अनजान से बना महान

रविवार था। छुट्टी का दिन। बच्चों ने शाम को ही देवीदा से बात करके तय कर लिया था कि सुबह सैर पर निकलेंगे। गार्गी के घर पर मिलने की बात हो गई। देवीदा ठीक समय पर पहुंच गए। लेकिन, घर के सामने उदास बैठी गार्गी को देख कर चौंक गए। पूछा, “तुम तो सैर के लिए सबसे ज्यादा खुश थीं, गार्गी। अब क्या हो गया? उदास क्यों हो?” गार्गी बोली, “बस यों ही देवीदा…” “बस यों ही तो नहीं है। कोई न कोई बात जरूर है।” देवीदा बोले। तब तक…

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