हिवांलि कांठि चांदि की बणि गैनि

यह नरेन्द्र सिंह नेगी जी का बहुत प्रसिद्ध और पुराना गाना है। सूर्योदय से लेकर सांझ ढलने तक सूरज की सभी अवस्थाओं का बखान करने के साथ ही नेगी जी ने इस गाने में ग्रामीण परिवेश में रह रही महिलाओं की दिनचर्या को भी खूबसूरती से चित्रित किया है। भावार्थ : चमकता हुआ घाम (धूप) बर्फीली चोटियों पर पड़ता है तो ऐसा लगता है मानो हिमाच्छादित यह चोटियां चांदी की बन गईं हो। सबसे पहले (सूरज की पहली किरण) भगवान शिव के धाम, कैलाश पर्वत पर पड़ती है, फिर उसका…

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