सात समौंदर पार च जाणा ब्वै, जाज मां जोंलु कि ना

नरेन्द्र सिंह नेगी जी के अधिकांश गीत पारम्परिक लोकसंगीत की विभिन्न विधाओं पर आधारित होते हैं। प्रस्तुत लोकगीत "खुदेड़ गीत" का एक बेहतरीन उदाहरण है। "खुदेड़ गीत" उत्तराखण्ड के विरह वेदना, स्मृति और वियोग से भरे पारम्परिक गीत हैं। (खुद+एड़, खुद = क्षुधा या उत्कन्ठा)। नेगी जी की आवाज में ही एक अन्य खुदेड़ गीत "घुघुती घुरोण लगि म्यारा मैत की" पहले ही साइट पर दिया जा चुका है। इस गीत का समय काल द्वितीय विश्वयुद्ध का है। अंग्रेजों के शासनकाल में उत्तराखण्ड के हजारों लोगों ने दोनों विश्वयुद्धों में…

Read More