बिहारी लाल

वनवासी सेवा आश्रम मीरजापुर (सोनभद्र) में स्व प्रेम भाई धार ऐंच पाणी ढाल पर डाला चिपको आन्दोलन से 1976 से 9 मई 1977 के मार्ग दर्शन में जीवनआला, ग्रामीण आला और प्रौढ़ शिक्षा के प्रयोग।

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कुँवर दामोदर सिंह राठौर

बंजर होती अपनी 360 हेक्टेयर नाप भूमि में लाखों स्थानीय प्रजाति के वृक्षों एवं पादपों का रोपण तथा लगभग 24 वर्षों में एक अतिसमृद्ध जैव विविधता से पूर्ण मानव निर्मित वन का निर्माण। इस शान्ति कुंज स्मृति वन में एक सूख चुकी जलधार में पुनः जल प्राप्त करना और उसको स्वयं प्रयोग में लाना एवं शेष जल तलहटी के अन्य ग्रामीणों द्वारा सिंचाई हेतु प्रयोग में लाना। बेरीनाग चाय की उजड़ रही प्रजाति को अपने यहाँ पुनः जीवित करना व अनोखी महक व फ्लेवर वाली चाय को पनपाना।

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बौणी देवी

पिछले 20 वर्षों से महिला मंगल दल की अध्यक्षा पद पर कार्य किया। सलना मंगलदल में अपना एक कोष तैयार किया और सामूहिक जरूरतों का सामान खरीदा। उर्गम हाईस्कूल के लिए दल ने आन्दोलन किया। स्व. गौरा देवी व श्री चण्डीप्रसाद भट्ट के नेतृत्व में चिपको आन्दोलन में हिस्सा लिया। उत्तराखण्ड सेवानिधि व जाखेश्वर शिक्षण संस्थान के साथ मिलकर पिछले 8 वर्षों से पर्यावरण शिक्षा व बालवाड़ी आन्दोलन में हिस्सा। पैनखण्डा महिला विकास संस्थान तथा जय नन्दा देवी स्वरोजगार शिक्षण संस्थान, भर्की की अध्यक्षा। 1987 इंदिरा गाँधी वृक्ष मित्र से सम्मानित। 2001 में जिला प्रशासन की ओर से चिपको नेत्री सम्मान। भारत सेवा समिति श्रीनगर की ओर से पर्यावरण पुरस्कार।

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जगत सिंह चौधरी ‘जंगली’

30 वर्षों के लम्बे समय से कार्यरत। दो हेक्टियर उबड़-खाबड़ जमीन को वन-खेती के रूप में बदला। इस अद्भुत वाणी के कदम से वैज्ञानियों की सोच बदलने का प्रयास। विभिन्न ऊँचाईयों पर उगने वाले छप्पन प्रजातियों के चालीस हजार वृक्षों वाला वन निर्मित किया। पन्द्रह वर्षों के प्रयासों से एक ऐसा वन बनाया, जिसमें नगदी कृषि जैसे- अदरख, हल्दी, चाय सब कुछ पैदा होता है। राष्ट्रीय इंदिरा गाँधी वन मित्र पुरस्कार। अप्रैल 2002 में राज्यपाल सुरजीत सिंह बरनाला द्वारा विशेष दौरा तथा 1 लाख रुपये का पुरस्कार।

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