आपने गोपाल बाबू गोस्वामी के गाये ओ परुवा बौज्यू चपल के ल्याछा यस या फिर पतई कमर तिरछी नजर गाने सुने ही हैं, जिसमें एक स्त्री के रूप के साथ उसके फैशन के बारे में भी बात की गयी थी। आज जो गाना आप सुनने जा रहे हैं उसमें एक पति अपनी पत्नी के शानो-शौकत और फैशन से त्रस्त है और उसकी मांगो को पूरी करने में अपने आप को असमर्थ पाता है। मजेदार गाना है यह। भावार्थ : अरे तेरी इस शानोशौकत के क्या कहने,अरे मेरी संतरे के दाने…
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तेरो मछोई गाड़ बागीगे ले खाले अब तो माछा
नेगी जी के गानों की विशिष्टता यह भी है कि उनके गानों में सामान्य जनजीवन के सभी रंग समाहित है। अब इस व्यंगात्मक गाने को ही लीजिये, एक महिला को मछली के व्यंजन खाने का भारी शौक है बिचारी का मछुआरा पति उसके भोजन के लिये मछली मारने के प्रयास में नदी में डूब जाता है और लोग उसको नदी में ढूंढने का प्रयास करते हैं और महिला के चटोरेपन पर ताने भी कसते जाते हैं कि किस तरह उसके मछली खाने के शौक के चलते उसका पति पानी की…
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