रतन सिंह

नन्दादेवी ईस्ट शिखर (7436 मी.द) आरोहण 1975, नन्दादेवी मुख्य शिखर (7815 मी.) आरोहण, 1981, एवरेस्ट अभियान 1984 में 8100 मी. ऊंचाई तक आरोहण, मोमोस्तंग कांगड़ी शिखर (7516 मी.) आरोहण, 1984,त्रिशूली शिखर (7035 मी.) आरोहण, 2001.

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अनूप साह

1975 में हीरा ताके तथा बटन मशरूम का उत्पादन तथा कारोबार करने वाले प्रथम पर्वतीय। पर्वतारोहण के क्षेत्र में 7 शिखरों पर अभियान का नेतृत्व। 4 बार नन्दा देवी क्षेत्र में पर्वतारोहण। फोटोग्राफी में अन्तर्राष्ट्रीय एसोएिशनशिप, आई.आई.पी.सी. द्वारा डायमण्ड ग्रेडिंग, 1300 से ज्यादा फोटो राष्ट्रीय/अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शित। 155 से ज्यादा पुरस्कार। अनेक संस्थाओं से जुड़े हैं। पहाड़ के फोटो संपादकों में एक।

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हरीश चन्द्र सिंह रावत

सन 1952 में असिस्टेंट सब इंस्पैक्टर के पद पर नियुक्त और 12 वर्ष बाद ही वरिष्ठ राजपत्रित अधिकारी पद पर पहुंचा। अनेक पर्वतशिखरों के अलावा 1965 में एवरेस्ट शिखर पर पहुँचने का सौभाग्य प्राप्त किया। इंडियन माउंटेनियरिंग फाउंडेशन में तीन वर्ष तक उपाध्यक्ष। पर्वतारोहियों द्वारा ग्लेशियरों में छोड़े गये ‘कूड़ा-करकट’ की सफाई में प्रयत्नशील.

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हर्षवन्ती बिष्ट

नन्दादेवी शिखर आरोहण, 1981; एवरेस्ट अभियान, 1984 में हिस्सेदारी. 2. अर्जुन पुरस्कार (1981) तथा 1984 में; उ.प्र. उच्च शिक्षा निदेशालय का स्वर्ण पदक; गढ़वाल हिमालय में पर्यटन विकास एवं पर्यावरण पर स्व. सुनील चन्द्र फैलोशिप (2000)

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सुरेन्द्र सिंह पांगती

उत्तराखण्ड का अधिकतम भ्रमण। 1976 में सिक्किम में भूमि बन्दोबस्त कराया। यह पहला भारतीय राज्य था जहाँ मूल सर्वे मैट्रिक स्केल में किया गया। औली में हिमक्रीड़ा संस्थान की स्थापना। भिलंगना, खतलिंग क्षेत्र को पर्यटकों के लिए खोलना। छोटा कैलास की यात्रा को प्रमुखता देना। थोड़ा बहुत मौलिक लेखन भी किया। कुछेक लेखों के अलावा एक पुस्तिका ‘उत्तराखण्ड या उत्तरांचलः कितना सच-कितना छल’। का प्रकाशन।

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गोविन्द पंत ‘राजू’

‘नैनीताल समाचार’ से दीक्षित होकर और इस पाक्षिक में 1985 तक रहकर 1994 तक ‘नव भारत टाइम्स’ लखनऊ के सम्पादकीय विभाग में रहे। 1995 से ‘आज तक’ चैनल में आये और अभी उ.प्र. के ब्यूरो प्रमुख। 1991 में पहले समाज विज्ञानी तथा पत्रकार के रूप में अंटार्कटिका की यात्रा में गये। नन्दाकोट, कामेट सहित अनेक सफल पर्वतारोहण अभियानों में हिस्सेदारी की। ‘कालिन्दीखाल अभियान 1987’ तथा ‘अस्कोट-आराकोट अभियान 1984’ सहित अनेक अध्ययन अभियानों में शामिल। पत्रकारिता तथा रिपोर्टिंग पर कुछेक सम्मान। मालपा-ऊखीमठ आपदा की टी.वी. रिपोर्टिंग पर विशेष पुरस्कार। हिमालय क्षेत्र की फोटोकारी में भी योगदान।

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लवराज सिंह धर्मशक्तू

19 मई 1998 को ‘टाटा एवरेस्ट अभियान 1998’ के अंतर्गत नार्थ कोल से एवरेस्ट पर चढ़ने में सफल। यह अपेक्षाकृत कठिन रास्ते से सम्पन्न आरोहण था, जो भारत की आजादी की 50वीं सालगिरह के अवसर पर आयोजित किया गया था। इसके अतिरिक्त हिमालय के अन्य 15 दुर्गम पर्वत शिखरों का आरोहण। अनेक भारतीय व विदेशी पर्वतारोहण अभियानों में सहयोग अथवा नेतृत्व किया। पर्वतारोहण प्रशिक्षक के रूप में भी कार्य किया।

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