हुड़क्या बौल

हुड़क्या बौल कृषि गीतों का सबसे प्रमुख प्रकार है। यह गीत मुख्यतः यह रोपाई के समय गाये जाते हैं। “बौल” का शाब्दिक अर्थ है श्रम,मेहनत। हुड़्के के साथ श्रम करने को हुड़क्या बौल या हुड़की बौल नाम दिया गया है। सामुहिक रूप से खेत में परिश्रम करते हुए लोगों के काम में सरसता स्फूर्ति तथा उमंग का संचार करने का यह अत्यंत सुन्दर माध्यम है। इस कृषि गीत में एक व्यक्ति हाथ में हुड़का लेकर उसे बजाते हुई गीत गाता है। इस व्यक्ति को हुड़किया कहा जाता है। हुड़के की…

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म्यर घर छो रंगीलो, घरवाली रंगीली

गोपाल बाबू गोस्वामी ने अनेक विषयों पर आधारित गीत गाये। आज प्रस्तुत है परिवार नियोजन पर गाया हुआ उनका एक गीत, जिसमें उन्होने यह बताने की कोशिश की है एक छोटा-परिवार किस तरह से सुखी व सम्पन्न है। इस तरह की थीम पर आधारित गाने बहुत कम ही देखने को मिलते हैं लेकिन गोपाल दा तो फिर गोपाल दा ही ठहरे। भावार्थ : मेरा घर कितना अच्छा है, मेरी पत्नी कितनी सुखी है, मेरा छोटा सा परिवार है और मेरा मन खुश है निश्चिंत है। हमारे परिवार में सिर्फ दो…

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आज यो मेरी सुणो पुकारा, धात लगुंछो आज हिमाला

आज जब हर तरफ लोग ग्लोबल वार्मिग की बात कर रहे हैं, वन बचाओ की बातें की जा रही हैं, हिमालय बचाओ का नारा लगाया जा रहा है वहीं गोपाल बाबू गोस्वामी ने बहुत पहले ही अपने एक गाने के माध्यम से इस संदेश को देने की कोशिश की है। अपने इस गाने में उन्होने हिमालय, पशु-पक्षी, पेड़ों द्वारा लगायी जा रही आभासी आवाजों के माध्यम से पर्यायवरण असंतुलन का एक चित्र प्रस्तुत किया है। भावार्थ : आज आकाश-धरती तड्प रहे है, हिमालय झुलस गया है, जंगल जल रहे हैं,…

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