गौळा मां बडुळि, मेरि पैत्वाल्युं पराज

अपने मूल से उखड़ कर तो एक पौधा भी सूख जाता है, मनुष्य भला कैसे अपनी जन्मभूमि से बिछड़ कर सुखी रह सकता है। नरेन्द्र नेगी जी ने इस गाने के माध्यम से अपने पैतृक गांव और परिवार से दूर रह रहे एक प्रवासी पहाड़ी पुरुष की तड़प व्यक्त की है। शहर की तेज दौड़ती ज़िन्दगी के बीच अचानक इस पुरुष को बडुळि (हिचकी) लगती है, पैरों के तलवों में खुजली लगती है और चूल्हें की आग भरभरा कर आवाज करने लगती है। पहाड़ों में यह माना जात है कि…

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तेरि पिड़ा मां दुई आंसु मेरा भि

नरेन्द्र सिंह नेगी जी के गीतों में अन्तर्निहित भावों की सुन्दरता को आपने इससे पहले भी कई गीतों में इस साइट पर महसूस किया होगा। यही अन्तर्निहित भाव उनके गीतों अधिक सुन्दर व अर्थपूर्ण बनाते है। आज हम ऐसा ही भावनापूर्ण गीत आपके सामने लेकर आ रहा हैं। इस गीत में पहाड़ के अधिकांश विवाहित जोड़ों की तरह पति पहाड़ से बाहर जाकर नौकरी कर रहा है और स्त्री गांव में रहकर घर व खेतों की देखभाल कर रही है व परिवार का पालन-पोषण कर रही है। विरहरस से भरे…

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जी रे जागि रे, जुगराज रे तू- जी रे

तेजी से बदलते भारतीय समाज में अन्य भारतीय परम्पराओं के साथ- साथ संयुक्त परिवार का ताना-बाना भी टूटता जा रहा है। कैरियर और प्रतिस्पर्धा के पीछे भागते-भागते आज का युवावर्ग अपने माता-पिता के रूप में किस अमूल्य निधि का तिरस्कार करता है, उसे आभास नहीं हो पाता। बड़े शहरों में ऐसे कई बुजुर्गों की कहानी सुनने को मिलती है जिनकी सन्तानें उन्हें अकेले छोड़कर या वृद्धाश्रम में धकेलकर बेरोकटोक, स्वतन्त्र जीवन जीने का रास्ता चुनते हैं और अन्तत: ऐसे बुजुर्ग या तो अपने नौकरों के हाथों मारे जाते हैं या…

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धार मां कु गेणुं पार देख ऐ गे

इस साइट पर आप इससे पहले नरेन्द्र सिंह नेगी जी का गाना “मुल-मुल कैकु हैंसणि छै तू” सुन चुके हैं, जिसमें एक युवती जंगलों के पौधों को अपना मित्र मानते हुए उनसे अपने दिन की बात कह रही है। इसी तरह जंगलों में अपने मवेशियों को चराने गये दल के एक पुरुष और महिला के बीच हुई बातचीत पर आधारित है नेगी जी का यह गाना। रुमुक (शाम का धुंधलका) आ जाने पर जब सभी जानवर घरों की तरफ लौट पड़े तो लछी नाम की महिला अपनी गाय को ढूंढते…

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घाघरी का घेर, ब्योलि बौ-सैमन्या बौ

प्रस्तुत गाना नेगी जी के लोकप्रिय गानों में से एक है। बारात में आया हुआ एक युवक (देवर) अपनी होने वाली भाभी (दुल्हन) के साथ सामान्य परिचय व हल्की-फुल्की मजाक कर रहा है।  ऐसे ही काल्पनिक संवाद के आधार पर यह गाना बना है। देवर अपनी भाभी के साथ परिचय बढाना चाह रहा है, और दुल्हन भी हंसी-मजाक के लहजे में उसे जवाब दे रही है। यह गीत एलबम “तीले धारो बौला” से लिया गया है, अनिल बिष्ट जी के निर्देशन में इस वी.सी.डी. को रामा कैसेट्स ने रिलीज किया…

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तुम भी सूणां मिन सुणियाली, गढ़वाल ना कुमौं जालि

असली लोककलाकार वही है जो जनता की भावना को अपनी कला के माध्यम से प्रसारित करे। सच्चे कलाकार का यह दायित्व नरेन्द्र सिंह नेगी जी सदैव निभाते रहे हैं। पहाड़ की जनता के दुखदर्द और उनकी अपेक्षाओं को अपने गीतों के माध्यम से समाज के बीच रखने का उन्होने हमेशा प्रयास किया है। नेगी जी ने उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन, चिपको आन्दोलन तथा शराब विरोधी आन्दोलन से सम्बन्धित न केवल गीत गाये बल्कि यथासम्भव इन आन्दोलनों में भागीदारी भी की। उत्तराखण्ड राज्य बनने से पहले ही लोगों ने राजधानी के लिये…

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रोग पुराणु कटे ज़िन्दगी नई ह्वैगे, तेरु मुल – मुल हैंसुणु दवाई ह्वैगे

नरेन्द्र सिंह नेगी जी ने बहुत से प्रेम-गीत गाये हैं लेकिन उनके गाये कुछ प्रेम गीत ऐसे  हैं जिसमें प्रेम को लेकर एक नये तरीके के उपमानों का प्रयोग किया गया है उदाहरण के लिये उनके गाये त्यारा रूप कि झौल मां, नौंणी सी ज्यू म्यारु को ही लें जिसमें उन्होने प्रेमिका के रूप की आँच से प्रेमी के मक्खन रूपी हृदय के गलने की बात कही थी। आज प्रस्तुत है उसी तरह का एक गीत जिसमें प्रेमिका का मंद मंद मुस्कुराना प्रेमी के लिये दवाई बन जाता है। इस…

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