जयप्रकाश सेमवाल

उद्योग रत्न अवार्ड, लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड, ग्रेड इंडियन अचीवर्स अवार्ड, इंटरनेशनल मैन आफ द इयर, मिलेनियम मेडल आफ आनर, दून रत्न अवार्ड। 14 राष्ट्रीय व 6 अंतर्राष्ट्रीय अवार्ड से सम्मानित। अब तक 25 देशों की यात्राएं। विकसित देशों का भ्रमण पेपर टेक्नालॉजी एवं पर्यावरण में अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त। आल इंडिया मैनेजमेंट एसोसिएशन के फैलो। 5. अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व।

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फैड्रिक स्मेटेचैक (जूनियर)

तितलियाँ, पतंगे, बीट्ल्स, बग्स, मकड़ी तथा अन्य जीवों के 12 हजार से अधिक नमूनों का संग्रह। यह एक अद्भुत तथा दुर्लभ हिमालयी संग्रह है। सोसायटी ऑव अपील फॉर वैनिशिंग इनवायरनमेंट नामक स्वैच्छिक संस्था की जुलाई 1975 में स्थापना। इसके द्वारा अनेक क्रिया-कलाप, प्रकाशन तथा एडवोकेसी का काम किया। 1982 में 90 प्रतिशत मत प्राप्त कर ग्राम प्रधान बने। नैनीताल जिले में सर्वश्रेष्ठ ग्राम सभा का इनाम पंचायती राज अधिकारी के द्वारा दिया गया। पिरूल से कोयला बनाने का प्रयोग सफल रहा। 1969-71 में चोरगल्या, सेनापानी क्षेत्र में पागल (खूनी) हाथियों को नियंत्रित किया। हिमालय में खूब घूमे हैं और हर तरह की वनस्पतियों तथा पेड़ों पर उन्होंने कार्य किया है। उनका उक्त संग्रह इसी पारिस्थितिक समझ का परिणाम है।

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अनूप साह

1975 में हीरा ताके तथा बटन मशरूम का उत्पादन तथा कारोबार करने वाले प्रथम पर्वतीय। पर्वतारोहण के क्षेत्र में 7 शिखरों पर अभियान का नेतृत्व। 4 बार नन्दा देवी क्षेत्र में पर्वतारोहण। फोटोग्राफी में अन्तर्राष्ट्रीय एसोएिशनशिप, आई.आई.पी.सी. द्वारा डायमण्ड ग्रेडिंग, 1300 से ज्यादा फोटो राष्ट्रीय/अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शित। 155 से ज्यादा पुरस्कार। अनेक संस्थाओं से जुड़े हैं। पहाड़ के फोटो संपादकों में एक।

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राजिव रावत

उपरोक्त काम एक ऐसे प्रवासी के द्वारा किया गया जिसकी पिछली पीढ़ियां पौड़ी गढ़वाल के अपने गाँव से देहरादून और 70 के दशक के मध्य में कनाडा आकर बस गयीं। राजिव रावत इस नये देश के समर्पित नागरिक की तरह जवान हुआ। यद्यपि एक वर्ष की आयु में विदेश चले जाने के बावजूद मेरा अपने देश और खास तौर पर पहाड़ों की गोद से नाता बना रहा। अमेरिका के कॉरनेल विश्वविद्यालय से जीव विज्ञान में डिग्री लेने के बाद मैं उत्तर अमेरिका के सामाजिक व पर्यावरणीय आंदोलनों से जुड़ाव बना रहा। मेरी अनेक रुचियां उत्तराखण्ड के लक्ष्य में एकाकार हो गयीं। वर्ष 1997 से 2000 में उत्तराखण्ड राज्य प्राप्ति तक मैं एक गैर-पार्टी राजनीतिक समूह ‘उत्तराखण्ड सपोर्ट कमिटी’ का सचिव रहा। अमेरिकी और कनेडियाई उत्तराखण्डियों में सक्रिय यह संगठन उत्तराखण्ड की वेब साइट चलाती थी, एक न्यूज लेटर निकालती थी और अपने उद्देश्य के लिए जागरूकता अभियान चलाती थी। राज्य गठन के बाद मुझे ‘उत्तराखण्ड एसोसिएशन आफ नॉर्थ अमेरिका’ के बोर्ड आफ डायरेक्टर्स में शामिल किया गया। इसके सबसे कम उम्र के तथा प्रवासी उत्तराखंडियों की दूसरी पीढ़ी का सदस्य हूँ।

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हरीश चन्द्र सिंह रावत

सन 1952 में असिस्टेंट सब इंस्पैक्टर के पद पर नियुक्त और 12 वर्ष बाद ही वरिष्ठ राजपत्रित अधिकारी पद पर पहुंचा। अनेक पर्वतशिखरों के अलावा 1965 में एवरेस्ट शिखर पर पहुँचने का सौभाग्य प्राप्त किया। इंडियन माउंटेनियरिंग फाउंडेशन में तीन वर्ष तक उपाध्यक्ष। पर्वतारोहियों द्वारा ग्लेशियरों में छोड़े गये ‘कूड़ा-करकट’ की सफाई में प्रयत्नशील.

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सिरिल आर. रैफियल

सचिव- भुवनेश्वरी महिला आश्रम, अंजनीसैण, टिहरी। सलाहकार-रायल नार्वेयिन एजेंसी, क्रिश्चियन एड, इको-टैक सर्विसेज, जी.टी.जेड., सूफी मूवमेंट (इंडिया), वर्ल्ड विजन, आस्ट्रेलिया उच्चायोग, नई दिल्ली, एशिया फाउण्डेशन, यू.एन.एफ.पी.ए.

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ए.डी. मौडी

द्वितीय विश्वयुद्ध में भारतीय सेना में कार्यरत. निदेशक, हिंदुस्तान लीवर लिमिटेड. संस्थापक सदस्य- प्ब्प्डव्क्. सदस्य, योजना आयोग, 1979-80. विकास परियोजनाओं हेतु वरिष्ठ सलाहकार, जी.टी.जेड., आर्थिक सहयोग मंत्रालय, जर्मनी. चेयरमैन, सेन्ट्रल हिमालयन ईको डेवलपमेंट ऐसोसिएशन (चिया), 1980-91। पांच पुस्तकें प्रकाशित।

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