ओ परुवा बॉज्यू चपल के ल्याछा यस

“ओ परुवा बॉज्यू, चपल के ल्याछा यस” एक हल्का-फुल्का गीत है जिसमें पति-पत्नी की मीठी नौंक-झौंक के साथ यह बात एक बार फिर स्पष्ट होती है कि पति बेचारा कुछ भी करले उसकी पत्नी उसके काम में मीन-मेख निकालेगी ही 🙂 यह एक भुक्त-भोगी पति ही समझ सकता है। इस गाने में ऐसा ही एक बेचारा पति अपनी पत्नी के लिये चुन चुन कर अच्छे अच्छे सामान लाता है लेकिन उसकी पत्नी हर सामान में कुछ ना कुछ कमी निकाल ही देती है। आइये आनन्द लें इस मनमोहक गीत का।…

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ओ भिना कस के जानू द्वारिहाटा

उत्तराखंड का एक बहुप्रचलित और लोकप्रिय गीत है “ओ भिना कस के जानू द्वारिहाटा” जो लगभग हर शादी ब्याह में महिला संगीत या महिला होली में गाया जाता है। इस गीत में जीजा-साली के बीच की प्यार भरी नौंक-झौंक का वर्णन है जैसा कि एक अन्य गाने “रुपसा रमौती घुंघुंर नी बाजा” में भी मिलता है। इस गीत में एक जीजा अपनी साली को लेकर द्वाराहाट (उत्तराखंड में रानीखेत के पास एक जगह)  मेले में जाना चाहता है लेकिन साली वहां ना जाने के लिये कई तरह के बहाने बना…

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रुपसा रमोती घुंघुर नि बाजा छम….

जीजा साली की मीठी छेड़-छाड़ अन्य लोकगीतों की तरह ही उत्तराखंड के लोकगीतों में मिलती है। चाहे आप फिर "ओ भीना कस के जानो द्वारहाटा" देख लें या फिर "रुपसा रमौती"। "रुपसा रमौती" गोपाल बाबू गोस्वामी द्वारा गाया एक बहुत प्रसिद्ध गीत है। यह गीत भी हमें दो रूपों में मिलता है। एक पुराना वाला जो कि पुरानी कैसेटों में मिलता है और दूसरा नया संस्करण जो वी.सी.डी. में अनेक दृश्यों के साथ मिलता है। जहाँ पुराने वाले गीत में एक मिठास का अनुभव होता है वहीं नये वाले गीत…

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जै मैय्या दुर्गा भवानी, जै मैय्या..

लोकगीतों के साथा साथ गोपाल बाबू गोस्वामी ने कई भजन भी गाये हैं। उनका एक बहुत ही लोकप्रिय भजन है “जै मैय्या दुर्गा भवानी,जै मय्या”.आज उसी भजन से आपका परिचय कराते हैं। इसमें उत्तराखंड में स्थित देवी के बहुत से मंदिरों का भी जिक्र हुआ है। गोपाल बाबू के इसी तरह के गीतों को सुनकर ही शायद किसी ने उन्होनें “उत्तराखंड का चंचल” (चंचल देवी के भजन गाने वाले प्रसिद्ध गायक हैं) कहा होगा। गीत का भावार्थ : माँ तू ही दुर्गा है, तू ही काली है। तेरी महिमा निराली…

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भुरु भुरु उज्वाऊ हैगो

पहाड़ों की सुबह कितनी सुहानी होती है इसको शब्दों में वर्णित करना लगभग असंभव है। बर्फ से ढकी चोटियों पर जब सूरज की किरणें पड़ती हैं तो वह दृश्य देखने लायक होता है। पक्षी चहचहाने लगते हैं, स्त्रियां अपने काम में लग जाती हैं, गोठ में गोरु-बाछ (गाय-बछ्ड़े) अड़ाट करने लगते हैं और ऐसे ही एक सुबह के दृश्यों को गोपाल बाबू गोस्वामी ने अपने एक सुन्दर गीत में पिरोया है। इस गीत में आप प्रात: काल सुनाई देने वाली ध्वनियों पर ध्यान दें-मुरली की तान है, शिव के डमरू…

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छबीलो गढ़वाल मेरो,रंगीलो कुमाँऊं…

उत्तराखंड की भूमि जहां एक और अपने सुन्दरता के लिये प्रसिद्ध है वहीं यह वीरों, क्रांतिकारियों की भूमि भी रही है। इन दोनों बातों को गोपाल बाबू गोस्वामी ने अपने एक बहुत ही प्रसिद्ध गाने में बखूबी रखा है। “छबीलो गढ़वाल मेरो, रंगीलो कुमाँऊं” आज एक ऐसा जुमला है पूरे उत्तराखंड के सौन्दर्य को दर्शाने के लिये प्रयुक्त किया जाता रहा है। आइये आज इसी गीत के बारे में जानते हैं। गीत का भावार्थ : मेरे महान देश भारत और देवभूमि उत्तराखंड की धरती को शत शत प्रणाम। हिमालय की…

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कैले बजै मुरूली… बैणा

“कैले बजै मुरुली…. बैंणा ऊंची ऊंची डान्यूँ मा” गोपाल बाबू गोस्वामी द्वारा गाया हुआ एक मार्मिक विरह गीत है। यह गीत एक ओर जहां एक विरहिणी की दशा का वर्णन करता है वहीं उत्तराखंड की उस स्थिति के बारे में भी बताता है जहां अधिकांश पुरुष सेना में काम करते हैं और उन्हें अपनी नयी-नवेली पत्नियों को छोड़ कर युद्ध-भूमि में जाना पड़ता है। भावार्थ : एक युवती जिसका पति युद्ध-भूमि में गया हुआ और उसका कई दिनों से कोई समाचार नहीं आया है जब वह पर्वतों की ऊंची चोटियों…

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