सुभाष धूलिया

मीडिया और जन संचार के क्षेत्र में पिछले तीस वर्षों से कार्यरत। भारतीय जन संचार संस्थान में पिछले 19 वर्षों से एसोसिएट प्रोफेसर के तौर पर अध्यापन। 500 लेख और संचार क्रांति पर दो पुस्तकें प्रकाशित। भारतीय सूचना सेवा के प्रशिक्षण कायक्रमों का संचालन।आई.ए.एस., आई.पी.एस. आई.एफ.एस. और सेना के अधिकारियों को प्रशिक्षण। सम्प्रति- प्रो. विभागाध्यक्ष हिन्दी पत्रकारिता विभाग, भारतीय जन संचार संस्थान, नयी दिल्ली।

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पीताम्बर देवरानी

शिक्षक से प्रधानाचार्य 1960 में। शिलोटी, मटियाली, देवीखेत, डीडीहाट, देवाल में प्रधानाचार्य रहने के बाद सहायक निदेशक (शिक्षा) बने लेकिन नये पद पर गये नहीं।स्थानीय विषयों-लोक साहित्य तथा शिक्षा पर अनेक लेख।‘कर्मभूमि’ का संपादन- 1986-88। ‘सत्यपथ’ का संपादन- 1988-94 तक।‘पर्वतजन’ से भी जुड़ा रहा।

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अरुण प्रकाश ढौंडियाल

अब तक एक आलोचना ग्रंथ, तीन उपन्यास, दो कहानी संग्रह व एक कविता संग्रह प्रकाशित। कानपुर से प्रकाशित पत्रिका ‘कोमा’ में सहयोगी संपादक। ‘स्वतंत्रता संग्राम में उत्तराखण्ड का योगदान’ स्मारिका के प्रधन संपादक। एन.सी.ई.आर.टी. में कई वर्षों तक रिसोर्स परसन। ‘अखिल भारतीय लघु पत्र-पत्रिका समन्वय मंच’ के महासचिव। ‘आंचलिक सेवा संस्थान’ के संस्थापक-संरक्षक। अनेक पुरस्कारों से सम्मानित।

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पार्वती उप्रेती

1985 में उच्चतर माध्यमिक विद्यालय की प्रधानाचार्या के रूप में अवकाश ग्रहण किया। 25 वर्ष तक निरन्तर आकाशवाणी से सम्बद्ध रही। कविताएं, कहानियां, वार्ताएं प्रसारित होती रहीं। कुछ पुस्तकें भी छपी हैं।जीवन के अनेक उतार-चढ़ावों से जूझते हुए मैंने समाज सेवा के नाते अध्यापन कार्य अपनाया। प्राणप्रण से प्रयास किया कि विद्यालय की बालिकाओं में उच्च शैक्षिक स्तर के साथ देश और समाज के प्रति अपने दायित्वों का बोध् हो। इस हेतु अनेक प्रोजेक्ट चलाए।

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चन्द्र प्रभा एतवाल

1966-86 तक अध्यापन किया।1986 से ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी (एडवेंचर) उत्तरकाशी रहीं। नेहरू इंस्टीट्यूट ऑव माउण्टेनियरिंग (एन.आई.एम.), उत्तरकाशी में 1972 में बेसिक और 1975 में एडवांस माउन्टेयरिंग कोर्स पूरा किया। 1980 में स्कीइंग का इण्टरमीडिएट कोर्स किया। 1978-83 तक नेहरू इंस्टीट्यूट ऑव माउण्टेनियरिंग, उत्तरकाशी में प्रशिक्षक रहीं। इस अवधि में बेबी शिवलिंग, बंदरपूंछ, केदारडोम, कामेट, ब्लैकपीक और 20900, नंदा देवी अभियानों में प्रशिक्षक, सदस्य, डिप्टी लीडर और लीडर की हैसियत से शामिल हुईं। इण्डियन माउण्टेनियरिंग फाउण्डेशन द्वारा प्रायोजित 1984 के एवरेस्ट अभियान की सदस्य रहीं और 27,750 फीट तक पहुँचीं। 1993 में इण्डो-नेपाली महिला साझा अभियान में एवरेस्ट पर 24,000 फीट तक पहुँची। रिवर राफटिंग और 28 दुर्गम पथों पर ट्रेकिंग की। इन उपलब्धियों के लिए भारत सरकार द्वारा ‘पद्मश्री’, अर्जुन पुरस्कार से नवाजा गया।

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एच.एस. कप्रवान

यू.एन.डी.पी. में सलाहकार रहे। रक्षा अनुसंधान में अतिरिक्त निदेशक।युवाओं के नाम संदेशः उच्च शिक्षा ग्रहण करें। तथा अपने राज्य व देश का नाम रोशन करें।

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एस.पी. काला

1976 में भारत सरकार के डिपार्टमेंट ऑव कम्पनी अफेयर्स में द्वितीय श्रेणी अधिकारी के बतौर शामिल।1983 में इंडियन कम्पनी लॉ सर्विस के लिए चयन और अनेक महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया। 1998 में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर हे.न.ब. गढ़वाल विश्वविद्यालय में बिजनेस मैनेजमेंट विभाग के अध्यक्ष का पद संभाला।

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