जीत सिंह नेगी

पहले-पहल हिंदी में गेय-गीतों की रचना की। बाद में उत्तराखण्ड की संस्कृति को आधार बना कर गीत लिखे और उनकी धुनें बना कर गाईं। ‘तू ह्नील वीरा…’ अत्यन्त लोकप्रिय गीत रहा। नेशनल ग्रामोफोन कम्पनी, बम्बई में कुछ रिकार्ड तैयार किए तथा बाद में हिज मास्टर्स वाइस एण्ड कोलम्बिया ग्रामोफोन कम्पनी द्वारा गढ़वाली गीतों के रिकार्ड बने तथा गढ़वाली गीतों के टेप तैयार किये। आकाशवाणी व दूरदर्शन के लिए उत्तराखण्ड की संस्कृति, रीति-रिवाजों, समस्याओं व जीवन पर केन्द्रित गीत गाए और आज भी यह क्रम जारी है। ‘भारीमल’ (हिन्दी-गढ़वाली, 1950), ‘मलेथा की कूल’ –1974 (संवाद रिकार्डेड थे) और ‘रामी बौराणी’- बैले, जिसका वे फिल्मांकन करना 2चाहते थे- उनकी ऐतिहासिक रचनाएँ हैं। सरकारी, गैर-सरकारी संस्थाओं द्वारा सम्मानित।

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