[ पिछले अंक में आपने नैनीताल के आसपास फैले प्राकृतिक दृश्यों का आनन्द लिया। डोटियाल यानि नैपाली मजदूरों के बारे में भी पढ़ा। आइये आज नैनीताल के कुछ और दृश्यों का आनन्द लेते हैं। ] यों शाम को मालरोड गुलजार हो जाती थी। लोग तल्लीताल-मल्लीताल की सैर पर निकल पड़ते। जगह-जगह आते-जाते परिचित दूर से ही हाथ सिर की सीध में उठा कर ‘नमस्कार’ की मुद्रा में जोड़ कर इशारे से ही दोनों हथेलियां हिला कर बिना बोले पूछ लेते और दाज्यू, सब ठीक ठाक?’ और, आगे बढ़ जाते। तल्लीताल,…
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हमर उ नैनीताल
पानी से डबाडब भरा विशाल ताल और चारों ओर हरे भरे जंगलों से घिरा शहर नैनीताल। बांज, रयांज, देवदारू और सुरई के पेड़ पहाड़ों में गहरा हरा रंग भरते थे। चीना पीक, स्नो व्यू, लड़ियाकांटा, टिफिन टॉप से रुई के फाहों से बादल निकलते तो लगता नैनीताल का प्राकृतिक दृश्य-चित्र जैसे जीवंत हो उठा है। सुबह-शाम चिड़ियों का कलरव सुनाई देता था। कितना हराभरा था हमारा शहर नैनीताल! हमारे इसी शहर के निवासी जिम कार्बेट ने 1932 में अपनी पुस्तक ‘माइ इंडिया’ की भूमिका में लिखा था कि हमारे शहर…
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