हरिसुमन बिष्ट

तीन उपन्यास, तीन कहानी संग्रह, एक यात्रा संस्मरण, एक संपादित पुस्तक अब तक प्रकाशित. 1993 में अराधक सम्मान, 1995 में डॉ. अम्बेडकर सेवा श्री सम्मान, 1995 में रामवृक्ष बेनीपुरी सम्मान, 2000 में हिन्दी सेवी सहस्राब्दी सम्मान प्राप्त।

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लक्ष्मण सिंह बिष्ट ‘बटरोही’

कुमाऊँ विश्वविद्यालय में हिन्दी विभागाध्यक्ष. बुदापैश्त (हंगरी) में भारतशास्त्र के अतिथि प्रोफेसर. रूमानिया, हंगरी, चेक गणराज्य, इंग्लैंड, जर्मनी, फिनलैंड आदि की यात्राएं।

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दीक्षा बिष्ट

लगभग 300 से अधिक लेख समाचार पत्रों व पत्रिकाओं में प्रकाशित। आकाशवाणी से विभिन्न वैज्ञानिक व तकनीकी विषयों पर 250 से अधिक वार्ताएं प्रकाशित। दो पुस्तकें मौलिक, दो अनूदित एवं चार सम्पादित। हिन्दी में विज्ञान लेखन व उत्कृष्ट सम्पादन के लिए अनेक सम्मानों व पुरस्कारों से सम्मानित। वर्ष 1989 से 2001 तक लोकप्रिय विज्ञान पत्रिका ‘विज्ञान प्रगति’ की सम्पादक तथा वर्तमान में राष्ट्रीय विज्ञान संचार एवं सूचना स्रोत संस्थान, नई दिल्ली में वैज्ञानिक ‘ई-2’ के पद पर कार्यरत.

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चारु चन्द्र पाण्डे

बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की 1947 की परीक्षा में डबल फर्स्ट सहित सर्वप्रथम स्थान. अध्यापन का राष्ट्रपति पुरस्कार. उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा विशिष्ट पुरस्कार से सम्मानित. उमेश डोभाल स्मृति सम्मान. कुमाउँनी, हिन्दी, अंग्रेजी में लेखन कार्य. ‘अघ्वाल’, ‘सेज गुमानी’, ‘ईकोज फ्राम द हिल्स’, ‘छोड़ो गुलामी खिताब’ पुस्तकें प्रकाशित. 1962 से आकाशवाणी लखनऊ हेतु लेखन एवं प्रसारण. अल्मोड़ा में दीर्घकाल तक साहित्यिक, सांस्कृतिक आयोजनों में सक्रिय रहे।

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प्रदीप पन्त

अब तक 21 पुस्तकें प्रकाशित- 4 उपन्यास, 5 कहानी संग्रह, 4 व्यंग्य संग्रह, 4 यात्रा-संस्मरणों की पुस्तकें, एक विविध लेखों आदि का संग्रह, 3 बाल-कहानी संग्रह। यूरोप की यात्राएं कीं; हिन्दी अकादमी, दिल्ली से तीन बार सम्मानित; इसी अकादमी से हिन्दी भाषा, साहित्य व संस्कृति में उल्लेखनीय योगदान के लिए 1999-2000 का ‘साहित्यकार सम्मान’; उ.प्र. हिन्दी संस्थान आदि से भी पुरस्कृत; अनेक भाषाओं में रचनाएं अनूदित।

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दयानन्द अनन्त

1958 में पहली कहानी ‘गुइयाँ गाले न गले’ के ‘कहानी’ में छपने के साथ रचनात्मक यात्रा शुरु। अब तक 2 कहानी संग्रह, 3 उपन्यास, 5 टीवी नाटक, अनेक हास्य व्यंग्य तथा अनेक अनुवाद प्रकाशित। रूसी दूतावास में जन सम्पर्क अधिकारी भी रहे और फिर स्वतंत्र रचनाकार के रुप में ‘पर्वतीय टाइम्स’ के संस्थापक- संपादक बने। यह पत्र 1980 से 1989 तक प्रकाशित हुआ था। वर्तमान में भी यह प्रकाशित हो रहा है।

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