इखमां छुईं, उखमां छुईं, जखमां देख, तखमां छुई

मानव जीवन में कई तरह की परेशानियां होती हैं लेकिन इस गाने के नायक की परेशानी नारी स्वभाव से जुड़ी एक सामान्य आदत है और वह आदत बकबक बोलने की… नरेन्द्र सिंह नेगी जी के इस व्यंगात्मक गाने में एक ऐसे आदमी का चित्रण किया है जो अपनी पत्नी की छुंयाल (बातूनी) आदत से त्रस्त है। उस आदमी का दर्द फूट-फूट कर सामने आ रहा है .. गाना सुनकर समझ में आता है कि वास्तव में उसकी पत्नी की बतकही की आदत वाचालता की हद तक जा पहुंची है। यह…

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ऊँचा नीसा डाडों मा, टेढ़ा मेढ़ा बाटों मा

आज प्रस्तुत है एक बहुत ही पुराना गाना “ऊँचा नीसा डाडों मा, टेढ़ा मेढ़ा बाटों मा” जिसे नरेन्द्र सिंह नेगी ने गाया है। हाँलाकि इस गाने के बाद में कई संस्करण बन चुके है लेकिन यहां हम आप को इसके दो रूपों से परिचित करवा रहे हैं। पहला वाला कैसेट से लिया गया है और दूसरा वाला वी.सी.डी से। दूसरे गाने में सहगायिका के रूप में मीना राणा भी हैं। यह  “चली भै मोटर चली”  एलबम से लिया गया है और इसके वीडियो टी.सीरीज पर उपलब्ध हैं। पहाड़ के रास्तों…

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सुमा हे निहोणया सुमा डांडा नजा

उत्तराखंड के पहाड़ी इलाके में ग्रामीण लोगों का जीवन जंगलों पर काफी हद तक निर्भर है। जंगलों में जाकर ईंधन के लिये लकड़ी और पशुओं के चारे के लिये घास लाना गांवों की महिलाओं की दिनचर्या का एक हिस्सा है। समय समय पर जंगलों में इन महिलाओं पर जानवरों द्वारा हिंसक हमलों की घटनाऐं होती रहती हैं। ऐसी ही एक घटना का दृश्य “सुमा हे निहोणया  सुमा डांडा नजा” गाने में भी नजर आता है। नरेन्द्र सिंह नेगी का यह गाना पहाड़ के ग्रामीण अंचल में घटी एक घटना का…

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अबैरी दां तू लssम्बी छुट्टी लै के ऐई

आज एक ओर आधुनिकता और विकास की अन्धी दौड़ में मानवीय संवेदनाएं और आपसी रिश्ते धूमिल होते जा रहे हैं और वहीं मानव सभ्यता की कई धरोहरें भी मनुष्य की बढ़ती जरूरतों की भेंट चढ रही हैं। महानगरों में रह रहे लोगों के वातानुकूलित कमरों और चमचमाती सड़कों के लिये रोशनी पैदा करने की खातिर एक पूर्ण विकसित शहर को गंगा जी की लहरों में जलसमाधि लेनी पड़ी। यह शहर था टिहरी शहर, जिसका एक गौरवशाली इतिहास रहा है लेकिन व्यापक जन-विरोध के बाबजूद टिहरी बांध के निर्माण के लिये…

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मेरा डांडी काण्ठियों का मुलुक जैल्यु…

पहाड़ वैसे तो हर मौसम में अपनी प्राकृतिक सुन्दरता से लोगों का मन मोह लेते हैं लेकिन वसंत ऋतु में उनकी सुन्दरता देखने लायक होती है। इसीलिये नरेन्द्र सिंह नेगी उत्तराखंड जाने वालों को सलाह देते हैं कि “मेरा डांडी काण्ठियों का मुलुक जैल्यु, बसन्त रितु मा जैयि” अर्थात अगर मेरे पहाड़ी देश में जाना तो बसन्त ऋतु में ही जाना और फिर वह इसके पीछे के कारणों को भी बताते हैं। लगता है यह गीत हर पहाड़ी व्यक्ति की भावना का गीत है क्योंकि यह सब बातें पूरे उत्तराखंड…

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माछी पाणी सी ज्यू तेरु मेरु

"माछी-पाणी सी ज्यू तेरु मेरु " …यह एक विरह रस का बहुत ही प्यारा गाना है। इस गाने के दो वीडियो रिलीज हुए हैं। पहले वीडियो में इस गीत को नरेन्द्र सिंह नेगी और मीना राणा द्वारा गाया गया है। यह गीत एलबम "ठंडो रे ठंडो" से लिया गया है और इसके ऑडियो और वीसीडी टी सीरीज पर उपलब्ध हैं। दूसरा वीडियो "रुमुक" एलबम में है, हर अन्तरे में अलग नायक-नायिकाओं के साथ। तब इस गीत में सहगायिका अनुराधा निराला जी हैं। इस वीडियो के ऑडियो-वीडियो राइट्स रामा कैसेट्स के…

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भोल जब फिर रात खुलली..

“भोल जब फिर रात खुलली” नरेन्द्र सिंह नेगी का मशहूर गाना है जो जीवन की निरंतरता के बीच जीवन की नश्वरता को प्रकट करता है। सुमित्रानंदन पंत ने अपनी किसी कविता में लिखा है “झरता नित प्राचीन पल्ल्वित होता नूतन” यानि जीवन चक्र निरंतर चलता रहता है। “मैं ना रहुंगी तुम ना रहोगे पर ये रहेंगी निशानियां” जैसे ही कुछ भाव है इस गाने में। बहुत ही अर्थ पूर्ण,सुरीला,मार्मिक गाना है यह। भावार्थ : कल जब रात खतम होगी (यानि नयी सुबह आयेगी) इस धरती में नयी पौध जनम लेगी।…

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