मोहन चन्द तिवारी

अब तक प्राच्य विद्या, इतिहास तथा संस्कृति से सम्बंधित छः पुस्तकें तथा सौ से भी अधिक शोधलेखों का राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन। दिल्ली संस्कृत अकादमी द्वारा ‘संस्कृत शिक्षक’ पुरस्कार। ‘विद्या रत्न सम्मान’। ‘आचार्य रत्न देशभूषण सम्मान’। राष्ट्रपति सम्मान। सामाजिक संस्था बाल सहयोग’ की प्रबंध समिति का सदस्य। दिल्ली संस्कृत अकादमी की कार्यकारिणी का सदस्य।

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महेश दर्पण

हिन्दी अकादमी द्वारा ‘साहित्यकार सम्मान’, ‘कृति पुरस्कार’, ‘नेताजी सुभाषचंद्र बोस सम्मान’, ‘सी.एल. नेपाली पत्रकारिता सम्मान’, ‘पीपुल्स विक्ट्री पत्रकारिता सम्मान’, ‘सार्थक पत्रकारिता सम्मान’ प्राप्त। अब तक पांच कहानी संग्रह, एक आलोचना, एक साक्षात्कार, तीन बाल एवं प्रौढ़ साहित्य की पुस्तकें तथा बारह खण्डों में ‘बीसवीं शताब्दी की हिन्दी कहानियां’ सहित ‘स्वातंत्रयोत्तर हिन्दी कहानी कोश’ और सात अन्य पुस्तकें सम्पादित। सम्प्रतिः टाइम्स ऑफ इण्डिया प्रकाशन समूह के दैनिक सान्ध्य टाइम्स के सम्पादकीय विभाग में।

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पीताम्बर देवरानी

शिक्षक से प्रधानाचार्य 1960 में। शिलोटी, मटियाली, देवीखेत, डीडीहाट, देवाल में प्रधानाचार्य रहने के बाद सहायक निदेशक (शिक्षा) बने लेकिन नये पद पर गये नहीं।स्थानीय विषयों-लोक साहित्य तथा शिक्षा पर अनेक लेख।‘कर्मभूमि’ का संपादन- 1986-88। ‘सत्यपथ’ का संपादन- 1988-94 तक।‘पर्वतजन’ से भी जुड़ा रहा।

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गिरीश तिवारी ‘गिर्दा’

आजीविका चलाने के लिए क्लर्क से लेकर वर्कचार्जी तक का काम करना पड़ा। फिर संस्कृति और सृजन के संयोग ने कुछ अलग करने की लालसा पैदा की। अभिलाषा पूरी हुई जब हिमालय और पर्वतीय क्षेत्र की लोक संस्कृति से सम्बद्ध कुछ करने का अवसर मिला। प्रमुख नाटक, जो निर्देशित किये- ‘अन्धायुग’, ‘अंधेरी नगरी’, ‘थैंक्यू मिस्टर ग्लाड’, ‘भारत दुर्दशा’। ‘नगाड़े खामोश हैं’ तथा ‘धनुष यज्ञ’ नाटकों का लेखन किया। कुमाउँनी-हिन्दी की ढेर सारी रचनाएँ लिखीं । गिर्दा ‘शिखरों के स्वर’ (1969), ‘हमारी कविता के आँखर’ (1978) के सह लेखक तथा ‘रंग डारि दियो हो अलबेलिन में’ (1999) के संपादक हैं तथा ‘उत्तराखण्ड काव्य’ (2002) के रचनाकार हैं। ‘झूसिया दमाई’ पर उन्होंने अपने सहयोगियों के साथ एक अत्यन्त महत्वपूर्ण संकलन-अध्ययन किया है। उत्तराखण्ड के कतिपय आन्दोलनों में हिस्सेदारी की। कुछेक बार गिरफ्तारी भी हुई।

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अरुण प्रकाश ढौंडियाल

अब तक एक आलोचना ग्रंथ, तीन उपन्यास, दो कहानी संग्रह व एक कविता संग्रह प्रकाशित। कानपुर से प्रकाशित पत्रिका ‘कोमा’ में सहयोगी संपादक। ‘स्वतंत्रता संग्राम में उत्तराखण्ड का योगदान’ स्मारिका के प्रधन संपादक। एन.सी.ई.आर.टी. में कई वर्षों तक रिसोर्स परसन। ‘अखिल भारतीय लघु पत्र-पत्रिका समन्वय मंच’ के महासचिव। ‘आंचलिक सेवा संस्थान’ के संस्थापक-संरक्षक। अनेक पुरस्कारों से सम्मानित।

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वीरेन डंगवाल

पहला कविता संग्रह ‘इसी दुनिया में’ 1991 में प्रकाशित। तुर्की के महाकवि नाजि़म हिकमत की कविताओं के अनुवाद पहल पुस्तिका के रूप में। विश्व कविता से पाब्लो नेरूदा, बे्रख्ट, वास्को पोपा, मीरोस्लाव होलुब, तदेऊष रूज़ेवच आदि की कविताओं के अलावा कुछ आदिवासी लोक कविताओं के अनुवाद, बांग्ला, मराठी, पंजाबी, मलयालम और अंग्रेजी में प्रकाशित।

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विनय मार डबराल

अब तक एक हजार से अधिक कहानियां तथा 13 उपन्यास लिखे हैं। संग्रह के रूप में 11 कहानी संग्रह, 2 उपन्यास व 3 आलोचनात्मक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। युवाओं के नाम संदेशः प्रत्येक मनुष्य के पास कोई न कोई प्रतिभा अवश्य होती है। हमें अपनी प्रतिभा को दबाना नहीं चाहिए, बल्कि उसे देशहित में लगाना चाहिए। फल तो स्वयं मिलता है। उसे मांगने की आवश्यकता नहीं।

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