डॉ. राजकुमार गुप्ता

राजकीय इंटर कालेज टिहरी में जीवविज्ञान प्रवक्ता के रूप में कार्य करना प्रारम्भ किया और ‘डायनामिक्स ऑफ ओक-कोनीपफर फॉरेस्ट्स’ शोध कार्य किया। नैनीताल की वनस्पतियों पर ‘फ्लोरा नैनीतालेंसिस’ पुस्तक की रचना की। दो भागों में प्रकाशित एक अन्य पुस्तक ‘लिविंग हिमालया’ में भारत व विदेशों में किए गए मेरे अध्ययन सम्मिलित हैं। 1972 से 1992 के दौरान देहरादून के भूमि संरक्षण संस्थान में हिमालय के चिरंतन विकास के लिए संयुक्त जलागम प्रबंध् तकनीकों का प्रदर्शन किया। दून घाटी व फकोट क्षेत्र में फसलों की अनेक नई प्रजातियों की शुरूआत की। एफ.ए.ओ. में मुख्य तकनीकी सलाहकार के रूप में अफ्रीका में कार्य किया। 1992 में सेवानिवृत्ति के बाद सी.आर.ई.ए.टी.ई. के आनरेरी निदेशक के बतौर कार्यरत। अब तक 25 पुस्तकों और 300 से अधिक शोधपत्रों का लेखन किया है।

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आर. डी. गौड़

बोटेनिकल सोसाइटी, इंडिया के फ़ैलो, न्यूयार्क एकेडमी ऑफ साइंसेस के चुने गये सदस्य, स्पेसीज सर्वाइवल कमीशन (IUCN) के सदस्य, FNA Sc 150 शोधपत्र तथा ‘फ्लोरा ऑव द डिस्ट्रिक्ट गढ़वाल’ पुस्तक प्रकाशित।युवाओं के नाम संदेशः अपने को ज्ञान और परिश्रम से सक्षम बनायें और अपने कार्यों के प्रति उत्तरदायी बनें।

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अनिल प्रकाश जोशी

ग्रामीण तकनीक केन्द्रित विकास के कार्यक्रम। पर्वतीय समुदायों के संसाधन केन्द्रित आर्थिक सशक्तीकरण हेतु प्रयास। स्थानीय संसाधन केन्द्रित व्यवसाय, घराट संगठन, फल केन्द्रित संगठनों का निर्माण
युवाओं के नाम संदेशः पर्वतीय क्षेत्र संसाधन सम्पन्न हैं लेकिन आर्थिक रूप से गरीब हैं। स्थानीय संसाधनों के सदुपयोग से ही हमारा भला हो सकता है।

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