विपुल धस्माना

उत्तराखण्ड आन्दोलन के दौरान मिशन के बतौर पत्रकारिता का चुनाव। विभिन्न स्थानीय, क्षेत्रीय, राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में राज्य आन्दोलन और उससे जुड़े तथ्यों पर केन्द्रित लेखन। वेब पत्रकारिता में स्नातक।

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राजेन्द्र धस्माना

1955 से हिंदी कविताओं की रचना। विविध लेख और समीक्षाएँ भी प्रकाशित। अभी तक काव्य संग्रह ‘परवलय’ प्रकाशित। 1960 से अखबार, प्रकाशकों के यहाँ नौकरी के बाद 1978 तक संपूर्ण गांधी वांगमय में सहायक संपादक 1979 से। समाचार प्रभाग, आकाशवाणी एवं समाचार एकक, दूरदर्शन में समाचार संपादक। 1993 से 95 तक सम्पूर्ण गांधी वांगमय में प्रधान संपादक। 1995 में सेवा निवृत्त। 1993 से 2000 तक दूरदर्शन के प्रातः कालीन समाचार बुलेटिन का संपादन (सेवा निवृत्ति के बाद भी)। 1960 से रंगकर्मी के रूप में भी कार्य किया। आठवें दशक से गढ़वाली रंगमंच के लिए नाटक लिखे, जिनमें ‘जंकजोड़’, ‘अर्धग्रामेश्वर’, ‘पैसा न ध्यल्ला गुमान सिंह रौत्यल्ला’, ‘जय भारत जय उत्तराखण्ड’ के मंचन काफी चर्चित रहे। भवानी दत्त थपल्याल के ‘प्रींद नाटक’ का अपडेटिंग किया, जिसके केवल दो प्रदर्शन हो पाये। कन्हैयालाल डंडरियाल के ‘कंस-वध’ का पुनर्लेखन ‘कंसानुक्रम’ के रूप में किया। ‘भड़ भंडारी माधोसिंह’ का मंचन नहीं हुआ। गढ़वाली नाटकों पर 30 स्मारिकाएं और उत्तराखण्ड पर 9 पठनीय स्मारिकाओं का संपादन किया। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और कुछ संस्थानों के लिए 20 से अधिक डाक्युमेंटरी बनाईं। सम्प्रति उत्तराखण्ड लोक स्वातंत्र्य संगठन (पी.यू.सी.एल.) के अध्यक्ष। उत्तराखण्ड के सामाजिक-राजनीतिक जीवन में सक्रिय योगदान मानव अधिकारों के लिए समर्पित।

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महेश दर्पण

हिन्दी अकादमी द्वारा ‘साहित्यकार सम्मान’, ‘कृति पुरस्कार’, ‘नेताजी सुभाषचंद्र बोस सम्मान’, ‘सी.एल. नेपाली पत्रकारिता सम्मान’, ‘पीपुल्स विक्ट्री पत्रकारिता सम्मान’, ‘सार्थक पत्रकारिता सम्मान’ प्राप्त। अब तक पांच कहानी संग्रह, एक आलोचना, एक साक्षात्कार, तीन बाल एवं प्रौढ़ साहित्य की पुस्तकें तथा बारह खण्डों में ‘बीसवीं शताब्दी की हिन्दी कहानियां’ सहित ‘स्वातंत्रयोत्तर हिन्दी कहानी कोश’ और सात अन्य पुस्तकें सम्पादित। सम्प्रतिः टाइम्स ऑफ इण्डिया प्रकाशन समूह के दैनिक सान्ध्य टाइम्स के सम्पादकीय विभाग में।

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पीताम्बर देवरानी

शिक्षक से प्रधानाचार्य 1960 में। शिलोटी, मटियाली, देवीखेत, डीडीहाट, देवाल में प्रधानाचार्य रहने के बाद सहायक निदेशक (शिक्षा) बने लेकिन नये पद पर गये नहीं।स्थानीय विषयों-लोक साहित्य तथा शिक्षा पर अनेक लेख।‘कर्मभूमि’ का संपादन- 1986-88। ‘सत्यपथ’ का संपादन- 1988-94 तक।‘पर्वतजन’ से भी जुड़ा रहा।

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वीरेन डंगवाल

पहला कविता संग्रह ‘इसी दुनिया में’ 1991 में प्रकाशित। तुर्की के महाकवि नाजि़म हिकमत की कविताओं के अनुवाद पहल पुस्तिका के रूप में। विश्व कविता से पाब्लो नेरूदा, बे्रख्ट, वास्को पोपा, मीरोस्लाव होलुब, तदेऊष रूज़ेवच आदि की कविताओं के अलावा कुछ आदिवासी लोक कविताओं के अनुवाद, बांग्ला, मराठी, पंजाबी, मलयालम और अंग्रेजी में प्रकाशित।

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मंगलेश डबराल

‘हिंदी पेट्रियट’, ‘प्रतिपक्ष’ और ‘आसपास’ में काम करने के बाद भोपाल में ‘पूर्वग्रह’ के सहायक संपादक। छः साल इलाहाबाद और लखनऊ से प्रकाशित ‘अमृत प्रभात’ में साहित्य संपादक। 1983 से ‘जनसत्ता’ में कार्यरत रहे और अप्रैल 2003 से ‘सहारा समय’ में कार्यकारी सम्पादक (विचार) बने। चार कविता संग्रह- ‘पहाड़ पर लालटेन’, ‘घर का रास्ता’, ‘हम जो देखते हैं’ और ‘आवाज भी एक जगह है’,एक डायरी- ‘एक बार आयोवा’ और एक गद्य संग्रह- ‘लेखक की रोटी’ प्रकाशित। राजस्थान के शिक्षक कवियों के संकलन ‘रेतघड़ी’ और पचास वर्ष की हिंदी कविता ‘कविता उत्तरशती’ का संपादन। बेर्टोल्ट ब्रेष्ट, हांस माग्नुस ऐंत्सेंसबर्गर (जर्मन), यासि रित्सोस (यूनानी), ज्बग्नीयेव हेर्बेत, तेदेऊष रूजेविच (पोल्स्की), पाब्लो नेरूदा, एर्नेस्तो कार्देनाल (स्पानी), डोरा गाबे, स्तांका पेंचेवा (बल्गारी) आदि की कविताओं के अनुवाद। जर्मन उपन्यासकार हेरमन हेस्से के उपन्यास ’सिद्धार्थ’ और बांग्ला कवि नवारुण भट्टाचार्य के संग्रह ‘यह मृत्यु उपत्यका नहीं है मेरा देश’ के सह-अनुवादक।

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प्रभात डबराल

सहायक संपादक, ‘जनयुग दैनिक’ 1977-1984 । विशेष समाचार संवाददाता, दूरदर्शन समाचार। अलग-अलग देशों के प्रधानमंत्री/राष्ट्रपति के साथ यात्राएँ तथा रिपोर्टिंग। राष्ट्रीय घटनाओं पर लिखना।

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