शमशेर सिंह बिष्ट

पहाड़ में रहकर जनआंदोलन व चेतना को बढ़ाने का कार्य आरम्भ किया। सन 1974 से 78 तक वन आंदोलन (चिपको) में सक्रिय रहे और लगातार जेल जाते रहे। 1978 में नैनीताल अग्नि कांड और तवाघाट व गंगोत्री भूस्खलन से प्रभावित क्षेत्रों में आंदोलन चलाया जिसके कारण स्थानीय लोगों को तराई में जमीन मिली। 1984 में नशा नहीं रोजगार दो आंदोलन चला, परिणामस्वरूप आबकारी नीति में परिवर्तन। पहाड़ में चले स्थानीय आंदोलनों से जुड़े रहे। टिहरी बांध के विरोध में चले आंदोलन में भी शामिल रहे। 1994 के उत्तराखण्ड आंदोलन में प्रमुख भूमिका निभाई। 1978 से उत्तराखण्ड संघर्ष वाहिनी के अध्यक्ष। अब वह उत्तराखण्ड लोक वाहिनी के नाम से जानी जाती है।

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राधा बहन

लक्ष्मी आश्रम में शिक्षा और शिक्षण साथ-साथ। 1957 से 61 तक उत्तराखण्ड में ‘भूदान’ यात्रा में शामिल। 1965 में स्कैंडिनेवियन देशों के फोक हाईस्कूलों का अध्ययन। 1966-86 तक लक्ष्मी आश्रम की संचालिका। शराबबन्दी, खनन विरोधी तथा चिपको आन्दोलन से सक्रिय रूप से जुड़ी रहीं। विभिन्न देशों की यात्राओं में व्याख्यानों का क्रम निरन्तर जारी रहा। 1992 में ‘जमनालाल बजाज’ पुरस्कार से सम्मानित। हिमालय हिन्दुकुश की महिलाओं के संगठन ‘हिमवंती’ से भी जुड़ी हैं। अनेक किताबें तथा लेख प्रकाशित।

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