ज़हूर आलम

चर्चित नाट्य संस्था ‘युगमंच’ का कई वर्षों से संचालन। इस संस्था से नाटकों का अक्षर ज्ञान लेकर 16 कलाकार राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय नई दिल्ली और 5 पुणे फिल्म टी.वी. संस्था में गये, जो किसी संस्था के लिए एक कीर्तिमान है। हिन्दी रंग जगत में अभिनेता, निर्देशक के रूप में राष्ट्रीय नाट्य उत्सवों में भागीदारी। कई फिल्मों, टी.वी. सीरियल, टेली फिल्मों में अभिनय। साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं में लेख, कविता, गजलें प्रकाशित।

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टॉम आल्टर्स

1972 में भारतीय फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान पुणे में अभिनय में दाखिला लिया और 1974 में स्वर्णपदक के साथ डिप्लोमा पूरा किया। 1974 से बम्बई फिल्म जगत के चर्चित अभिनेता। अब तक 160 फिल्मों व 50 टीवी सीरियलों में काम कर चुके हैं। इसके अतिरिक्त रंगमंच व लेखन में सक्रिय। चर्चित फिल्मों में चरस, शतरंज के खिलाड़ी, चमेली मेमसाब, क्रांति, देस परदेश, सल्तनत, राम तेरी गंगा मैली, परिंदा, आशिकी, गुमराह, सरदार, सलीम लंगड़े पे मत रो व शहीद उधम सिंह।टीवी सीरियल जुगलबंदी, भारत एक खोज, जुनून, जुबान संभाल के, घुटन, साम्राज्य, नजदीकियां, दायरे, सहर, कैप्टन व्योम व तारा उल्लेखनीय। क्रिकेट पर लिखी पुस्तक पेंगुइन बुक्स द्वारा प्रकाशित।अनेक टीवी मैगजीनों और समाचार पत्रों में खेल स्तंभों में नियमित लेखन।

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अलख नाथ उप्रेती

स्कूली जीवन से ही रंगमंच, सांस्कृतिक गतिविधियों व खेलकूद में भागीदारी। बॉक्सिंग चैंपियन।हाईस्कूल के दौरान मार्क्सवादी साहित्य से परिचय।प्रगतिशील सांस्कृतिक आंदोलन में हिस्सेदारी। विश्वविद्यालयी जीवन में ‘इप्टा’ में सक्रिय। कालांतर में मोहन उप्रेती के नेतृत्व में अल्मोड़ा के विख्यात ‘लोक कलाकार संघ’ के सक्रिय सदस्य। पुरागामी व दकियानूसी मूल्यों के खिलाफ सतत संघर्षरत। 1986 में पहली कुमाउँनी फिल्म ‘मेघा आ’ में अभिनय। 1993 से ‘सांस्कृतिक क्रांति मंच’ के जरिये नौजवानों में क्रांतिकारी उत्तराखण्ड के निर्माण के लिए समर्पित।

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प्रभात कुमार उप्रेती

आदमी बनने की निरंतर कोशिश। ‘आइये अपने से शुरू करें’ अभियान के तहत लोगों को अपने आसपास कुछ अच्छा करने के लिए प्रेरणा हेतु कार्य। पिथौरागढ़ को पॉलीथीन मुक्त करने का प्रयास किया। अतः कुछ लोग पॉलीथीन बाबा कहने लगे हैं। अनेक किताबें तथा दर्जनों लेख प्रकाशित। अस्कोट-आराकोट अभियान सहित अनेक यात्राओं में शामिल। साहित्य तथा रंगमंच से भी गहरा रिश्ता।

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पाराशर गौड़

गढ़वाली में नाट्य लेखन, पुष्पांजलि रंगशाला व आंचलिक रंगमंच के संस्थापक; 1960 से 1984 तक लेखन, अभिनय व निर्देशन; बीस वर्षों तक गढ़वाली नाटकों, गीतों व कविताओं की रचना। कुछ गीत और कविताएँ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुईं। 1983 में पहली गढ़वाली फिल्म ‘जग्वाल’ का निर्माण।1988 में कनाडा प्रवास, वहां भी फिल्मों से जुड़ाव बना हुआ है। कुछ अंग्रेजी, हिन्दी व पंजाबी फिल्मों में काम किया। उत्तरी अमेरिका में गढ़वाली एकांकी का मंचन किया। गढ़वाली गीतों के वीडियो निर्माण में संलग्न।अमेरिका में प्रवासी उत्तरांचली संगठनों में सक्रिय।

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