रमेश पहाड़ी

फरवरी 72 से अक्टूबर 74 तक ‘देवभूमि’ साप्ताहिक का सह संपादक तथा प्रबन्धक। नवम्बर 74 से ‘उत्तराखण्ड आब्जर्वर’ में प्रबन्धक और फिर सह संपादक। ‘अनिकेत’ का सम्पादन तथा प्रकाशन। इसे सितम्बर 2003 में 25 साल पूरे हो रहे हैं। ‘चिपको आन्दोलन’ में सक्रिय हिस्सेदारी। डुंगरी-पैंतोली पहुँचने वाले पहले चिपको कार्यकर्ता और पत्रकार। दशौली ग्राम स्वराज्य मण्डल के लोक सूचना केन्द्र के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों का गहन सर्वेक्षण और अध्ययन। 1988 में स्थापित उमेश डोभाल पत्रकार संघर्ष समिति के संयोजक। 1986-87 में जल निगम की विश्व बैंक परियोजनाओं पर सवाल किया क्योंकि करोड़ों रुपये खर्च करके भी पानी नहीं आया था। इसी तरह अन्य मुद्दे उठाकर स्थानीय पत्रकारिता को नया अर्थ दिया। उत्तराखण्ड संघर्ष वाहिनी के संस्थापक सदस्य। ‘अनिकेत’ को संघर्ष वाहिनी का मुखपत्र बनाया था।

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राकेश चन्द्र नौटियाल

अपनी अपंगता से निराश न होकर विषम परिस्थितियों से जूझते हुए भाई-बहिनों की शिक्षा-दीक्षा व जीवन में व्यवस्थित होने में सहायक रहना। स्वयं का जीवन व्यवस्थित करना। 30 वर्ष के अध्यापन अनुभव के अलावा दो कविता एवं एक कहानी संग्रह का प्रकाशन तथा दो पुस्तकें संपादित कीं। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में दर्जनों निबंध एवं शोध पत्र प्रकाशित। ‘नैतिकी’ मासिक पत्रिका तथा उत्तराखण्ड शोध संस्थान की ‘शिक्षा शोध पत्रिका’ का सह संपादन। सीमान्त खबर (साप्ताहिक) का साहित्यिक संपादक। सदस्य, सलाहकार समिति, इंस्टीट्यूट ऑफ टैक्नालॉजी एण्ड मैनेजमेंट, चकराता रोड, देहरादून।

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प्रभाती नौटियाल

कविताएं, लेख, समीक्षाएँ विभिन्न साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित; जे.एन.यू. से एम.ए. के बाद भारतीय विदेश व्यापार संस्थान में 1978-98 तक स्पेनी भाषा का अध्यापन; 1999 से ‘लोर्का’ त्रैमासिक का संपादन, जो मूल से विदेशी साहित्य को हिंदी में प्रकाशित करने का प्रयास है। मेक्सिको में 1980-81 के दौरान वहाँ के साहित्य पर शोध करने वाला पहला भारतीय। लातीनी अमरीकी देशों द्वारा संयुक्त रूप से दिये जाने वाले पुरस्कार ‘सिमोन बोलीवार’ से सम्मानित; दस से अधिक मूल स्पेनी से अनूदित साहित्यिक कृतियां हिंदी में प्रकाशित, जिनमें पाब्लो नेरूदा की कविताओं का संग्रह ‘रुको ओ पृथ्वी’ साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशित; स्पेनी-हिंदी कोश का संपादन, जो केन्द्रीय हिंदी निदेशालय, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित हुआ। सम्प्रतिः आई.आई.एफ.टी., दिल्ली में विजिटिंग प्रोफेसर।

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महेश दर्पण

हिन्दी अकादमी द्वारा ‘साहित्यकार सम्मान’, ‘कृति पुरस्कार’, ‘नेताजी सुभाषचंद्र बोस सम्मान’, ‘सी.एल. नेपाली पत्रकारिता सम्मान’, ‘पीपुल्स विक्ट्री पत्रकारिता सम्मान’, ‘सार्थक पत्रकारिता सम्मान’ प्राप्त। अब तक पांच कहानी संग्रह, एक आलोचना, एक साक्षात्कार, तीन बाल एवं प्रौढ़ साहित्य की पुस्तकें तथा बारह खण्डों में ‘बीसवीं शताब्दी की हिन्दी कहानियां’ सहित ‘स्वातंत्रयोत्तर हिन्दी कहानी कोश’ और सात अन्य पुस्तकें सम्पादित। सम्प्रतिः टाइम्स ऑफ इण्डिया प्रकाशन समूह के दैनिक सान्ध्य टाइम्स के सम्पादकीय विभाग में।

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पीताम्बर देवरानी

शिक्षक से प्रधानाचार्य 1960 में। शिलोटी, मटियाली, देवीखेत, डीडीहाट, देवाल में प्रधानाचार्य रहने के बाद सहायक निदेशक (शिक्षा) बने लेकिन नये पद पर गये नहीं।स्थानीय विषयों-लोक साहित्य तथा शिक्षा पर अनेक लेख।‘कर्मभूमि’ का संपादन- 1986-88। ‘सत्यपथ’ का संपादन- 1988-94 तक।‘पर्वतजन’ से भी जुड़ा रहा।

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वीरेन डंगवाल

पहला कविता संग्रह ‘इसी दुनिया में’ 1991 में प्रकाशित। तुर्की के महाकवि नाजि़म हिकमत की कविताओं के अनुवाद पहल पुस्तिका के रूप में। विश्व कविता से पाब्लो नेरूदा, बे्रख्ट, वास्को पोपा, मीरोस्लाव होलुब, तदेऊष रूज़ेवच आदि की कविताओं के अलावा कुछ आदिवासी लोक कविताओं के अनुवाद, बांग्ला, मराठी, पंजाबी, मलयालम और अंग्रेजी में प्रकाशित।

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मंगलेश डबराल

‘हिंदी पेट्रियट’, ‘प्रतिपक्ष’ और ‘आसपास’ में काम करने के बाद भोपाल में ‘पूर्वग्रह’ के सहायक संपादक। छः साल इलाहाबाद और लखनऊ से प्रकाशित ‘अमृत प्रभात’ में साहित्य संपादक। 1983 से ‘जनसत्ता’ में कार्यरत रहे और अप्रैल 2003 से ‘सहारा समय’ में कार्यकारी सम्पादक (विचार) बने। चार कविता संग्रह- ‘पहाड़ पर लालटेन’, ‘घर का रास्ता’, ‘हम जो देखते हैं’ और ‘आवाज भी एक जगह है’,एक डायरी- ‘एक बार आयोवा’ और एक गद्य संग्रह- ‘लेखक की रोटी’ प्रकाशित। राजस्थान के शिक्षक कवियों के संकलन ‘रेतघड़ी’ और पचास वर्ष की हिंदी कविता ‘कविता उत्तरशती’ का संपादन। बेर्टोल्ट ब्रेष्ट, हांस माग्नुस ऐंत्सेंसबर्गर (जर्मन), यासि रित्सोस (यूनानी), ज्बग्नीयेव हेर्बेत, तेदेऊष रूजेविच (पोल्स्की), पाब्लो नेरूदा, एर्नेस्तो कार्देनाल (स्पानी), डोरा गाबे, स्तांका पेंचेवा (बल्गारी) आदि की कविताओं के अनुवाद। जर्मन उपन्यासकार हेरमन हेस्से के उपन्यास ’सिद्धार्थ’ और बांग्ला कवि नवारुण भट्टाचार्य के संग्रह ‘यह मृत्यु उपत्यका नहीं है मेरा देश’ के सह-अनुवादक।

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