घुघुती बासेंछी मेरा देश

अब, सच्ची बात तो यह है कि हमारे गांव में हमीं जो क्या रहने वाले ठैरे, और भी बाशिंदे हुए वहां के। आप ‘गोरु-बाछ-बाकार’ सोच रहे होंगे। वे तो हुए ही। बल्कि वे ही क्यों, सिरु-बिरालू और ढंट कुकर भी तो हमारे घरों में ही रहने वाले हुए। मगर इनके अलावा भी मेरे गांव के सैकड़ों बाशिंदे गांव की जमीन, खेतों में खड़े पेड़-पौधों और गांव की सरहद से लगे डान-कानों और उनमें उगे जंगलों में रहते थे। समझ ही गए होंगे आप? मैं अपने गांव की उन चिड़ियों की…

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