रुपसा रमोती घुंघुर नि बाजा छम….

जीजा साली की मीठी छेड़-छाड़ अन्य लोकगीतों की तरह ही उत्तराखंड के लोकगीतों में मिलती है। चाहे आप फिर "ओ भीना कस के जानो द्वारहाटा" देख लें या फिर "रुपसा रमौती"। "रुपसा रमौती" गोपाल बाबू गोस्वामी द्वारा गाया एक बहुत प्रसिद्ध गीत है। यह गीत भी हमें दो रूपों में मिलता है। एक पुराना वाला जो कि पुरानी कैसेटों में मिलता है और दूसरा नया संस्करण जो वी.सी.डी. में अनेक दृश्यों के साथ मिलता है। जहाँ पुराने वाले गीत में एक मिठास का अनुभव होता है वहीं नये वाले गीत…

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भुरु भुरु उज्वाऊ हैगो

पहाड़ों की सुबह कितनी सुहानी होती है इसको शब्दों में वर्णित करना लगभग असंभव है। बर्फ से ढकी चोटियों पर जब सूरज की किरणें पड़ती हैं तो वह दृश्य देखने लायक होता है। पक्षी चहचहाने लगते हैं, स्त्रियां अपने काम में लग जाती हैं, गोठ में गोरु-बाछ (गाय-बछ्ड़े) अड़ाट करने लगते हैं और ऐसे ही एक सुबह के दृश्यों को गोपाल बाबू गोस्वामी ने अपने एक सुन्दर गीत में पिरोया है। इस गीत में आप प्रात: काल सुनाई देने वाली ध्वनियों पर ध्यान दें-मुरली की तान है, शिव के डमरू…

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घुघुति ना बासा,आमै की डाई मा

"घुघुती ना बासा" गोपाल बाबू गोस्वामी का एक दर्द भरा विरह गीत है, ठीक कैले बाजे मुरूली की तरह। इस गीत में भी उत्तराखंड की एक विरहणी युवती की विरह का वर्णन है। उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था को मनीऑर्डर व्यवस्था भी कहा जाता है क्योकिं यहां की स्त्रियां परदेश गये हुए घर के पुरुषों द्वारा भेजे गये मनीऑर्डर की बाट जोहती रहती हैं। ऐसे में उनकी भावनायें कहीं तब जाती हैं। घर के आसपास एक पक्षी घुघुती को आम के पेड़ पर बोलता देख वह और उदास हो जाती है और…

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कैले बजै मुरूली… बैणा

“कैले बजै मुरुली…. बैंणा ऊंची ऊंची डान्यूँ मा” गोपाल बाबू गोस्वामी द्वारा गाया हुआ एक मार्मिक विरह गीत है। यह गीत एक ओर जहां एक विरहिणी की दशा का वर्णन करता है वहीं उत्तराखंड की उस स्थिति के बारे में भी बताता है जहां अधिकांश पुरुष सेना में काम करते हैं और उन्हें अपनी नयी-नवेली पत्नियों को छोड़ कर युद्ध-भूमि में जाना पड़ता है। भावार्थ : एक युवती जिसका पति युद्ध-भूमि में गया हुआ और उसका कई दिनों से कोई समाचार नहीं आया है जब वह पर्वतों की ऊंची चोटियों…

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