कुँवर दामोदर सिंह राठौर

बंजर होती अपनी 360 हेक्टेयर नाप भूमि में लाखों स्थानीय प्रजाति के वृक्षों एवं पादपों का रोपण तथा लगभग 24 वर्षों में एक अतिसमृद्ध जैव विविधता से पूर्ण मानव निर्मित वन का निर्माण। इस शान्ति कुंज स्मृति वन में एक सूख चुकी जलधार में पुनः जल प्राप्त करना और उसको स्वयं प्रयोग में लाना एवं शेष जल तलहटी के अन्य ग्रामीणों द्वारा सिंचाई हेतु प्रयोग में लाना। बेरीनाग चाय की उजड़ रही प्रजाति को अपने यहाँ पुनः जीवित करना व अनोखी महक व फ्लेवर वाली चाय को पनपाना।

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आदित्य नारायण पुरोहित

वनस्पति विज्ञान तथा उच्च हिमालयी औषधि पौधों पर विशिष्ट काम। पंजाब वि.वि., चण्डीगढ़ में वनस्पति विज्ञान विभाग में शोध अधिकारी रहे। नॉर्थ ईस्ट हिल यूनिवर्सिटी, शिलांग तथा गढ़वाल वि.वि. में अध्यापन। गोविन्द बल्लभ पंत हिमालयी पर्यावरण तथा विकास संस्थान के निदेशक तथा कोसी-कटारमल स्थित परिसर के निर्माता। गढ़वाल वि.वि., श्रीनगर में हाई एल्टिट्यूड प्लांट फिजियोलॉजी रिसर्च लैबोरेट्री तथा तुंगनाथ में फील्ड स्टेशन की स्थापना। इंस्टीट्यूट आफ बायलौजी, लन्दन के निर्वाचित सदस्य हैं। गढ़वाल वि.वि. के कार्यवाहक कुलपति भी रहे। ‘इन्टरनेशनल जर्नल आफ सस्टेनेबिल फारेस्ट्री’ के सम्पादक मण्डल के सदस्य हैं। अनेक शोध पत्र तथा पुस्तकों के लेखक। कई संस्थानों के सदस्य, विशेषज्ञ सदस्य, संयोजक और अध्यक्ष हैं। आपको एफ.एन.ए. का सम्मान भी मिला है।

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देवेन्द्र प्रसाद (डी.पी.) जोशी

उत्तर प्रदेश व भारतीय वन सेवा में रहकर वनों के संरक्षण व विकास में योगदान, हल्द्वानी में वानिकी प्रशिक्षण संस्थान की स्थापना एवं नैनीताल में उच्च स्थलीय प्राणी उद्यान की स्थापना में योगदान। चीआ के अध्यक्ष। एस.ओ.एस. चिल्ड्रन्स विलेज, भीमताल तथा अन्य अनेक संस्थाओं से भी जुड़े हैं। युवाओं के नाम संदेशः उत्तराखण्ड में उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों के वैज्ञानिक एवं सही उपयोग से इसे सम्पन्न प्रदेश बनाया जा सकता है। इसके लिए कठोर परिश्रम आवश्यक है।

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