आवा दिदा भुलौं आवा, नांग धारति की ढकावा , डाळि बनबनी लगावा

वनों पर मानव समाज की निर्भरता हमेशा से ही रही है, लेकिन बढते जनसंख्या के दवाब और औद्यौगिकरण के लिये जंगलों के अनियंत्रित दोहन से असन्तुलन की चिन्ताजनक स्थिति पैदा हो चुकी है। इस समय “ग्लोबल वार्मिंग ” और अन्य पर्यावरणीय मुद्दों पर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर गम्भीर विचार-विमर्श चल रहा है लेकिन आम लोगों की सहभागिता के बिना पर्यावरण संरक्षण का कोई भी प्रयास सफल हो पायेगा ऐसा सोचना मूर्खता ही कहा जायेगा। उत्तराखण्ड की भौगोलिक स्थिति मध्य हिमालय के लिये बहुत महत्वपूर्ण और नाज़ुक है और इस इलाके के…

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