हिट स्यालि धर हाथ थाम्बाली चल उत्तराखंडे रैली मा, रैली मा

उत्तराखंड राज्य प्राप्ति आन्दोलन एक जन आन्दोलन था। इस आन्दोलन हर व्यक्ति ने अपनी अपनी क्षमता अनुसार सहयोग किया। यहाँ तक कि घर की महिलाओं ने भी इसमे बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। नरेन्द्र सिंह नेगी जी ने उत्तराखंड राज्य प्राप्ति आन्दोलन के दौरान अपने गीतों से भरपूर सहयोग दिया। चाहे वह “मथि पहाड़ु बटि, निस गंगाड़ु बटि..उत्तराखण्ड आन्दोलन मां” हो या “जाग जाग हे उत्तराखण्डि…..जै भारत जै उत्तराखण्ड ” वाला गीत हो। आज हम उसी दौरान नेगी जी द्वारा गाया गीत प्रस्तुत कर रहे हैं जिसमें एक जीजा अपनी…

Read More

मोटरूंको सैणुं हो यु, होटलुको खाणुं,ई डरैबरि कलैण्डरि मां

नरेन्द्र सिंह नेगी ने समाज के हर तबके की भावनाओं को अपने गानों के माध्यम से दुनिया के सामने रखा है। आइये सुनते हैं नेगी जी का एक पुराना गाना जिसमें उन्होंनें ड्राइवरों और कंडक्टरों की पीड़ा को बखूबी व्यक्त किया है। बस, गाड़ी या टैक्सी चलाने वाले ड्राइवर और कण्डक्टर किस तरह कष्ट सहते हुए भी अपने काम में लगे रहते हैं यह इस गाने से स्पष्ट होता है। इस गाने में ड्राइवरी या कण्डक्टरी करने वाला एक व्यक्ति अपने दर्द को बयान कर रहा है और अपने गांव…

Read More

जाग जाग हे उत्तराखण्डि…..जै भारत जै उत्तराखण्ड

सन 1994 में पृथक उत्तराखण्ड राज्य की मांग को लेकर पहाड़ के लोगों ने एक व्यापक अहिंसक आन्दोलन चलाया था। यह एक स्वत:स्फूर्त आन्दोलन था जिसमें समाज के हर वर्ग और आयु के लोगों ने बढ-चढ कर हिस्सा लिया। इसी दौरान लोकगायक व कवि नरेन्द्र सिंह नेगी जी ने एक कविता के रूप में इस “आह्वान गीत” को लिखा। यह गीत बाद में उत्तराखण्ड आन्दोलन के दौरान उनके एक कैसेट में रिलीज हुआ। यह गीत उत्तराखण्ड के समस्त नारी-पुरुषों को एकजुट होकर उत्तराखण्ड राज्य के हित में आवाज उठाने का…

Read More

कनु लड़िक बिगड़ि म्यारु ब्वारी कैर की

नरेन्द्र सिंह नेगी जी का गाया गीत “कनु लड़िक बिगड़ि म्यारु ब्वारी कैर की” एक बूढ़े हो चले माँ बाप की व्यथा-कथा है। वैसे तो अपनी सन्तान का पालन-पोषण करने के पीछे किसी भी माता-पिता का कोई स्वार्थ नहीं होता, लेकिन कहीं न कहीं यह आशा जरूर होती है कि बुढापे में जब उनका शरीर अशक्त हो जायेगा तो यही सन्तान उन्हें सहारा देगी, लेकिन सभी माँ-पिता इतने भाग्यशाली नहीं होते कि उनके बेटे और बहुएं उनके पास रह कर उनके बुढापे का सहारा बनें। नये जमाने के युवक युवती…

Read More

घुघूती घुरूंण लगी म्यारा मैत की

उत्तराखण्ड का लोकसंगीत न्यौली और खुदैड़ जैसे विरह गीतों से भरा पड़ा है। इन गीतों का अधिकांश भाग विवाहित महिलाओं पर आधारित है जो विकट ससुराल के कष्टपूर्ण जीवन को कोसते हुए मायके के दिन याद करती हैं। पहाड़ के गांवों में महिलाओं का जीवन अत्यंत संघर्षशील और कष्टप्रद है। दिनभर खेत-खलिहान-जंगल, मवेशियों और घर-परिवार की जिम्मेदारी अपने कंधों पर संभालने वाली मेहनतकश, मजबूत नारी को सामान्यत: इतना अवकाश भी नहीं मिल पाता कि वह अपने मायके को याद कर पाये। लेकिन जैसे ही चैत (चैत्र) का महीना लगता है…

Read More

Classification of Folk Dance-Songs of Garhwal by Dr Shivanand Nautiyal-2

[“गढ़वाल के लोक नृत्य गीत” डॉ शिवानन्द नौटियाल द्वारा लिखी हुई एक महत्वपूर्ण पुस्तक है। इसी पुस्तक की समीक्षा श्री भीष्म कुकरेती जी द्वारा की गयी है। इस पुस्तक समीक्षा को एक श्रंखला के रूप में प्रकाशित कर रहे हैं। इस श्रंखला के माध्यम से आप उत्तराखंड-गढ़वाल के सांस्क़ृतिक परिदृशय से भी परिचित होंगे।- प्रबंधक] प्रस्तुत है दूसरा भाग। [पहला भाग यहाँ पढ़ें] Taxonomy by Abodh Bandhu Bahuguna (1954): Analysis of Garhwali folk songs started by Abodh Bandhu Bahuguna.Dhunyal (1954) is first work of analyzing and classifying the Garhwali Folk…

Read More

Classification of Folk Dance-Songs of Garhwal by Dr Shivanand Nautiyal-1

[“गढ़वाल के लोक नृत्य गीत” डॉ शिवानन्द नौटियाल द्वारा लिखी हुई एक महत्वपूर्ण पुस्तक है। इसी पुस्तक की समीक्षा श्री भीष्म कुकरेती जी द्वारा की गयी है। इस पुस्तक समीक्षा को एक श्रंखला के रूप में प्रकाशित कर रहे हैं। इस श्रंखला के माध्यम से आप उत्तराखंड-गढ़वाल के सांस्क़ृतिक परिदृशय से भी परिचित होंगे।- प्रबंधक] (Commentary on Garhwal ke Lok Nritya Geet, a Timeless Book on Folk Song-Dance of Garhwal) Late Dr Shivananad Nautiyal is not an unknown name in Garhwali folk literature nor is he unfamiliar in social and…

Read More