शेर सिंह पांगती

शिक्षण-अध्यापन 33 साल। ब्रजेन्द्रलाल शाह के सत्संग में रहने से। ‘जोहार के स्वर’ (1984), ‘उत्तराखण्ड के भोटांतिक’, ‘स्वतंत्रता सेनानी का जीवन संघर्ष’ (1994), ‘मुनस्यारी लोक और साहित्य’ (2001)। दो किताबें प्रकाशनाधीन। दो बार कैलास मानसरोवर, एवरेस्ट बेस तथा न्यूजीलैण्ड आदि स्थानों की यात्राएँ की। मिलम में जड़ी, बूटी उत्पादन का प्रयास। 2002 में अपने सीमित संसाधनों से जोहार पर केन्द्रित संग्रहालय की स्थापना। 1956 से कुमाउँनी रामलीला का दरकोट (मुनस्यारी)में संचालन।

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