राजिव रावत

उपरोक्त काम एक ऐसे प्रवासी के द्वारा किया गया जिसकी पिछली पीढ़ियां पौड़ी गढ़वाल के अपने गाँव से देहरादून और 70 के दशक के मध्य में कनाडा आकर बस गयीं। राजिव रावत इस नये देश के समर्पित नागरिक की तरह जवान हुआ। यद्यपि एक वर्ष की आयु में विदेश चले जाने के बावजूद मेरा अपने देश और खास तौर पर पहाड़ों की गोद से नाता बना रहा। अमेरिका के कॉरनेल विश्वविद्यालय से जीव विज्ञान में डिग्री लेने के बाद मैं उत्तर अमेरिका के सामाजिक व पर्यावरणीय आंदोलनों से जुड़ाव बना रहा। मेरी अनेक रुचियां उत्तराखण्ड के लक्ष्य में एकाकार हो गयीं। वर्ष 1997 से 2000 में उत्तराखण्ड राज्य प्राप्ति तक मैं एक गैर-पार्टी राजनीतिक समूह ‘उत्तराखण्ड सपोर्ट कमिटी’ का सचिव रहा। अमेरिकी और कनेडियाई उत्तराखण्डियों में सक्रिय यह संगठन उत्तराखण्ड की वेब साइट चलाती थी, एक न्यूज लेटर निकालती थी और अपने उद्देश्य के लिए जागरूकता अभियान चलाती थी। राज्य गठन के बाद मुझे ‘उत्तराखण्ड एसोसिएशन आफ नॉर्थ अमेरिका’ के बोर्ड आफ डायरेक्टर्स में शामिल किया गया। इसके सबसे कम उम्र के तथा प्रवासी उत्तराखंडियों की दूसरी पीढ़ी का सदस्य हूँ।

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अर्जुन सिंह गुसाईं

मुंबई की सुप्रसिद्ध कैम्ब्रिज शिक्षण संस्था कैम्पियन स्कूल में 33 वर्षों तक अध्यापन। देहरादून से ‘मंदाकिनी’ तथा मुम्बई से ‘हिलांस’ मासिक पत्रिका का संपादन। फिल्म्स डिवीजन में कमेंटेटर, आकाशवाणी में वार्ताकार 20 वर्ष तक। छात्र जीवन में पर्वतीय छात्र संघ देहरादून के महासचिव मुम्बई में उत्तराखण्ड राज्य परिषद के महामंत्री और उत्तराखण्ड क्रांति दल के संस्थापक अध्यक्ष। गढ़वाल भातृ मंडल, मुंबई के 6 वर्षों तक अध्यक्ष; शैल सुमन के 5 वर्षों तक अध्यक्ष और उत्तराखण्ड जन कल्याण समिति के विशेष सलाहकार। अब तक नेपाल, श्रीलंका, मलेशिया, इंडोनेशिया, थाइलेंड और सिंगापुर की यात्राएं कीं। ‘हिलांस’ पत्रिका के माध्यम से देश-विदेश के उत्तराखण्डी बुद्धिजीवियों को जोड़ने का सफल प्रयास किया।प्रवासियों के मध्य मातृभूमि के प्रति निष्ठा की भावना जागृत करने में महत्वपूर्ण कार्य किया। ‘हिलांस’ का प्रकाशन लगातार 19 साल तक।

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