स विलेज, भीमताल तथा अन्य अनेक संस्थाओं से भी जुड़े हैं। युवाओं के नाम संदेशः उत्तराखण्ड में उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों के वैज्ञानिक एवं सही उपयोग से इसे सम्पन्न प्रदेश बनाया जा सकता है। इसके लिए कठोर परिश्रम आवश्यक है।

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अनिल प्रकाश जोशी

ग्रामीण तकनीक केन्द्रित विकास के कार्यक्रम। पर्वतीय समुदायों के संसाधन केन्द्रित आर्थिक सशक्तीकरण हेतु प्रयास। स्थानीय संसाधन केन्द्रित व्यवसाय, घराट संगठन, फल केन्द्रित संगठनों का निर्माण
युवाओं के नाम संदेशः पर्वतीय क्षेत्र संसाधन सम्पन्न हैं लेकिन आर्थिक रूप से गरीब हैं। स्थानीय संसाधनों के सदुपयोग से ही हमारा भला हो सकता है।

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