(श्रीमती) अज़रा खान ‘नूर’

उत्तरांचल प्रदेश की स्थापना हेतु जिस प्रकार शक्ति के साथ प्रयासरत होकर आप लोगों ने सपफलता प्राप्त की, उसी प्रकार हर क्षेत्र में इस प्रदेश के उन्नयन एवं समृद्धि हेतु अपनी ओर से भरसक प्रयत्न करते रहें। पर्वतीय अंचल के युवाओं के लिए प्रचलित शब्द ‘परिश्रमी’ को सार्थक करते हुए उद्योग, व्यापार, शिक्षा-संस्कृति, साहित्य, समाज सेवा, खेलकूद आदि क्षेत्रों में उपलब्धियां हासिल कर अपने राज्य को देश के बेहतरीन राज्य का दर्जा दिलाने का गौरव प्राप्त करें।

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डॉ. प्रेमलाल ग्वाड़ी

तीस पुस्तकों का सृजन, गद्य, पद्य, कहानी एवं निबंध विधा में साहित्य सृजन।उत्तराखण्ड आन्दोलन में सहभागिता.सहस्राब्दि विश्व हिन्दी सम्मेलन, नई दिल्ली द्वारा राष्ट्रीय हिन्दी सेवी सहस्राब्दि सम्मान से सम्मानित।

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महाबीर प्रसाद गैरोला

1945-56 में टिहरी गढ़वाल राज्य के हाई कोर्ट में रीडर व रजिस्ट्रार के पद पर कार्य किया। त्यागपत्र देकर कानून की पढ़ाई करने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में दाखिला। बिना किसी प्रशिक्षण के जवाहरलाल नेहरू सहित अनेक प्रख्यात व्यक्तियों की प्रस्तर/प्लास्टर प्रतिमाएं बनाईं।अध्यापन के अतिरिक्त गढ़वाली, हिन्दी व अंग्रेजी में लेखन। अनेक उपन्यास, कविता, कहानी व निबंध संग्रह प्रकाशित।

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नवीन चन्द्र जोशी

लेख-कहानियां। एक कहानी संग्रह ‘अपने मोर्चे पर’। सक्रिय पत्रकारिता में रोजी-रोटी।अपने समय, समाज व स्थितियों को समझना बेहद जरूरी। उत्तराखंड की समस्याओं व समस्याओं के गहन अध्ययन-मनन से ही बेहतरी की राह मिलेगी। उत्तराखंड के इतिहास व वर्तमान में संघर्ष की अद्भुत चेतना मौजूद है। उम्मीद है वह विकसित होगी।

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पाराशर गौड़

गढ़वाली में नाट्य लेखन, पुष्पांजलि रंगशाला व आंचलिक रंगमंच के संस्थापक; 1960 से 1984 तक लेखन, अभिनय व निर्देशन; बीस वर्षों तक गढ़वाली नाटकों, गीतों व कविताओं की रचना। कुछ गीत और कविताएँ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुईं। 1983 में पहली गढ़वाली फिल्म ‘जग्वाल’ का निर्माण।1988 में कनाडा प्रवास, वहां भी फिल्मों से जुड़ाव बना हुआ है। कुछ अंग्रेजी, हिन्दी व पंजाबी फिल्मों में काम किया। उत्तरी अमेरिका में गढ़वाली एकांकी का मंचन किया। गढ़वाली गीतों के वीडियो निर्माण में संलग्न।अमेरिका में प्रवासी उत्तरांचली संगठनों में सक्रिय।

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अच्युतानन्द घिल्डियाल

पाकिस्तान बनने और गांधी जी के कहने पर स्वतंत्रता संग्राम में कार्य करने का जब कुछ लाभ नहीं दिखा तो राजनीति छोड़ कर 1952 में बी.ए., एम.ए. और पीएच.डी. की। 1970 से अध्यापन और लेखन कार्य में संलग्न। एकला चलो रे के आधार पर संकट झेलकर लेखन कार्य किया और प्राचीन भारतीय साहित्य को प्रकाश में लाने वाले ग्रन्थ लिखे। अब तक 3 दर्जन से अधिक पुस्तकों की रचना।

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चारु चन्द्र चंदोला

1. तीन पुस्तकें प्रकाशित 2. जयश्री सम्मान से सम्मानित 3. पिछले 35 वर्षों से युगवाणी में सम्पादकीय सहयोग 4. कविताओं में क्षेत्रीय पहचान को प्रतिनिधित्व 5. पत्रकारिता में ‘सरग दिदा’ के नाम से क्षेत्रीय भाषा का प्रयोग।

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